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मंगलवार, 2 अगस्त 2011

संतकवि रसखान की अनुपम कृति

  • मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं बृज गोकुल गांव के ग्वारन।
  • जो पशु हौं, तो कहां बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मझारन।।
  • पाहन हौं, तो वही गिरि को, जो धरयों कर छत्र पुरंदर धारण।
  • ज्यौ खग हौं, तो बसेरो करौं मिली कालिंदीकूल कदम्ब की डारन।

  • या लकुरि अरु कामरिया पर, राज तिरु पुर को तजि डारौं।
  • आठों सिद्धि नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराई बिसारौं।।
  • इन आंखन सौं कबौं रसखानि, बृद के वन-बाग तड़ाग निहारौं।
  • कोटिक हौं कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं।।

  • मोर-पंखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
  • ओढ़ि पितंबर ले लकुटी, बन गोधन ग्वारिन संग फिरौंगी।।
  • भाव तो वोहि मेरी रसखानि, सो तेरे कहे सब स्वांग भरौंगी।
  • या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरि अधरा ना धरौंगी।।

  • शेष महेश गणेश दिनेश, सुरेशहूं जाहि निरंतर गावै
  • जाहि अनादि अनंत अखंड, अछेद अभेद सुदेव बतावै।।
  • नारद से सुक व्यास रटै, पचि हारे तौ पुनि पार ना पावै।
  • ताहि अहीर की छोहरिया, छछिया भर छाछ पे नाच नचावै।।

  • धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, जैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
  • खेलत खात फिरै अंगना, पग पैरी बाजती पीरी कछौटी।।
  • जा छवि को रसखान विलोकत, बारत काम कलानिधि कोटी।
  • काग के भाग कहा कहिए, हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।ष

  • बैन वही उनको गुन गाई, औ कान वही उन बैन सो सानी।
  • हाथ वही उन गात सरै, औ पाइ वही जो वही अनुजानी।।
  • आन वही उन आन के संग, और मान वही जु करै मनमानी।
  • त्यों रसखानि वही रसखानि, जो है रसखानि सो है रसखानि।।

  • शंकर के सुर जाहि जपै, चतुरानन ध्यावै धर्म बढ़ावै।
  • नैक हिये जिहिं आनत ही, जड़ मूढ़ महा रसखानि कहावै।।
  • जा पर देव अदेव भू अंगना, वारत प्राणन प्राणन पावै।
  • ताहि अहीर की छोहरिया, छछिया भर छाछ पे नाच नचावै।।

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