हिंदी शोध संसार

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

अब ईमानदार नहीं रह गए हैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह




जी हां, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब ईमानदार नहीं रह गए हैं। हो सकता है कुछ पत्रकार जिनका प्रधानमंत्री और सरकार से निहित स्वार्थ जुड़ा हो, वो प्रधानमंत्री को अब भी ईमानदार कह सकते हैं। उन्हें क्लीनचिट दे सकते हैं। उन्हें बेदाग और साफ-सुथरी छवि का इंसान कह सकते हैं। मगर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब ईमानदार नहीं रह गए हैं।
आश्चर्य की बात है कि देश में लाखों करोड़ का घोटाला हो जाने के बाद भी देश की सरकार की मुखिया को लोग ईमानदार बताते रहे हैं। मनमोहन को बेदाग और साफ-सुथरी छवि का नेता बताते रहे हैं। हालांकि ऐसा कहने वालों में ज्यादातर लोग कांग्रेस के हैं या कांग्रेस पोषित मीडिया के हैं। मीडिया क्यों कांग्रेस और केंद्र सरकार का गुणगान करती है और रामदेव और अन्ना हजारे जैसे लोगों का पर्दाफाश करने में जुटी रहती है। ये जानना ज्यादा मुश्किल नहीं है। अगर आपको इसकी सच्चाई जानना हो तो इस लिंक को पढ़ें । ऐसे बिके हुए मीडिया और पत्रकारों की बात करना ही बेकार है।
हाल में प्रधानमंत्री ने प्रिंट मीडिया के चुने हुए पांच वरिष्ठ संपादकों के साथ बैठक की। पत्रकारों के मुताबिक, प्रधानमंत्री आत्मविश्वास से लबरेज थे। वो बातचीत के बीच-बीत में हंसी-मजाक भी कर रहे थे। यानी साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि वो नर्वस बिल्कुल नहीं हैं। इन्हीं पत्रकारों में से एक ने राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के बारे में पूछा कि मणिशंकर अय्यर ने खेल घोटाले के बारे में आपको काफी पहले पत्र लिखा था। लेकिन आपने घोटाले की अनदेख की। तो प्रधानमंत्री ने कहा कि मणिशंकर अय्यर का पत्र आइडियोलॉजिकल(वैचारिक) था। प्रधानमंत्री के इस बयान के महज दो दिन बाद हेडलाइन्स टुडे ने मणिशंकर अय्यर के उस पत्र को चैनल पर दिखाया जिसमें साफ साफ कहा गया था कि राष्ट्रमंडल खेल आयोजन में बड़े पैमाने पर घोटाला हो रहा है। उनके एक नहीं बल्कि कई पत्र लिखे। इस पत्र में घोटाले के लिए साफ-साफ कलमाड़ी और उसके सहयोगियों को जिम्मेदार ठहराया गया। बताया गया कि खर्च की रकम को कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। मगर, प्रधानमंत्री ने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की। अब जब पत्रकारों ने इस घोटाले में उनकी भागीदारी के बारे में पूछा तो उन्हें मणिशंकर अय्यर के पत्र को ऑइडियोलॉजिकल पत्र करार दिया।
आखिर प्रधानमंत्री क्यों झूठ बोल रहे हैं। प्रधानमंत्री सच पर पर्दा डालकर अपनी कौन सी छवि पेश कर रहे हैं। इतना ही नहीं, खेल आयोजन की तैयारियों के दौरान खेल मंत्रालय के तात्कालीन कर्ता-धर्ताओं, मणिशंकर अय्यर, सुनील दत्त, एमएस गिल ने भी प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री पी चिदंबरम को घोटाले के बारे में बार-बार लिखा। लेकिन इन लोगों ने घोटाला होने दिया। प्रधानमंत्री ने तो मंत्रिसमूह के अनुरोधों को भी नजरअंदाज कर दिया और इसके लिए उन्होंने अजब-अनोखे तर्क भी दिए।
दूसरा मामला चालीख लाख करोड़ रुपये के कोयला घोटाले का है। इस घोटाले में प्रधानमंत्री सीधे-सीधे आरोपों के घेरे में आते हैं। 2006-10 तक कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अधीन रहा है और इस दौरान 73 कोल ब्लॉक प्राइवेट कंपनियों को बिना कोई पैसा लिए दिए गए। शर्त महज इतना था कि जितना टन कोयला निकाला जाए। 100 रुपये प्रति टन के हिसाब से सरकार को भुगतान किया जाए। शायद प्रधानमंत्री को भी मालूम होगा कि बाजार में कोयला का भाव 2000 रुपये प्रति टन है, ऐसे में कंपनियां सिर्फ 100 रुपये टन क्यों भुगतान करेगी। क्या ये राष्ट्रीय संपत्ति की लूट नहीं। क्या इस घोटाले के बाद भी प्रधानमंत्री ईमानदार बनने का ढ़ोंग करते रहेंगे।
कौन नहीं जानता है कि दशकों से बिहार अंधेरे में जीने के लिए मजबूर है। नीतीश कुमार ने सड़कें तो बना दी लेकिन बिहार में बिजली नहीं है। बिहार में बिजली पैदा करने के लिए सरकार ने दो कोल ब्लॉक दिए। लेकिन बाद में उन्हें ये कहकर रद्द कर दिया गया कि तय समय-सीमा तक कोयले का खनन नहीं किया गया। इस तरह सरकारी ऊर्जा कंपनियों को दिए गए चौदह कोल ब्लॉक रद्द कर दिए गए। लेकिन निजी कंपनियों को दिए गए कोल-ब्लॉकों में से एक को भी रद्द नहीं किया गया है.. जबकि ज्यादातर कोल ब्लॉकों में कोयले का खनन अभी शुरू भी नहीं हुआ है।
टूजी स्पेक्ट्रम में ए राजा, कनिमोझी सहित दर्जन भर लोग जेल की हवा खा रहे हैं, जबकि स्पेक्ट्रम नवीकरणीय संसाधन है। आप कितना भी स्पेक्ट्रम पैदा कर सकते हैं। वहीं कोयला ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है.. जो एकबार खत्म हो जाए तो उसे दोबारा स्थापित नहीं किया जा सकता है। ब्लैक गोल्ड कहे जाने वाले कोयले की लूट के लिए जिम्मेदार एक भी व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं हुई है। इस घोटाले में न सिर्फ कांग्रेस बल्कि भाजपा भी घेरे में है। हां भाजपा का पाप थोड़ा कम है। मगर जब दोनों घेरे में हैं, इसलिए इस घोटाले को मीडिया में सुर्खियां नहीं मिल पा रही है।
इस घोटाले के बाद भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ईमानदार बने हुए हैं। मीडिया कांफ्रेंस कर रहे हैं खुद को ताकतवर कह रहे हैं। संदेह का लाभ दिए जाने की भी बात कर रहे हैं। ये भी कह रहे हैं कि जितना दोषी उन्हें बताया जा रहा है वो उतने बड़े दोषी या गुनहगार हैं नहीं। क्या इस खुलासे के बाद भी प्रधानमंत्री ईमानदार बने रहेंगे। शायद नहीं।

1 टिप्पणी :

  1. इतने घोटाले होने के बाद भी यदि कोई प्रधानमंत्री को ईमानदार कहता है तब तो हमारे देश में सभी ईमानदार हैं :)

    घोटालों की अनदेखी कोई भी तभी करेगा जब वो खुद उस घोटाले में लिप्त हो

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