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गुरुवार, 1 नवंबर 2007

गुरु वंदना



वंदे बोधमयं नित्यम गुरुम शंकर रुपिनम
यमा श्रितो हि वक्रोपि चन्द्रः सर्वत्र वन्दते


गुरु ब्रह्म गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः
गुरु साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः

अखंड मंडला कारम व्याप्तं ये चराचरम
तद पदम दर्शितम ये तस्मै श्री गुरुवे नमः

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञान्नंजन श्लाक्या
चक्षु उन्मिलितम ये तस्मै श्री गुरुवे नमः

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