पुस्तक जो मैंने पढ़ी, वही पढ़े तुम ग्रंथ।
मेरी राह दक्षिण हुई, तुम चले वामपंथ।।
तुम छोटे ना मैं बड़ा, समय बड़ा है वीर।
बंधु तुम चंचल बनो, मैं बनूं गंभीर।।
मेरे प्रश्नों के उत्तर, है ना तुम्हारे पास।
भूमि से मेरा नाता, तुम रहते आकाश।।
मेरा धर्म उधार का, तुमने दिया था नाम।
हर हठ हमने छोड़ दी, फिर काहे संग्राम।।
मंगलवार, 2 नवंबर 2010
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दोहों के भाव अच्छे हैं.
जवाब देंहटाएंआप और भी अच्छे दोहे लिखने की क्षमता रखते हैं.
- विजय
लगे रहिये.
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