| कांग्रेस के पंचस्तंभ | 
सचमुच कांग्रेस का कोई जवाब नहीं है। सत्ता के लिए ये कुछ भी कर सकती है। देश को जाति-धर्म के नाम पर टुकड़ों में बांट सकती है। अपने विरोधियों को कुचल सकती है। उन्हें सलाखों के अंदर डलवा सकती है। अपने विरोध में चलाए जा रहे आंदोलन को हर हाल में दबा सकती है। विरोधियों को पनपने नहीं दे सकती है। अपने स्वामी भक्तों से दूसरों के ऊपर कीचड़ उछला सकती है। मगर, त्याग की देवी सकती है कि कोई उनकी निष्ठा पर सवाल नहीं खड़ा करे। 
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| त्याग की देवी सोनिया गांधी | 
कांग्रेस के इतिहास को देखें तो आपको एक भी आरोप गलत नहीं लगेगा। कांग्रेस इसका खामियाजा भी भुगत चुकी है। मगर, अतीत से वो कुछ सीखने का नाम नहीं लेती है।  
अयोग्य लोग गांधी-नेहरू परिवार का चमचागिरी करके ऊंचा पद और ऊंची प्रतिष्ठा पा लेते हैं। इसके लिए वो किसी हद तक गिर सकते हैं। सिब्ते रजी, बूटा सिंह, हंसराज भारद्वाज के उदाहरण किसी से छिपा हुआ नहीं है। कानून-संविधान के नाम पर संविधान की हत्या करते हैं। नियम कायदे के नाम पर नियम कायदे की धज्जियां उड़ाते हैं। लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र का खून बहाने से नहीं चूकते हैं।  
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| स्वामी रामदेव | 
 हाल के दिनों में इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं। सबसे ताजा उदाहरण स्वामी रामदेव प्रकरण है। स्वामी रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चला रहे हैं। वो एक लाख किलोमीटर की देश यात्रा पूरी करने वाले हैं। चार जून से वो दिल्ली में आमरण अनशन शुरू करने वाले हैं। लेकिन कांग्रेस ने उनके आंदोलन को कुचलने की तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस जयप्रकाश नारायण और अन्ना हजारे के आंदोलन को देख चुकी है। अन्ना हजारे के आंदोलन ने किस तरह इसे झुकने के लिए मजबूर कर दिया, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। अगर अन्ना के आंदोलन के स्वरूप और इसमें लोगों की भागीदारी के बारे में कांग्रेस को पता होता तो कांग्रेस उस आंदोलन को भी कुचल देती। मगर उसे उसकी व्यापकता के बारे में पता नहीं था। उसवक्त कांग्रेस का खुफिया ढांचा कमजोर पड़ गया और वो उसे समझने में नाकाम रही। वो समझ रहे थे कि निर्बल से लगने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस की भ्रष्ट और बेईमान राजनीति का शिकार बनी किरण बेदी, सुप्रीमकोर्ट के वकील प्रशांत भूषण आखिर कर ही क्या सकते हैं। उनके आंदोलन में कौन शामिल होगा। कौन मोमबत्तियां जलाएगा, कौन उपवास करेगा। कौन नारे लगाएगा। लेकिन, आंदोलन में अनाम अन्ना के शामिल होते ही आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूप ले लिया। आखिर आंदोलनकारियों के सामने सरकार को झुकना पड़ा। बेमोल बिकने वाले चमचे जहां-तहां कहते नजर आए कि जो अन्ना चाहते हैं वही सरकार भी चाहती है। अगर सरकार भी यही चाहती है तो वो डफली क्यों बजाती फिर रही है। लुटेरे देश लूट रहे हैं और कांग्रेस पूरी सत्ता और शक्ति के साथ लुटेरों की मदद कर रही है।
हाल के दिनों में इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं। सबसे ताजा उदाहरण स्वामी रामदेव प्रकरण है। स्वामी रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चला रहे हैं। वो एक लाख किलोमीटर की देश यात्रा पूरी करने वाले हैं। चार जून से वो दिल्ली में आमरण अनशन शुरू करने वाले हैं। लेकिन कांग्रेस ने उनके आंदोलन को कुचलने की तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस जयप्रकाश नारायण और अन्ना हजारे के आंदोलन को देख चुकी है। अन्ना हजारे के आंदोलन ने किस तरह इसे झुकने के लिए मजबूर कर दिया, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। अगर अन्ना के आंदोलन के स्वरूप और इसमें लोगों की भागीदारी के बारे में कांग्रेस को पता होता तो कांग्रेस उस आंदोलन को भी कुचल देती। मगर उसे उसकी व्यापकता के बारे में पता नहीं था। उसवक्त कांग्रेस का खुफिया ढांचा कमजोर पड़ गया और वो उसे समझने में नाकाम रही। वो समझ रहे थे कि निर्बल से लगने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस की भ्रष्ट और बेईमान राजनीति का शिकार बनी किरण बेदी, सुप्रीमकोर्ट के वकील प्रशांत भूषण आखिर कर ही क्या सकते हैं। उनके आंदोलन में कौन शामिल होगा। कौन मोमबत्तियां जलाएगा, कौन उपवास करेगा। कौन नारे लगाएगा। लेकिन, आंदोलन में अनाम अन्ना के शामिल होते ही आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूप ले लिया। आखिर आंदोलनकारियों के सामने सरकार को झुकना पड़ा। बेमोल बिकने वाले चमचे जहां-तहां कहते नजर आए कि जो अन्ना चाहते हैं वही सरकार भी चाहती है। अगर सरकार भी यही चाहती है तो वो डफली क्यों बजाती फिर रही है। लुटेरे देश लूट रहे हैं और कांग्रेस पूरी सत्ता और शक्ति के साथ लुटेरों की मदद कर रही है।  तो बात कर रहे थे बाबा रामदेव की। रामदेव 4 जून से नई दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन शुरू करने वाले हैं। बाबा रामदेव के आंदोलन से कांग्रेस पूरी तरह डर चुकी है। कांग्रेस को खूब पता है कि बाबा रामदेव कितना बड़ा आंदोलन खड़ा सकते हैं। देश को करोड़ों लोग बाबा रामदेव के एक आह्वान पर उनके साथ आंदोलन में कूद सकते हैं। कांग्रेस पूरी तरह डर चुकी है। उसने प्रशासनिक तौर पर मीडिया में खबर दे दी कि रामलीला मैदान में चार तारीख को ज्यादा से ज्यादा दस हजार लोगों को ही इकट्ठा होने की अनुमति है। बाबा यहां सिर्फ योग शिविर चला सकते हैं। बाबा यहां कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं कर सकते हैं। उपवास और अनशन नहीं कर सकते हैं।  
 मध्यप्रदेश में राजनीतिक बाजी हार चुके और राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह बार-बार बाबा रामदेव को धमकी दे रहे हैं कि अगर बाबा आंदोलन छेड़ते हैं तो सरकार उनके खिलाफ जांच बैठा देगी। सरकार उनके खिलाफ सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग.. आदि आदि एजेंसियों को लगा लेगी। दिग्विजय सिंह के बाद कल कांग्रेस सांसद संजय निरूपम ने भी इसी अंदाज में बाबा को धमकी दी। कहा, बाबा बाबागिरी करे, योग सिखायें तो ठीक है मगर राजनीति में कूदेंगे तो बदनामी के छींटे उनके ऊपर भी पड़ेंगे। निरूपम ने भी बाबा को धमकी डे डाली कि अगर बाबा आंदोलन खड़ा करते हैं तो सरकार उनकी संपत्ति की जांच कराएंगी।
मध्यप्रदेश में राजनीतिक बाजी हार चुके और राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर चुके कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह बार-बार बाबा रामदेव को धमकी दे रहे हैं कि अगर बाबा आंदोलन छेड़ते हैं तो सरकार उनके खिलाफ जांच बैठा देगी। सरकार उनके खिलाफ सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग.. आदि आदि एजेंसियों को लगा लेगी। दिग्विजय सिंह के बाद कल कांग्रेस सांसद संजय निरूपम ने भी इसी अंदाज में बाबा को धमकी दी। कहा, बाबा बाबागिरी करे, योग सिखायें तो ठीक है मगर राजनीति में कूदेंगे तो बदनामी के छींटे उनके ऊपर भी पड़ेंगे। निरूपम ने भी बाबा को धमकी डे डाली कि अगर बाबा आंदोलन खड़ा करते हैं तो सरकार उनकी संपत्ति की जांच कराएंगी।  ये सिर्फ धमकी नहीं, बल्कि एक प्रकार का ब्लैकमेलिंग है।  
अगर बाबा ने गलत तरीके से धन जमा किया है तो बाबा की संपत्ति की जांच पहले भी की जा सकती है। संपत्ति की जांच के लिए बाबा के आंदोलन की प्रतीक्षा क्यों की जा रही है। क्या ये ब्लैकमेलिंग नहीं है। तुम आंदोलन छोड़ो, मैं तुम्हें भ्रष्टाचार करने की छूट दूंगा। तुम आंदोलन करते हो तो मैं तुम्हें जेल भेजवाऊंगा। तुम्हें बदनाम करूंगा। तुम्हें जलील करूगा।  
बाबा राजनीति में कूदते हैं तो उनकी संपत्ति की जांच होगी। क्या सरकार उस हर व्यक्ति की संपत्ति की जांच कराती है जो राजनीति में कूदता है। अगर हां तो राजनेताओं के पास करोड़ों की संपत्ति है वो कहां से आए। क्या राजनीति में आने से पहले कमाया है या राजनीति में आने के बाद। उनके संपत्तियों की जांच क्यों नहीं होती। क्योंकि मुलायम सिंह यादव, लालूप्रसाद यादव, मायावती के खिलाफ सीबीआई दो बार आगे और तीन बार पीछे होती है। क्यों नहीं इनकी संपत्ति की जांच होती है। क्यों चारा घोटाले के बाद भी लालू यूपीए सरकार में रेलमंत्री बन जाते हैं। क्योंकि मुलायम और माया वक्त-बे-वक्त यूपीए के समर्थन में पत्ते खोले बैठे रहते हैं। ये बात किसी से भी छिपी हुई नहीं है।  
लोकपाल विधेयक ड्राफ्टिंग समिति के सह-अध्यक्ष शांति भूषण और प्रशांत भूषण के खिलाफ क्यों फर्जी सीडी बनाई जाती है। क्यों दिग्विजय सिंह उस सीडी के बचाव में आ खड़े होते हैं।  
कथित त्याग की देवी सोनिया गांधी क्यों नहीं अपने चमचों की जुबान पर ताला लगाती है। क्यों उन्हें अनर्गल वार्तालाप करने देती है। दरअसल, इन जुबानों की निर्माता-निर्देशक सोनिया अम्मा ही है। उन्हीं के रिमोट कंट्रोल से ही ये अपने ट्यून बनते हैं। मगर, जब इनसे कोई पूछता है तो कहती हैं तो कोई उनकी निष्ठा पर सवाल ही नहीं उठाए। अगर नजर देश से इतर देश की सत्ता पर ही हो तो सवाल उठेंगे ही।  
रामदेव आंदोलन करेंगे और उनका आंदोलन सफल भी होगा। क्योंकि लुटेरों और उनको सह देने वालों पर लगाम लगना जरूरी है।  
आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस ने चालीस सालों तक देश पर शासन किया मगर, देश की अस्सी प्रतिशत जनता बीस रुपये से कम पर गुजारा करने के लिए मजबूर है और उसी देश में 25 अरब डॉलर की संपत्ति विदेशों में जमा करा चुका हसन अली, ए राजा मौज कर रहा है।  
कपिल सिब्बल की धूर्त मुस्कुराहत क्या-क्या नहीं कह देती है। कपिल सिब्बल के पास इस सवाल का क्या जवाब है कि जब टूजी घोटाला हुआ ही नहीं, तो पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, डीएमके सांसद कन्नीमोझी, बेहुरा,  बलवा जेल में क्यों हैं। आखिर इन लोगों को बचान के आरोप में उन्हें अपना पद क्यों नहीं छोड़ना चाहिए।
मगर त्याग की देवी सोनिया अम्मा ना तो दिग्विजय सिंह से सवाल पूछ सकती है और ना ही कपिल सिब्बल से.. क्योंकि देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में सबको.. जो मन है जो कहने का अधिकार है। लूटने का अधिकार है। कांग्रेस को बचाने का अधिकार है। 
फिर भी सोनिया की निष्ठा पर सवाल मत उठाइए। क्योंकि वो त्याग की देवी है। उन्हें प्रधानमंत्री पद का त्याग किया है।  
  
 
 
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