तेलंगाना का जिन्न बंद बोतल से एकबार फिर बाहर निकल आया है। इलाके के जनप्रतिनिधि सामूहिक इस्तीफा दे रहे हैं। अर्से बाद अलग तेलंगाना राज्य का मुद्दा राजनीति के केन्द्र में आ गया है। इलाके में बंद और रेल- रोको जैसे आंदोलन तेज हो गये हैं। केन्द्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार और आंध्रप्रदेश में एन.किरण कुमार रेड्डी की सरकार के सामने एकाएक राजनीतिक फैसले लेने की कठिन चुनौती आ खड़ी हुई है। पांच दशक पुराने तेलंगाना आंदोलन में शायद ये पहला मौका है जब इलाके के सभी जनप्रतिनिधि दलीय परिधि से ऊपर उठकर एक सूर में बोलते दिख रहे हैं।
आंध्र प्रदेश में उठे राजनीतिक संकट के बावजूद केंद्र सरकार फ़िलहाल वहां राष्ट्रपति शासन के बारे में विचार नहीं कर रही है।दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने साफ कर दिया है कि आंध्र प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की कोई संभावना नहीं है। लेकिन राजनीतिक विश्ले षकों का मानना है कि अगर राज्य में राजनीतिक गतिरोध इसी तरह चलता रहा तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
दरअसल, पृथक तेलंगाना राज्य के समर्थन में अभी तक आंध्रप्रदेश के 294 में सौ विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। इनमें से 45 कांग्रेस, 37 तेलुगु देशम पार्टी, 11 तेलंगाना राष्ट्र समिति, चार सीपीआई और 2 भाजपा के विधायक है। टीडीपी के बागी विधायक नागम जनार्दन रेड्डी ने पहले ही अपना इस्तीफ़ा दे दिया था। इस तरह तेलंगाना क्षेत्र के 119 में से 100 विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। बाक़ी बचे 19 में से सात विधायक मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमिन से जुड़े हैं जिसका हैदराबाद और आसपास के इलाके में खासा प्रभाव माना जाता है। लोकसत्ता पार्टी के प्रमुख और शहरी इलाके से विधायक जयप्रकाश नारायण भी इस्तीफा नहीं देने के पक्ष में हैं। एमआईएम आरंभ से हीं राज्य को दो भागों में बांटे जाने के ख़िलाफ़ है। विधायकों के साथ हीं तेलंगाना क्षेत्र से आने वाले सांसदों ने भी इस्तीफा देकर नेतृत्व के सामने परेशानी खड़ी कर दी है। तेलंगाना क्षेत्र के कई मंत्रियों ने भी इस्तीफे दे दिए हैं जिससे कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। सौ विधायकों के इस्तीफ़े के बाद विधानसभा में 194 सदस्य रह गए हैं। जानकार बताते हैं कि सदन में कांग्रेस को अभी भी बहुमत हासिल है और सरकार को तकनीकी रूप से कोई ख़तरा नहीं है। वैसे आंध्रप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष एन. मनोहर अभी विदेश दौरे पर अमरीका में हैं। कहा जा रहा है कि स्पीकर के स्वदेश लौटने तक फ़िलहाल यथास्थिति बनी रहने की संभावना है। पृथक तेलंगाना के मसले पर तेलंगाना क्षेत्र के 17 में से 13 सांसदों ने भी इस्तीफ़ा दे दिया है। इनमें से नौ कांग्रेस, दो टीआरएस और दो टीडीपी के सांसद हैं। इनके इस्तीफ़े को लेकर भी लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अभी तक कोई फ़ैसला नहीं लिया है। लेकिन केन्द्र की कांग्रेस सरकार के सामने समस्या गंभीर है।आंध्र प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी ग़ुलाम नबी आज़ाद, लोकसभा में कांग्रेस के नेता प्रणब मुखर्जी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल इस्तीफ़ा देनेवाले सांसदों को मनाने की लगातार कोशिश करते रहे हैं, लेकिन गतिरोध बरकरार है। तेलंगाना क्षेत्र के सांसद और विधायक अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। ऐसे में इस गतिरोध के जल्दी ख़त्म होने की उम्मीद नज़र नहीं आ रही है। उधर तेलंगाना जेएसी के 48 घंटे के बंद की सफलता ने राज्य प्रशासन के सामने गंभीर स्थिति उत्पन्न कर दी है। बंद के बाद टी. जेएसी ने इलाके की रेल सेवा ठप्प करने और सड़क पर हीं खाना बनाने और खाने जैसे कार्यक्रम करने की घोषणा कर रखी है। 5-6 जुलाई को 48 घंटे की बंद के दौरान हैदराबाद सहित तेलंगाना क्षेत्र के सभी दस ज़िलों में परिवहन सेवा बुरी तरह प्रभावित रही। राज्य परिवहन निगम की 10 हज़ार से ज़्यादा बसें नहीं चली और यात्रियों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी। ज्वाइंट एक्शन कमेटी की योजना राष्ट्रीय राजमार्गों पर अवरोध खड़े कर उन्हें जाम कर देने की है। आने वाले दिनों में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला तेज हो सकता है।
तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए इस्तीफा लोकसभा अध्यक्ष को फैक्स कर दिया है। उन्होंने कहा है कि यदि केन्द्र सरकार ने अपना वादा पूरा करते हुए अलग तेलंगाना प्रांत नहीं बनाया तो पूरे इलाके की स्थिति और खराब हो सकती है। वे याद दिलाते हैं कि नवंबर 2009 में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् ने आंदोलनों के दबाव में आकर हीं अलग तेलंगाना प्रांत गठित करने की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही थी।लेकिन फिर आंध्र प्रदेश में विरोध के चलते मामला रूक गया। बाद में श्रीकृष्ण आयोग का गठन किया गया, जिसने केंद्र सरकार को कई विकल्प सुझाए लेकिन तब से सरकार उन पर विचार करने का ही भरोसा दिला रही है। वैसे केसीआर ने हैदराबाद को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने और तेलंगाना को स्वायत परिषद बनाने के प्रस्ताव को पहले हीं खारिज कर दिया है।
केन्द्र की सरकार के साथ-साथ आंध्रप्रदेश में किरण कुमार रेड्डी को भी तेलंगाना का भूत पीछा कर रहा था। हाल तक वाईएस जगनमोहन की चुनौति झेल रहे किरण रेड्डी दल के विधायकों और मंत्रियों के बागी तेवर अपना लेने से पसोपेश में हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी टीडीपी के मुखिया चन्द्रबाबू नायडु को भी उनके विधायको ने दो टूक कह दिया है। विधायक कहते हैं कि जनता की भावना को देखते हुए उनके पास इस्तीफा देने के अलावे कोई विकल्प नहीं बचा था। सरकार के सामने संकट ये है यदि उसने तेलंगाना को लेकर कुछ कार्रवाई आगे बढ़ाई तो तटीय आंध्र और रायलसीमा इलाके में भी आंदोलन की आग भड़क सकती है।
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