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रविवार, 15 जनवरी 2012

मीडिया पर लगाम लगाना- लोकतंत्र का गला दबाने जैसा

प्रस्तुत लेख को पढ़ने के लिए डीवीटीटी योगेश फॉंट डाऊनलोड कर लें

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शनिवार, 9 जुलाई 2011

प्रभाष जोशी की 75वीं जयंती



ऋषि पत्रकार प्रभाष जोशी की 75वीं जयंती 15-16 जुलाई लाई को इंदौर में भाषाई पत्रकारिता महोत्सव के तौर पर मनायी जाएगी। दो दिवसीय सारस्वत समारोह का समायोजन इंदौर प्रेस क्लब और प्रभाष परम्परा न्यास ने किया है। महोत्सव का उदघाटन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी 15 जुलाई को शाम 5 बजे करेंगे। पत्रकारिता की चुनौतियां और प्रभाष जी के सामाजिक, सांस्कृतिक सरोकारों पर कई सत्रों में चर्चा प्रस्तावित है। महोत्सव का नामकरण प्रभाष प्रसंग किया गया है।
समारोह के दौरान प्रभाष पर्व नामक पुस्तक का लोकार्पण उपराष्ट्रपति के कर-कमलों द्वारा होगा। पांच सौ पन्नों की इस किताब में प्रभाष जी के निधन के बाद उनपर लिखे गये लेखों-संस्मरणों का संग्रह है। प्रभाष जोशी की दो कहानियां और एक कविता भी पुस्तक में संकलित है, जो साठ के दशक में लिखी गयी थी। सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चा होनी है उसमें क्रिकेट, पत्रकारिता, जल-जंगल-जमीन और जनांदोलन शामिल है। वर्तमान समय में पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां विषयक सत्र में डॉ वेदप्रताप वैदिक, रामबहादुर राय, कुमार केतकर, हरिवंश, रामशरण जोशी,पुण्य प्रसून वाजपेयी, प्रांजय गुहा ठाकुरता, ओम थानवी,जैसे नामचीन पत्रकार भाग लेंगे।
सामाजिक- सांस्कृतिक विषय से जुड़े सत्रों में अनुपम मिश्र, हर्षमंदर, प्रशांत भूषण, मेधा पाटकर जैसे लोगों के विचार सुनने को मिलेंगे। प्रभाष जोशी के प्रसंदीदा विषय क्रिकेट पर भी एक सत्र होगा जिसमें नायडु से धौनी तक के सफर की चर्चा होगी। क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी खासतौर से इस मौके पर अपना अनुभव बांटेंगे। तीसरे प्रेस आयोग की जरूरत पर एक मसौदा वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने तैयार किया है, उसे भी सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत किया जाएगा।
प्रभाष प्रसंग के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस पी वी सांवत ने खास तौर पर एक आलेख भेजा है, जिसे प्रतिनिधियों के बीच वितरित किया जाएगा। शुभा मुद्दगल का गायन सुनने का आनंद भी प्रतिनिधि उठा सकेंगे। समापन के दिन गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रतिमा से राजेन्द्र माथुर की प्रतिमा स्थल तक पद यात्रा भी होगी।

शनिवार, 6 मार्च 2010

तुझको रखे राम तुझको अल्लाह रखे

अन्याय के रास्ते में
कहीं न्याय दम न तोड़ दे
असत्य के रास्ते में कहीं
सत्य नीलाम न हो जाए
इसलिए सच दिखाते हैं हम
सत्य के स्वयंभू रक्षक इस टीवी चैनल के चाल चरित्र चेहरा और चिंतन पर आपको संदेह नहीं होना चाहिए क्योंकि सच दिखाते हैं ये. यहां स्वनाम धन्य बुद्धिजीवी पत्रकार(?) पूछते हैं-
देश के संसाधन पर किसका अधिकार है?
  • बहुसंख्यकों का
  • अल्पसंख्यकों का
  • जिसकी लाठी उसकी भैंस
आप ही बताइये आपका जवाब क्या होगा. ये लोग धर्म संप्रदाय के आधार पर देश को बांटते हैं. कुछ लोगों के प्रति पक्षपात पूर्ण रवैया अपना स्वयं को बुद्धिजीवी और सेक्युलर कहते हैं. आप ही बताइये क्या हैं ये लोग?
कल सुबह मेरी पत्नी ने टीवी का स्विच ऑन किया. ये चैनल सेक्स-स्कैंडल मामले में फंसे नित्यानंद स्वामी का संबंध नरेंद्र मोदी के साथ स्थापित करने में जुटा हुआ था.
पहले इसने कुछ चित्र दिखाए, पहले स्वामी जी, फिर नरेंद्र मोदी एक मंच पर चढ़ रहे थे.
मोदी ने हाथ जोड़ स्वामी जी को नमस्कार किया, इस नमस्कार को चैनल ने “हाथ जोड़कर नतमस्तक होना बताया”
पहले एक लाइन की खबर फिर स्वनाम धन्य बुद्धिजीवी पत्रकार की टिप्पणी, फिर फोन पर इस संबंध को पुष्टि कराने की कोशिश.
मेरा सवाल है कि क्या जब नारायण दत्त तिवारी(एनडी तिवारी) सेक्स स्कैंडल में पकड़ाए, क्या तब भी इस चैनल ने तिवारी का संबंध सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह और कांग्रेसी नेताओं से जोड़ने की कोशिश की?
क्या जब कोई फादर सेक्स स्कैंडल में पकड़ाते है तो क्या ये चैनल इसी निष्पक्षता(?) के साथ उसका संबंध दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों के साथ जोड़ने की कोशिश करता है, जैसा कि आप सभी जानते हैं फादरों के सामने अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, स्वीडन सहित दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष जुड़ते हैं?

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

हर कोई बिक रहा है, आरोपी और आरोप लगाने वाला भी

कौन नहीं बिक रहा है
अंग्रेजी के बड़े-बड़े अखबारों में हिंदी, मराठी गुजराती(यू कहें, क्षेत्रीय अखबारों) के खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है कि ये पत्रकारिता के मूल्यों को तार-तार कर रहे हैं. पैसे लेकर खबर छापते हैं. प्रतिष्ठित समाचार पत्र "द हिंदू" नामचीन पत्रिका "आउटलुक" जैसे अंग्रेजी अखबारों और मैगजीन ने इस अभियान को खूब बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया. इस मुहिम में पी साईनाथ जैसे वरिष्ठ और प्रतिष्ठित पत्रकार भी शामिल थे.
मैं बतला दूं कि मैं अखबारों की इस घटिया हरकत का समर्थक नहीं हूं, लेकिन क्षेत्रीय पत्रकारिता के खिलाफ एकतरफा अभियान के खिलाफ जरूर हूं.
इस खबर को पढ़िए
पता चल जाएगा कि केवल क्षेत्रिय समाचार पत्र ही इस घिनौती हरकत में शामिल नहीं हैं बल्कि अंग्रेजी के तथाकथित बड़े-बड़े अखबार और पत्र-पत्रिकाएं भी शामिल हैं. इनकी पहुंच वेटिकन से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों, समाजवादी से लेकर साम्यवादी देश, खाड़ी से लेकर टिपोरी तक है.
अगर इजाजत हो तक इसका लेखा-जोखा किसी दूसरे दिन प्रस्तुत कर सकता हूं.
फिलहाल लिंक को पढ़ लीजिए.

जय हिंदी जय भारत

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

सफ़ेद हाथी

मीडिया इतना शोर-शराबा मचायेगी तो हमारी अर्थव्यवस्था ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगी। हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तरह बर्बाद हो जायेगी।
आईटी कंपनी सत्यम के डूबने के बाद कई विशेषज्ञों का मानना था कि सरकार मीडिया की खबरों को सेंसर करे, सरकार उस पर रोक लगाये। किसी ने ठीक ही कहा है कि सरकार तब चैन की नींद सोती है जब मीडिया वाले ख़बरों की जगह राखी सावंत का नाच, राजू श्रीवास्तव के हंसगुल्ले, आमिर की गजनी और शाहरुख़ की रब ने बनाई जोड़ी को चौबीसों घंटे दिखाती है।
जब कभी मीडिया मुंबई हमले के बाद लोगों के आक्रोश को दिखाती है तो सरकारी फरमान आ जाता है कि लोगों को डराना बंद करो नही तो तुम पर कार्रवाई की जायेगी। यानी टीवी वालों का लिंक कट दिया जाएगा। उसकी संपत्ति जब्त कर ली जायेगी।
आखिर क्या करे टीवी वाला।
वह कभी लोगों से सच दिखाने का दावा करता है, कभी सोचने के लिए मजबूर करता है, कभी आपको आगे रखने का दावा करता है। इन्हीं घनचक्कर शब्दों के चक्कर में वह कभी कुछ दिखने की कोशिश करती है तो सरकारी फरमान उसको मजबूर करती है कि तुम रब ने बनाई जोड़ी, गजिनी का प्रमोशन दिखाओ और दिखाते रहो। तुम भी चैन से सो जाओ और हमें भी सोने दो।
टीवी चैनल वालों के लिए भी अच्छा है। न्यूज़ के नाम पर फ़िल्म का प्रमोशन दिखाकर पैसे कमाना उसके लिए उसके लिए आसन हो गया है। विज्ञापन प्रसारण के लिए उसे पैसे भी नही खर्च करना पड़ता है और कमी भी जबरदस्त हो जाती है।
दरअसल सरकार भी यही चाहती है। आज सत्यम कंपनी ने अपने निवेशकों को दिवालिया कर दिया। खुद कितनी दिवालिया हुई वह तो पीछे की बात है। सत्यम में पाँच हज़ार से दस हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आ रही है। कंपनी ने हाल के दिनों में जो भी लेनदारी-देनदारी, मुनाफा दिखाया वह सब झूठ था सब फरेब था। किसी और का नहीं, ख़ुद कंपनी के करता-धरता रामालिंगम राजू का कहना है। स्थिति यहाँ तक आ पहुँची है राजू की गिरफ्तारी भी हो सकती है।
इतना सब कुछ होने के बाद भी मीडिया अगर कुछ दिखा रही है तो साहेब लोगों का कहना है की सरकार को इस पर रोक लगना चाहिए नहीं तो देश की अर्थव्यवस्था ताश के पत्तों की तरह बिखर जायेगी।
दरअसल पैसे वाले यही चाहते है की मीडिया, लाल-फीताशाही और पेज थ्री की खबरें ही दिखाए। ज्योही उनकी हेरा-फेरी, उनकी बेईमानी, मक्कारी की ख़बर दिखने की बात होती है, उसपर सेंसर की बात कही जाने लगती है। तभी तो देश की अर्थव्यवस्था का हवाला देकर देश के सबसे बड़े कारपोरेट घोटाले की ख़बर को दिखाने पर पाबन्दी की बात कही गई।
देश में किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है। सरकार ने किसानों की हालत सुधारने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। लोकसभा चुनाव को करीब देखते हुए किसानों के हाथ कर्जमाफी का झुनझुना थमा दिया और कहा इसे तब तक बजाते रहो जब तक कोई अगली सरकार हम्हारे कर्जो को माफ़ करने के लिए तैयार न हो जाए। जब तक झुनझुना बाजते रहो ठीक है, अगर सरकार की इस नाकामी को दिखने की कोशिश की तो लिंक काट दिया जाएगा, क्योंकि हम सरकार हैं।

बुधवार, 28 नवंबर 2007

विज्ञापन चैनल

कुछ रोज मैंने इसी ब्लोग पर एक लेख लिखी थी- श्रद्धा का श्राद्ध। उस लेख मैंने खबरिया न्यूज़ चैनलों पर जम कर भड़ास निकाली थी। एक बार फिर भड़ास निकालने का मौका है।
इस बार कई बहाने हैं।
पहला मसला असाम का है।
वहाँ, चौबीस तारीख शनिवार को आदिवासियों ने खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने की मांग को लेकर गुवाहाटी में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों की रैली राजधानी दिसपुर जा रही थी. प्रदर्शन में आम तौर पर जो होता है-- मसलन, तोड़-फोड़ वही उसमें भी हुआ। फिर क्या, स्थानीय निवासियों ने कानून अपने हाथ में ले लिया। जो प्रदर्शन में शामिल नहीं भी थे, उनपर भी इतना बड़ा अत्याचार किया कि जिसपर मानवाधिकार का शोर मचाने वालों को भी शर्म आ जाये।
जहाँ सड़कों पर लाशों की कतार लगी है। वहीं सरकार एक मौत की पुष्टि कर रही है।
आठ-दस साल के छोटे-छोटे बच्चों पर इस कदर जुर्म ढाये गए कि नजारा देखकर रोंगटे खडे हो जाये।
भागलपुर की घटना में पुलिसिया जुर्म पर, पूरे पुलिस बिरादरी और राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले न्यूज़ चैनलों के पास अभिव्यक्ति के प्रतीक तसलीमा पर हो रहे अत्याचार को दिखाने से फुरसत कहाँ थी जो असाम के जनसंहार को दिखाते। आदिवासियों में सेलेब्रिटी और हाई प्रोफाइल जैसा कुछ होता कहाँ जो उसको मुद्दा बनाते। असाम वैसे भी भौगोलिक रूप से भारत से दूर दिखता है। इसलिए उसकी समस्याओं से मुम्बई और दिल्ली वालों को क्या लेना देना है। घटना दिल्ली और मुम्बई की होती तो तिल का ताड़ बनते देर नही लगती। मगर बात असाम की और वहाँ कांग्रेस की सरकार सो उसे दिखाने की जरूरत क्या है। बात बीजेपी शासित प्रदेशों की होती तो उसकी तीस को तीन सौ बनाया जाता। बात असाम की है इसलिए तीस भी एक बनकर रह गया।

शनिवार, 3 नवंबर 2007

श्रद्धा का श्राद्ध


ज्यादा दिन नहीं गुजरे हैं जब लोग कहा करते थे कि अब अखबारों के महान युग का अंत हो जाएगा। यह वह समय था जब टेलीविजन पर समाचारों का आना शुरू हुआ था और चौबीस घंटे समाचार के चैनलों ने दस्तक दिए थे। समय लम्बा नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतनी अपेक्षा तो जरूर की जा सकती है कि इसमें परिपक्वता आ जानी चाहिऐ। साब, अगर बेटा, अठारह साल में भी बालिग नहीं हुआ तो समझिए उसका भविष्य अंधकारमय है। हमारे टेलीविजन चैनलों का यही हाल है। और नहीं तो इतना जरूर कह सकते हैं कि इसका भविष्य अंधकारमय है। अपने देश में एक भी ऐसा हिन्दी टेलीविजन चैनल नहीं है जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं। सर्वश्रेष्ठ चैनल का लोगो लगाकर समाचार के नाम पर चौबीसों घंटे सनसनी, रहस्य रोमांच, सिनेमा, क्रिकेट और क्राइम का ऐसा घालमेल कर रखा है कि दर्शकों को सारा चित्र विचित्र लगने लगा है। इतना बड़ा घालमेल। सच बोलने का दावा कर किसी पार्टी का मुखपत्र की तरह काम करते हैं। जनता की नब्ज पकड़ने का दावा करते हैं। चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षण करते हैं, लेकिन यह सर्वेक्षण कितना सही होता है, कम से कम सब लोग इसे जानते हैं।

कहते हैं कि लोग यही देखना चाहते हैं-- यहीं भूत, प्रेत, अन्धविश्वास। यार, क्यों सौ दो सौ पत्रकार नामक जीव का पेट भरने के लिए, और उनकी ऐय्याशी के लिए हिंदुस्तान के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हो?

बिना बुलाये अमिताभ के बेटे की शादी में चले जाते हो, फिर वहाँ से मार खाकर बाहर होते हो। और उसी की शादी, करवाचौथ, और फिर जन्मदिन की खबर दिखाने के लिए परेशान रहते हो।

आज भी अखबार--अख़बार है। आज भी एक हिंदुस्तान की जनता अख़बारों पर विश्वास करती है। कई अखवार पहले की तुलना में आज अच्छे हैं-- पर एक भी टेलीविजन चैनल को इसका दावा करने का हक शायद नहीं है।