- मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं बृज गोकुल गांव के ग्वारन।
- जो पशु हौं, तो कहां बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मझारन।।
- पाहन हौं, तो वही गिरि को, जो धरयों कर छत्र पुरंदर धारण।
- ज्यौ खग हौं, तो बसेरो करौं मिली कालिंदीकूल कदम्ब की डारन।
- या लकुरि अरु कामरिया पर, राज तिरु पुर को तजि डारौं।
- आठों सिद्धि नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराई बिसारौं।।
- इन आंखन सौं कबौं रसखानि, बृद के वन-बाग तड़ाग निहारौं।
- कोटिक हौं कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
- मोर-पंखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
- ओढ़ि पितंबर ले लकुटी, बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी।।
- भाव तो वोहि मेरी रसखानि, सो तेरे कहे सब स्वांग भरौंगी।
- या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरि अधरा ना धरौंगी।।
- शेष महेश गणेश दिनेश, सुरेशहूं जाहि निरंतर गावै।
- जाहि अनादि अनंत अखंड, अछेद अभेद सुदेव बतावै।।
- नारद से सुक व्यास रटै, पचि हारे तौ पुनि पार ना पावै।
- ताहि अहीर की छोहरिया, छछिया भर छाछ पे नाच नचावै।।
- धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, जैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
- खेलत खात फिरै अंगना, पग पैरी बाजती पीरी कछौटी।।
- जा छवि को रसखान विलोकत, बारत काम कलानिधि कोटी।
- काग के भाग कहा कहिए, हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।ष
- बैन वही उनको गुन गाई, औ कान वही उन बैन सो सानी।
- हाथ वही उन गात सरै, औ पाइ वही जो वही अनुजानी।।
- आन वही उन आन के संग, और मान वही जु करै मनमानी।
- त्यों रसखानि वही रसखानि, जो है रसखानि सो है रसखानि।।
- शंकर के सुर जाहि जपै, चतुरानन ध्यावै धर्म बढ़ावै।
- नैक हिये जिहिं आनत ही, जड़ मूढ़ महा रसखानि कहावै।।
- जा पर देव अदेव भू अंगना, वारत प्राणन प्राणन पावै।
- ताहि अहीर की छोहरिया, छछिया भर छाछ पे नाच नचावै।।
मंगलवार, 2 अगस्त 2011
संतकवि रसखान की अनुपम कृति
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