हिंदी शोध संसार

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

वैज्ञानिक शोधों का सामाजिक संदर्भ



हैदराबाद में राष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी

*डॉ देवकुमार पुखराज*
प्रयोगशालाओं में होने वाले वैज्ञानिक शोध आमजन और समाज के लिए कितने लाभकारी हैंये पता करना जन सामान्य के लिए आसान नहीं है। इसकी वजह वैज्ञानिकों की भाषा शैली और शोध की जटिल प्रक्रिया है। अपने भारत में भी शोध विषयक अधिकांश कार्य अंग्रेजी भाषा में होते हैंजबकि देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली और लोक व्यवहार की भाषा हिन्दी है। नतीजतन देश की बड़ी आबादी ये जान-समझ नहीं पाती कि प्रयोगशालाओं में दिन-रात माथा खपा रहे वैज्ञानिक मानव समाज के लिए क्या कुछ कर रहे हैं। शायद यही वजह रही हो जिसने हैदराबाद स्थित अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति की तीन रिचर्स संस्थानों को नवीनतम वैज्ञानिक शोधों पर हिन्दी में राष्ट्रीय संगोष्ठी करने के लिए प्रेरित किया। 22 से 24 अगस्त तक हुए राष्ट्रीय हिन्दी वैज्ञानिक संगोष्ठी में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद यानि सीएसआईआर से जुड़े 200 से ज्यादा वैज्ञानिकों और शोधार्थियों ने भाग लिया।
हैदराबाद के उप्पल स्थित राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई), भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईसीटीऔर कोशिकीय एवम आणविक जीवविज्ञान केन्द्र (सीसीएमबीने संयुक्त रुप से तीन दिनों की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। विषय था-सीएसआईआर अनुसंधान-सामाजिक संदर्भ। उदघाटन करने चित्रकूट से आए प्रोफेसर कृष्ण बिहारी पाण्डेय ने वैज्ञानिकों को भारतीय मनीषा से परिचित कराया। अपने विशद शोध आलेख के जरिये उन्होंने साबित किया कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी भारत के प्राचीन ऋर्षि-मुनियों ने अनेक रुपों में दुनिया को प्रभावित किया। लेकिन उनके योगदान से भारत के आमलोग और वैज्ञानिक भी एक हद तक अनजान हैं। इसकी मूल वजह रही मैकाले की शिक्षा पद्धतिजिसने भारत की ऋषि परंपरा पर व्यापक शोध नहीं होने दिया। हम ये मानकर चलने लगे कि साईंस और टेक्नॉलोजी में जो कुछ बेहतर और अच्छा है उसमें पश्चिम का ही योगदान है। प्रोफेसर पाण्डेय उस महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति हैंजिसकी स्थापना विख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख ने की थी। उदघाटन के वक्त एनजीआईआर के निदेशक डॉमृणाल कांति सेनसीसीएमबी के निदेशक डॉ.सीएच.मोहन राव और आईआईसीटी के डायरेक्टर डॉजे.एस.यादव मौजूद थे। साथ ही तीनों संस्थानों के हिन्दी प्रभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी उपस्थित थे।
सेमिनार के दौरान वैज्ञानिकों ने अपने समाजपरक शोधों से एक दूसरे को अवगत कराया। इस दौरान कुल 48 सत्र हुएजो सभी हिन्दी में थे। शाम में प्रतिनिधियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आनंद उठाया। विविध भाषा-प्रांत वाले वैज्ञानिकों को हिन्दी में बोलते देखना-सुनना विस्मय से कम नहीं था। पहले दिन एनजीआरआई के मुख्य वैज्ञानिक डॉशिवेन्द्र नाथ राय ने विदर्भ के इलाके में चन्द्रभागा नदी की द्रोणी (बेसिनमें जलस्रोत का पता लगाने वाले अपने शोध कार्य की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नागपुर जिले के कलमेश्वर और काटोल तहसीलों के 170 वर्ग किलोमीटर की सूखी धरती के गर्भ में मंदाकिनी की एक ऐसी अविरल धारा मचल रही हैजिसके बाहर निकलते ही इलाके के 23 सूखे गांवों की तकदीर बदल जाएगी। डॉराय के मुताबिक दोनों तहसीलों के चुने हुए चालीस स्थानों पर रेडियो तरंगों की मदद से भू-जल स्रोतों का पता लगाया है। उन्होंने सर्वे की विद्युत इलेक्ट्रॉड विधि भी समझाई और ये भी सुनाया कि सैम्पल के तौर पर तीन बोरवेल लगाकर संस्थान ने कैसे किसानों के खेतों में हरियाली लाई है। ये वही इलाका है जहां के सूखा पीड़ित किसान आत्महत्या करने को मजबूर होते रहे हैं। डॉराय की टीम के सदस्य डॉ.देवाशीष कुमार ने अपने प्रजेंटेशन के जरिये बताया कि कठोर शैल में भूजल का पूर्वेक्षण और अन्वेषण कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है। एनजीआरआई के ही डॉ.निमिषा वेदान्ति ने नवीनतम शोधों के जरिये समुद्री जल का अलवणीकरण या खारे जल को पेयजल बनाने की उत्क्रम परासरण (आर..) वाली प्रचलित विधि की जगह हरित ऊर्जा के उपयोग वाली कम खर्चीली विधि की जानकारी दी। केन्द्रीय विद्युत रसायन अनुसंधान संस्थान,कारैकुडी से आए सोमेश्वर पाण्डेय ने आर्सेनिक और फ्लोराइड के दुष्प्रभावों से बचाव के लिए हाल में तैयार सीएसआईआर-800 नामक फिल्टर के बारे में बताया जो विद्युतरसायनिक विधि से जल को पीने लायक बनाता है। उन्होंने बताया कि आर्सेनिक फिल्टर का रख-रखाव और संस्थापन बेहद आसान है और ये बिजली और सौर ऊर्जा से भी संचालित है। सीसीएमबी के डॉसुनील कुमार वर्मा ने जैविक प्रजातियों को पहचानने की उस वैज्ञानिक पद्धति की जानकारी दीजो वन्यजीव कानून एवं वन्य जीव संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित हुई है। अब वैज्ञानिक परीक्षण के जरिये खून की एक बूंदपके अथवा बिना पके मीट का टुकड़ाखाल या एक अकेला बाल भी ये बताने के लिए काफी है कि यह किस प्रजाति के जानवर का है और वो प्रजाति वन्यजीव कानून के तहत संरक्षित है या नहीं। इसी खोज के बाद हैदराबाद की प्रयोगशाला में राष्ट्रीय वन्यजीव आपराधिक जांच केन्द्र की स्थापना की गयी है। इसमें वैज्ञानिकों की एक टीम वन्य अधिकारियों और न्यायालयों द्वारा भेजे और जब्त किये गये सड़े-गले जैविक अवशेषों का परीक्षण कर प्रमाण-पत्र देती है कि ये अमुक जैविक अवशेष किस प्रजाति विशेष का है। सीसीएमबी के इस वैज्ञानिक प्रमाण पत्र की न्यायालयों में पूर्ण स्वीकृति मिली हुई है। अभिनेता सलमान खान के हिरण शिकार मामले और हाल में नारायण दत्त तिवारी के चर्चित पितृत्व मामले की रिपोर्ट भी इसी लैब ने तैयार की।
केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि ताप विद्युत परियोजनाओं से निकलने वाली कोयला राख जैसी अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग किस तरह सड़करेलमार्ग और तटबंध बनाने में हो रहा है। वहीं केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थानरूड़की के वैज्ञानिकों ने अपने नवीनतम अनुसंधानों के जरिये कम लागत वाली स्वच्छ और टिकाऊ गृहनिर्माण तकनीक की जानकारी दी। पर्यावरण और जल संरक्षण की दिशा में चल रहे अनुसंधान से भी संगोष्ठी में आए वैज्ञानिक अवगत हुए।
एनजीआरआई के डायरेक्टर डॉमृणाल कांति सेन ने आगामी कार्ययोजना की जानकारी दी जिसके तहत बिहार और बंगाल के गंगा किनारे बसे गांवों के भूजल में आर्सेनिक के मूल स्रोत का पता लगाने के लिए वृहत सर्वे कराया जाएगा। भारत में पहली बार अति आधुनिक संचार उपकरणों से लैश हेलिकॉप्टर के जरिये भूगर्म में मौजूद जलस्रोतों की जानकारी ली जाएगी। बिहारबंगालराजस्थानकर्नाटक और आंध्रप्रदेश के स्थानों को इसके लिए चयन किया गया है। यदि एयरबोर्न सर्वे के नतीजे सटीक निकले तो आने वाले समय में पूरे देश के भूगर्भ में छुपे जल का पता लगाया जाएगाजो मानव समुदाय के लिए वरदान साबित होगा।


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