यह लेख सुप्रीमकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति और भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काट्जू के उस अभिभाषण का अनुवाद है, जो उन्होंने 27 नवंबर 2011को काशी हिंदी विश्वविद्यालय, वाराणसी में दिया था।
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भारत
मुख्यरूप से आप्रवासियों
यानी परदेशियों का देश रहा
है। उत्तरी अमेरिका,
अमेरिका
और कनाडा नए परदेशियों का देश
है, जो
पिछले चार से पांच सालों में
मुख्य रूप से यूरोप से आए।
जबकि भारत पुरातन आप्रवासियों
का देश है,
जहां पिछले
दस हजार सालों में लोग आए।
शायद भारत में रह रहे पचानवे
फीसदी लोग आप्रवासियों की
संतान हैं जो मुख्यरूप से
उत्तर पश्चिम और कुछ उत्तरपूर्व
से आए। ये तथ्य अपने देश को
जानने की दृष्टि से ज्यादा
महत्वपूर्ण है,
इसलिए कुछ
विस्तार में जाना समीचीन
होगा।विशेष जानकारी के लिए
केजीएफइंडिया डॉट ओआरजी पर,
कालीदास
गालिब एकेडमी फॉर म्युचुअल
अंडरस्टैंडिंग पढें।


उर्दू
के महान शायर फिराक गोरखपुरी
लिखते हैं--
“सर
जमीन-ए-हिंद
पर आवाम-ए-आलम
के फिराक़ क़ाफ़िले गुजरते
गए हिंदुस्तान बनता गया”
यानी,
हिंदुस्तान
की सरजमीं पर दुनियाभर के
लोगों का कारवां आता रहा और
भारत का निर्माण होता रहा।
तब
सवाल उठता है कि भारत के मूल
निवासी कौन हैं?
एक समय
ऐसा माना जाता था कि द्रविड़
यहां के मूल निवासी थे।
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