रविवार, 12 अक्तूबर 2008
एक मच्छर आदमी को हिजड़ा कैसे बना देता है..
एक मच्छर, साला एक मच्छर, आदमी को हिजड़ा बना देता है.
एक खटमल पूरी रात को अपाहिज कर देता है.
सुबह घर से निकलो, भीड़ का हिस्सा बनो.
शाम को घर जाओ, दारू पिओ, बच्चे पैदा करो और सुबह तलक फिर एकबार मर जाओ.
क्योंकि आत्मा और अंदर का इंसान मर चुका है, जीने के लिए घिनौने समझौते कर चुका है.
साला, एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है.
ऊंची दुकान, फीका पकवान, खद्दर की लंगोटी, चांदी का पिकदान.
सौ में से अस्सी बेईमान, फिर भी मेरा देश महान.
टोपी लगाए मच्छर कहता है, देश की लोगों में समता की भावना आ रही है.
इसलिए तो बड़ी मछली छोटी को खा रही है.
हमारे चुने हुए कुत्ते हमें काटते है, हमारी ही बोटियां आपस में बांटते हैं.
अमानुष गंध से भरी इनकी आवाज से कांपते हैं.
कल पैदा हुए बच्चे एक सांस लेते हुए हांफते हैं.
शैतानों की नाजायज औलाद तहलका मचा रही है
और हम भगवान के चहेते जानवर इंसान, जीवन को गाली बनाए बैंठे हैं.
क्या करें, साला एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है.
गिरो सालों, गिरो, गिरो, लेकिन गिरो तो उस झरने की तरह तो अपनी सुंदरता खोने नहीं देता.
जमीन के तह से भी मिलकर अपना अस्तित्व नष्ट नहीं होने देता.
लेकिन इतना सोचने के लिए, वक्त है किसके पास.
क्योंकि साला एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है.
मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में मर गए लाखों इंसान.
धर्म और मजहब के नाम पर हो गए लाखों कुर्बान.
जिसने अन्याय के विरोध में बाली को मारा, रावण को मौत के घात उतारा.
पुण्य को पाप से उबारा
आज मुझे उस राम की तलाश है.
लेकिन मुझे लगता है कि इस युग के राम को आजीवन वनवास है,
क्या करें, क्योंकि साला एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है.
कभी शैतान आएंगे, मेरे दरवाजे पर दस्तक देंगे.
मेरे जेहन की तलाशी लेंगे, फिर चल उठेंगे.
उस वक्त मैं डरूंगा नहीं.
अपने विश्वास को ढाल, अंदर की आग को तलवार बनाऊंगा.
एक न एक दिन तो तुम उस आग में कूदोगे.
करो, आज में बदनाम करो, नीलाम करो.
निलामी के लिए क्या है मेरे पास.
छलके हुए आंसुओं का एहसास.
मगर, मगर मैं तुम्हें बदला लूंगा.
तेरी आखिरी गोली पर, मेरे दो सांसों के बीच का ठहराव, तुम्हें फोकट में दूंगा
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