यह
लेख सुप्रीमकोर्ट के पूर्व
न्यायमूर्ति और भारतीय प्रेस
परिषद के अध्यक्ष जस्टिस
मार्कंडेय काट्जू के उस अभिभाषण
का अनुवाद है,
जो
उन्होंने 27
नवंबर
2011को
काशी हिंदी विश्वविद्यालय,
वाराणसी
में दिया था।
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भारत
के मूल निवासी कौन थे?
एक
समय ऐसा माना जाता था कि द्रविड़
भारत के मूल निवासी थे। हालांकि
आम तौर पर इस दृष्टिकोण को
स्वीकार कर लिया गया है कि
भारत के मूल निवासी पुरा-द्रविड़
अबोरजीन्स थे,
जिनके
वंशज मुंडा भाषा-भाषी
इस समय छोटा
नागपुर,
छत्तीसगढ़,
झारखंड,
ओडीशा,
पश्चिम
बंगाल आदि जगहों पर रहते हैं।
नीलगिरी के तोरा और दूसरे
आदिवासी भारत के मूल निवासी
हैं। भारत में भारत के मूल
निवासियों की संख्या महज पांच
से सात प्रतिशत है। शेष 95
फीसदी
लोग अप्रवासियों के वंशज हैं,
जो
मूल रूप से उत्तर-पश्चिम
से आए हैं। द्रविड़ भी भारत
के बाहर से आये हुए माने जाते
हैं। जो संभवत:
पाकिस्तान
या अफगानिस्तान से आए हं,
इस
सिद्धांत को समर्थन द्रविड़ों
की एक भाषा ब्राहुई से मिलता
है। पश्चिमी पाकिस्तान में
करीब तीस लाख लोग ब्राहुई भाषा
बाते हैं। कैंब्रिज हिस्ट्री
ऑफ इंडिया, भाग-1
में
इस बात की जानकारी मिलती है।

चूंकि
भारत अप्रवासियों का देश है,
इसलिए
यहां धर्मों,
जातियों,
भाषाओं,
संस्कृतियों
और नस्लों की संख्या इतनी
ज्यादा है। यही वजह है कि कोई
छोटा है तो कोई बड़ा,
कोई
काला है तो कोई गोरा। कोई
काकेशियाई रूप रंग वाला है
तो कोई मंगोलियाई तो कोई
निग्रोयाई। उनके ड्रेस,
खानपान
और अन्य दूसरी चीजों में भी
व्यापक अंतर है।

दूसरी
ओर, जैसा
कि ऊपर कहा गया है,
भारत
विविधताओं वाला देश है और
हजारों सालों से ये बड़ी संख्या
में अप्रवासियों और आक्रमणकारियों
के भारत आने की वजह से हुआ है।
अप्रवासी और आक्रमणकारी जो
भारत आए, अपने
साथ विभिन्न तरह की संस्कृति,
भाषा,
धर्म
आदि लाए, जिसने
यहां विविधता पैदा हुई।

मेरे
विषयांतर होने का मकसद भारत
की भौगोलिक परिस्थितियों की
ओर इंगित करना था जिसने हमारे
पूर्वजों को विज्ञान और संस्कृति
के क्षेत्र में प्रगति के लिए
सक्षम किया। हमारा देश कृषि
के लिए उत्तम था इसलिए लोगों
के पास स्वतंत्र चिंतन के लिए
समय उपलब्ध था।
खगोलशास्त्र,
गणित,
औषधिविज्ञान,
अभियांत्रिकी
और ज्ञान-विज्ञान
के अन्य क्षेत्रों में अपने
पूर्वजों की उपलब्धियों की
चर्चा करने से पहले यहां यह
उल्लेख करना आवश्यक है कि
प्राचीन भारत में विज्ञान के
क्षेत्र में प्रगति में संस्कृत
भाषा का दो महान योगदान है--
- महान वैयाकरणाचार्य पाणिनी ने शास्त्रीय संस्कृत भाषा का निर्माण किया, जिसने हमारी वैज्ञानिक सोच को अत्यंत स्पष्ट, तार्किक और सुघड़ता(elegance) पूर्वक व्यक्त करने में हमें सक्षम बनाया। तथ्य ये है कि विज्ञान के लिए स्पष्टता की जरूरत होती है। विज्ञान के लिए एक ऐसी लिखित भाषा की जरूरत होती है, जो स्पष्ट और तार्किक हो।
- इसमें कोई संदेह नहीं है कि हरजगह मनुष्य की पहली भाषा बोली गई भाषा थी, लेकिन इससे आगे चिंतन का विकास एक ऐसे लिखित भाषा के बगैर नहीं हो सकता है, जिसे स्पष्टता से व्यक्त किया जा सके। वैज्ञानिक अपने मस्तिष्क में नए विचारों को सोच सकता है, लेकिन ये विचार दिमाग में भ्रमणशील, विसरित और असंगठित ही रह जाएंगे, जब तक इन्हें लिखित रूप में दर्ज नहीं किया जाए। लिखकर हम अपने विचारों स्पष्टता देते हैं और उन्हें संगत और तार्किक क्रम देते हैं। लिखित भाषा एक गणितीय प्रमेय की तरह होता है, जिसका प्रत्येक तार्किक चरण पिछले चरण का अनुगामी होता है।
पहले
विंदु के संदर्भ में विचार
करने लिए मैं थोड़ा और विषयांतर
होना चाहूंगा और थोड़ी गहराई
में जाकर संस्कृत भाषा के
विकास के बारे में थोड़ा बताना
चाहूंगा।
सच्चाई
है कि संस्कृत सिर्फ एक भाषा
नहीं है, बल्कि
संस्कृत कई हैं। जिसे आज हम
संस्कृत कहते हैं वास्तव में
वो पाणिनी की संस्कृत है और
यह शास्त्रीय संस्कृत या लौकिक
संस्कृत के नाम से जाना जाता
है और जो हमारे स्कूलों और
विश्वविद्यालयों में आजकल
पढ़ाई जाती है और इसी भाषा में
में हमारे वैज्ञानिकों ने
अपनी महान कृतियों की रचना
की। हालांकि इससे पहले भी कई
संस्कृत थीं,
जो
शास्त्रीय संस्कृत से थोड़ी
अलग थीं।
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