कांग्रेस जवान हो गई है। उसमें जवानी के लक्षण दिखने लगे हैं। मसलन, वो साधु, संत, संन्यासी, ठग में अंतर करना सीख गई है. मगर, कांग्रेस के जवान होने पर कभी कभी शक भी हो जाता है। मसलन, वो एक ही व्यक्ति को एक क्षण में साधु मानती है, तो अगले ही क्षण उसे ठग मान लेती है।
जब उसे साधु मानती है तो उसके सामने साष्टांग दंडवत हो जाती है मगर, जब ठग मानती है तो उसे गालियां देती है। उसपर घिनौने आरोप लगाती है। अब कांग्रेस में ये कौन से विशेष लक्षण प्रकट हो रहे हैं ये कौन सा "यौवन रोग" है, इसे तो कांग्रेस के नामी गिरामी "--लॉजिस्ट” ही बता सकते हैं। लेकिन इतना कहना में हमें कोई परहेज नहीं है कि कांग्रेस जवान हो गई है। कांग्रेस की जवानी के लक्षण अब साफ परिलक्षित होने लगे हैं।
रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार और कालाधन के मुद्दे पर अनशन पर बैठे बाबा रामदेव और उनके अनुयायियों पर आधी रात को उसके लठैतों का हमला कांग्रेस पर आई नयी जवानी का ट्रेलर मात्र है। पूरी फिल्म दिखना अभी बाकी है। कांग्रेस ने गली-कूचों में खिलने को बेताव कलियों को चेतावनी दी है कि अपनी यौवन को संभाल कर रखो, बर्ना हम उसे कुचल देंगे, मसल देंगे। क्योंकि तुम्हारी जवानी को कुचलना और मसलना हमारी मजबूरी है।
कांग्रेस के बचपन की बात है। उस समय चीन ने हिंदी-चीनी भाई-भाई कहते हुए भारत पर हमला कर दिया। कांग्रेस छोटी थी। कबूतर उड़ाने का समय था। माकूल जवाब नहीं दे सकी। मगर कांग्रेस ने चीन की "हिंदी-चीनी भाई भाई" नीति से सीख ली। और उस शिक्षा पर अमल उसने पांच दशक बाद रामलीला मैदान में 4जून 2011 की आधी रात को किया।
अनशन कर रहे बेगुनाह, निरीह, निहत्थे लोगों पर अपने गुंडों और लठैतों से हमला करवा दिया। सोये हुए लोगों को जमकर पीटा, चारों और से घिरे बेकसूर लोगों पर आंसू गैस के गोले छोड़े, फायरिंग की। मंच में आग लगा दी। निहत्थे लोगों पर बर्बता की ऐसी दास्तां शायद ही दिल्ली ने कभी देखी होगा। कई लोग इसे अलोकतांत्रिक, मानवाधिकार का उल्लंघन, नागरिक अधिकारों का हनन मानते हैं। सब कुछ उसी स्टाइल में हुआ जैसा चीन ने 1962 में अंजाम दिया। एक तरफ हिंदी-चीनी भाई-भाई, दूसरी तरफ हमला। कांग्रेस ने भी यही रणनीति अपनाई, एक तरफ बाबा से बातचीत, दूसरी तरफ बाबा और उनके अनशन में आए महिलाओं, बच्चों, निहत्थे लोगों पर हमला। इस हमले ने कोई सवाल नहीं उठाए। आखिर सवाल तो लोकतंत्र में उठते हैं। अलोकतंत्र में सवाल उठने या उठाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
अनशन कर रहे बेगुनाह, निरीह, निहत्थे लोगों पर अपने गुंडों और लठैतों से हमला करवा दिया। सोये हुए लोगों को जमकर पीटा, चारों और से घिरे बेकसूर लोगों पर आंसू गैस के गोले छोड़े, फायरिंग की। मंच में आग लगा दी। निहत्थे लोगों पर बर्बता की ऐसी दास्तां शायद ही दिल्ली ने कभी देखी होगा। कई लोग इसे अलोकतांत्रिक, मानवाधिकार का उल्लंघन, नागरिक अधिकारों का हनन मानते हैं। सब कुछ उसी स्टाइल में हुआ जैसा चीन ने 1962 में अंजाम दिया। एक तरफ हिंदी-चीनी भाई-भाई, दूसरी तरफ हमला। कांग्रेस ने भी यही रणनीति अपनाई, एक तरफ बाबा से बातचीत, दूसरी तरफ बाबा और उनके अनशन में आए महिलाओं, बच्चों, निहत्थे लोगों पर हमला। इस हमले ने कोई सवाल नहीं उठाए। आखिर सवाल तो लोकतंत्र में उठते हैं। अलोकतंत्र में सवाल उठने या उठाने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
लोग इंतजार करते रहे कि जवानी जलवे दिखाती है, नखरे करती है, बहाना बनाती है। लेकिन इसबार ना कोई नखरा, ना कोई जलवा और ना कोई बहाना। मामले की जांच कराना तो दूर, गलती मानने के लिए तैयार नहीं। दरअसल, जवानी तो जवानी है।
जवानी अकेले नहीं आती है, बल्कि जवानी किसी और भी लाती है। तो जवान सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बल्कि दिल्ली पुलिस भी हुई है। क्राइम की राजधानी बन चुकी दिल्ली में जब गुंडों, बलात्कारियों, हत्याराओं से निपटने की बात आती है तो दिल्ली पुलिस नामर्द बन जाती है। लेकिन जब निहत्थे, निरअपराध, निर्दोष, बेकसूर, भूखे-प्यासे लोगों पर मर्दागनी आजमाने की बात आती है तो दिल्ली पुलिस जवान हो जाती है। दिल्ली पुलिस कांग्रेस के इशारे पर इस बार जवान हो गई। उसने अपनी मर्दानगी का खुलेआम प्रदर्शन किया। इसके लिए करीब करीब नामर्द- नपुंसक हो चुकी दिल्ली पुलिस को धन्यवाद दिया जाना चाहिए।
जवानी अकेले नहीं आती है, बल्कि जवानी किसी और भी लाती है। तो जवान सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बल्कि दिल्ली पुलिस भी हुई है। क्राइम की राजधानी बन चुकी दिल्ली में जब गुंडों, बलात्कारियों, हत्याराओं से निपटने की बात आती है तो दिल्ली पुलिस नामर्द बन जाती है। लेकिन जब निहत्थे, निरअपराध, निर्दोष, बेकसूर, भूखे-प्यासे लोगों पर मर्दागनी आजमाने की बात आती है तो दिल्ली पुलिस जवान हो जाती है। दिल्ली पुलिस कांग्रेस के इशारे पर इस बार जवान हो गई। उसने अपनी मर्दानगी का खुलेआम प्रदर्शन किया। इसके लिए करीब करीब नामर्द- नपुंसक हो चुकी दिल्ली पुलिस को धन्यवाद दिया जाना चाहिए।
जवानी तो जवानी है।
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
भ्रष्टाचार के इस सवाल की उपेक्षा क्यों?