हाल ही में कवि चाटुकारिता प्रसाद की नई कविta छपी। कविता इनके नाम के उलट है यानी इस कविता में कोई चाटुकारिता नहीं है। बल्कि खड़ी बोली में खरी-खरी कविता है।
दिल में उठा था एक अरमान
देश लूट कर भरें मकान
भ्रष्टाचार की जो राह चुनी
उसे नाम दिया भारत निर्माण
भारत लूट का सपना बुना
बेशर्मी बढ़ी कई गुना
इतने साफ, सरल सुलझे शब्दों में, आम आदमी की समझ को ध्यान में रखते हुए कविता सिर्फ और सिर्फ कवि चाटुकारिता प्रसाद ही लिख सकते हैं।
चाटुकारिता प्रसाद की इस कविता में शब्द है। तुक है। लय है। कविता गेय है। भाव है। बोध है। कविता मर्मस्पर्शी है। अगर अच्छे समालोचक की नजर पड़ जाए तो वो इस पर कम से कम 600 पृष्ठों की एक किताब तो लिख ही सकते हैं। भले उस किताब को कोई पढ़े या ना पढ़े।
जहां तक मेरे जैसे आम पाठकों का सवाल है। तो इनके पास ना तो शब्द है, ना तो समय और ना ही संसाधन। पहुंच और परिचय भी नहीं कि योजना को मूर्त रूप दिया जा सके।
हालांकि कवि, नहीं, नहीं, श्रद्धेय महाकवि चाटुकारिता प्रसाद की इस अनुपम कविता को पढ़कर मन में अनेक भाव अनायास ही जागृत हो उठे।
हाल के समय में राष्ट्रीय पटल पर कुछ ऐसी घटनाएं हुईं। जिन्होंने मेरी भावनाओं के जागरण या यूं कहें कि मेरी भावनाओं के दोहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ऐसी ही एक घटना है अन्ना हजारे का अनशन। इस अनशन ने कितने ही पापियों को पवित्र कर दिया या यूं कहें चोरों को साधु का चोला पहनने के लिए प्रेरित किया या मजबूर कर दिया। कुछ दमदार, कुछ चाटुकार, कुछ तिकड़मबाज बाबा के शरणों में आने को मजबूर हो गए। गिड़गिड़ाते हुए बोले, बाबा, ये समूचा संसार ईश्वर का अंश है। फिर आपमें और हममें अंतर कैसा। जो आप चाहते हैं वही तो हम भी चाहते हैं। आप चाहते हैं भ्रष्टाचार मिटाना तो हम कहां इसके विरोधी हैं। हम भी यही चाहते हैं। चलिए मिल बैठकर करते हैं कुछ ऐसा जिससे भ्रष्टाचारियों पर वज्रपात हो जाए।
अन्ना नरम पड़े। टेबल देखने दिखाने का कार्यक्रम शुरू हुआ। मगर, कहावत है न कि चोर चोरी से जाता है, तुम्मा फेरी से नहीं। ईश्वर के इन अविनाशी अंशों ने नया पैंतरा अख्तियार कर लिया। साम, दान, दंड और भेद। सारे दांव आजमाये जाने लगे।
दूसरी घटना है। गरीबी को उनकी औकात दिखाने की। कर्मचारियों के लिए छठा वेतन आयोग लागू हो गया। सांसदों के वेतन तीन गुना बढ़ गए। सांसद निधि दो करोड़ से बढ़कर पांच करोड़ हो गया। मगर, जब गरीबों की बारी आयी तो उनके गालों पर तमाचा जड़ दिया गया। कह दिया गया कि अगर तुम पंद्रह से बीस रुपये खर्च कर लेते हो तो तुम गरीब नहीं रहे और तुम्हें गरीबों के लिए चलायी जा रही किसी योजना का लाभ नहीं मिलेगा।
चावल पक गया ये जानने के लिए पूरी हांडी के चावल को देखने की जरूरत नहीं है। कम लिखा, भावनाओं को ज्यादा समझना।
देश की पूर्व प्रधानमंत्री ने बड़ा ही सुंदर नारा दिया था- गरीबी हटाओ। दशकों बीत गए। अब गरीबी राक्षसी सुरसा बनकर देश की सत्तर फीसदी आबादी को निगल जाना चाहती है।
कुछ सालों पर पहले आम आदमी की एक सरकार सत्ता में आई थी। उस सरकार के लिए सारा का सारा आम आदमी खास बन गया गया है। आम आदमी महंगाई में पिसती रही। सरकार जीडीपी विकास दर की राग अलापती रही। देश लुटता रहा। सरकार देश को लुटवाती रही। जब भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने की बात आई, तो सरकार उसे बचाने में जुट गई।
जिस भ्रष्टाचार के आरोप में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, उनके सचिव बेहुरा, बलवा सहित चौदह लोग जेल चले गए, उस घोटाले में सरकार को कोई घोटाला ही नजर नहीं है।
कवि चाटुकारिता प्रसाद ने जिस समय ये कविता लिखी होगी। उनके दिमाग में भी ऐसी भावनाओं का महासमुंद्र हिलोरे ले रहा होगा। वर्ना क्या मजाल कि वो ऐसी कविताएं लिख पाते।
दिल में उठा था एक अरमान
देश लूट कर भरें मकान
भ्रष्टाचार की जो राह चुनी
उसे नाम दिया भारत निर्माण
भारत लूट का सपना बुना
बेशर्मी बढ़ी कई गुना
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