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सोमवार, 30 मई 2011

कालेधन पर सरकार दबाव में





स्वामी रामदेव
विदेशों और देश में जमा कालेधन पर योगगुरु स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे के नेतृत्व में इंडिया अगेनस्ट करप्शन की मुहिम रंग लाती दिख रही है। योगगुरु स्वामी रामदेव के देशव्यापी आंदोलन से सरकार जबरदस्त दबाव में है। अपनी जिम्मेदारियों के बचने, लोगों को गुमराह करने, तथ्यों को छुपाने, सत्य को नकारने की सरकार की चालाकी बेधार सी होती दिख रही है। हालांकि हो सकता है कि सरकार की वर्तमान कार्रवाई भी उसी चालाकी का हिस्सा हो, मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सरकार जबरदस्त दबाव में है और उसे चालाकी का तरीका भी बदलना पड़ रहा है। कालेधन के मुद्दे पर केंद्र की पूरी सरकार और रिमोट कंट्रोल की भूमिका संदेह के घेरे में है। इससे के लिए सबसे ज्यादा हमारे कथित स्वच्छ छवि के प्रधानमंत्री जिम्मेदार है। क्योंकि भ्रष्टाचार की जननी कालेधन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री कतई गंभीर नहीं दिख रहे हैं। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी लोगों को बार-बार और हर बार गुमराह कर रहे हैं। चिदंबरम, जो कि पूर्व वित्तमंत्री रहे हैं, उन्होंने कालेधन के मुद्दे पर लीपापोती करने की पूरी कोशिश की। लेकिन वर्तमान वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी, चिदंबरम से भी कई कदम आगे निकल गए हैं। कालेधन के मुद्दे पर उन्होंने बार सुप्रीमकोर्ट तक को गुमराह करने की कोशिश की। सुप्रीमकोर्ट की बार-बार की फटकार के बावजूद वो कोई कदम उठाने के लिए तैयार नहीं हुए। वो कोर्ट के सामने कानूनी पेंचीदगियों, संधियों का रोना रोते रहे। वो बार-बार कहते रहे कि वो विदेशों से कालाधन लाने के लिए विभिन्न देशों के साथ संधि कर रहे हैं, मगर यहां जानकारी की बात ये है कि वर्तमान में की गई संधि अप्रैल 2011 के बाद से जमा किए गए धन को ही भारत लाने में मदद कर सकता है। लेकिन जो धन अब तक लूटकर विदेश भेजे गए हैं उनका क्या होगा। वित्त मंत्री इसी सवाल पर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। वो कह रहे हैं कि संधि होगी तो पैसा आएगा मगर, ये नहीं कह रहे हैं सिर्फ वो पैसा आएगा जो अप्रैल 2011 के बाद जमा किए गए हैं। इससे पहले साठ सालों तक देश को लूटकर जो पैसा विदेशों में जमा हुआ है। उस पैसे का क्या होगा, वो पैसा देश कैसे आएगा, वित्तमंत्रीजी इस सवाल का जवाब कौन देगा। आप इस तथ्य को क्यों छिपा रहे हैं। इस पर भी वार्ता होगी।
वित्तमंत्री जी उन 16 या 18 लोगों के नामों का खुलासा करने के लिए भी तैयार नहीं हैं, जिनकी सूची जर्मन सरकार ने भारत सरकार को सौंपी। वित्तमंत्री जी कह रहे हैं कि अगर एकबार हम खुलासा कर देंगे तो दूसरा देश हमें दुबारा जानकारी नहीं देगा। जब बार-बार कोर्ट ने फटकार लगाई तो बोले इन लोगों पर कार्रवाई शुरु होने के बाद इनके नामों का अपने आप खुलासा हो जाएगा। अब सवाल है कि जब दो साल पहले ही जर्मन सरकार ये सूची भारत सरकार को सौंप चुकी है तो सरकार ने अभी तक किसी भी देशद्रोही के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की। ये वो सवाल है जो सरकार से पूछ जा सकते हैं। इन सवालों पर न सिर्फ मनमोहन और प्रणब मुखर्जी चुप्पी साधे हुए हैं, बल्कि सरकार का कोई बंदा कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है। त्याग की देवी सोनिया अम्मा तो गरिमा की प्रतिमूर्ति हैं जब उन्हें जावेद अख्तर जी पन्ने में लिखकर देंगे, तभी वो बुनकरों और अकलियतों की समस्याओं पर प्रकाश डालेंगी। उनके अधिकार में तो सिर्फ और सिर्फ त्याग बदा है- त्यागे वा अधिकास्तो मा प्रश्नोत्तर कदाचने...
अब बात दबाव में जी रही सरकार की और कार्रवाई के ड्रामें की।
वित्तमंत्री मंत्रालय के अनुमान है कि विदेशी बैंकों में भारत के जो धन जमा हैं वो 462 बिलियन से 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकते हैं। पता है एक ट्रिलियन राशि कितनी होती है। ये राशि जापान की कुल जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है। यानी आपका जापान देशद्रोहियों ने विदेशी बैंकों में कैद करा रखा है। ये अनुमान वित्तमंत्रालय का है। इस अनुमान के बावजूद वित्तमंत्रालय पिछले सात सालों से चुप्पी साधे हुए है। 2006 में स्वीस बैंक एसोसिएशन ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत का 1450 बिलियन डॉलर उनके बैंकों में जमा है पर आम आदमी की सरकार इस पर मौन धारण किए रही। तब जाकर स्वामी रामदेव को ये आंदोलन खड़ा करना पड़ा।
रामदेव के आंदोलन से डरकर सरकार फिर चालाकी भरा कदम उठाने के लिए मजबूर हो रही है। सरकार ने अगले सोलह महीनों में देश और विदेश में जमा कालेधन का गहन अध्ययन करने का फैसला किया(सोलह महीनों में सिर्फ अध्ययन होगा, पैसा आएगा नहीं, फिर कोई बेईमान सरकार इसे छिपाने में लग जाएगी)
मनमोहन और सोनिया
सरकार देश की तीन शीर्ष संस्थानों को अध्ययन की जिम्मादारी सौंपी है, ये संस्थान हैं- नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाईड इकोनॉमिक रिसर्च, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फिनायंस एंड पोलिसी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिनायंसियल मैनेजमेंट(आपने नाम नहीं सुना न। कोई बात नहीं, नाम बड़े और दर्शन छोटे इन्हें के लिए कहा गया है, हैं ये नेशनल इंस्टीट्यूट पर उपलब्धि के नाम पर सिफर)
चालाकी यहां भी देखिए ये संस्थान कालेधन की पहचान करेगी, उन्हें विदेश जाने से रोकेगी और उन्हें टैक्स के दायरे में लाएगी। मतलब समझ गए- देशद्रोहियों द्वारा जमा किया गया ये धन राष्ट्रीय संपत्ति घोषित नहीं होगी, बल्कि थोड़ा बहुत टैक्स लेकर देशद्रोहियों को फिर कालामारी करने की छूट मिल जाएगी।
इतना ही नहीं, डरी हुई सरकार ने अधिकारियों की एक उच्चस्तरीय समिति का भी गठन किया है। ये समिति कालेधन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने के संवैधानिक पहलुओं की पड़ताल करेगी।
पिछले सप्ताह सीबीडीटी के अधिकारियों ने हरिद्वार में स्वामी रामदेव से मुलाकात की और विदेशों में जमा कालेधन को स्वदेश लाने के उपायों पर चर्चा की।
सरकार कालेधन पर इतने दिनों तक मौन क्यों रही। इस सवाल का जवाब साफ है कि देश में चालीस सालों से भी अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी से जुड़ें हजारों लोगों का पैसा विदेशी बैंको में जमा है। ऐसा नहीं है कि बीजेपी नेताओं के पैसा इन बैंकों में जमा नहीं होगा। इनका भी पैसा होगा। मगर इन खातों की संख्या कांग्रेसी खातों और पैसों के मुकाबले बहुत कम होगी। यही वजह है कि बीजेपी भी कभी-कभी सरकार के सुर में सुर मिलाने के लिए मजबूर होती है।
जैसाकि जनता पार्टी के नेतासुब्रह्मण्य स्वामी का दावाहै कि सोनिया गांधी का करीब एक लाख करोड़ रुपया स्वीस बैठ में जमा है और वो उन बैंकों का नाम भी जानते हैं। स्वामी का कहना है कि अगर इन धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया जाय तो ये धन स्वतह स्वदेश आ जाएगा। इतना ही नहीं, एक स्वीस पत्रिका के हवाले से सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ वकील रामजेठ मलानी ने भी दावा किया था कि राजीव गांधी का स्वीस बैंक में एकाउंट है। कांग्रेस पार्टी ने कभी इस खबर का खंडन नहीं किया यानी मौनं स्वीकारं लक्षणम्।
हां आडवाणी ने हाथ जोड़कर सोनिया से माफी मांग ली। शायद आडवाणी डर गए। जब भाजपा की उच्चस्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गांधी नेहरू परिवार का खाता स्वीस बैंक में है तो आडवाणी ने माफी क्यों मांग ली। शायद आडवाणी डर गए।
तथ्यों से साफ है कि सरकार कालेधन को गंभीरता से क्यों नहीं ले रही है।
इस वर्ष घोटाले के जितने मामले सामने आए हैं उससे साफ है कि लुटेरे हमारे देश को किस कदर लूट रहे हैं और लूट का ये पैसा कहा जा रहा है।
जेवीजी, बर्ल इंडिया, पर्ल इंडिया, लाइफ सॉफ्ट, ड्यो सॉफ्ट जैसी हजारों कंपनियों किस कदर देश की भोली-भाली जनता को लूटकर गुम हो गई. फिर देश की जनता स्पीक एशिया जैसी कंपनियों के हाथों लूटने के लिए तैयार है। ये पैसा कहां जाएगा। कहने की जरूरत नहीं है। सरकार इन कंपनियों को क्यों चलने दे रही है। ये भी कहने की जरूरत नहीं है।

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