हिंदी शोध संसार

बुधवार, 11 मई 2011

गरीबी खत्म करने का सबसे अचूक तरीका, पेटेंट धारक- भारत सरकार

सरकार को पसंद नहीं है कि कोई हिंदुस्तान का कोई भी व्यक्ति गरीब रहे। प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, योजना आयोग इस तरह की मंशा अक्सर जताते रहे हैं। अक्सर दावा करते हैं कि उनकी सरकार आम आदमी की सरकार है और वो हिंदुस्तान के किसी भी व्यक्ति को गरीब देखना नहीं चाहती हैं। मजे की बात है कि यूपीए अध्यक्ष और हमारे देश में एकमात्र त्याग की प्रतिमा सोनिया भी यही चाहती हैं। यही वजह कि वो राष्ट्रीय सलाहकार परिषद यानी एनएसी पर गरीबी हटाओ का राग छेड़ रही हैं। उनकी मंडली के कुशल कारीगर और महान सामाजिक कार्यकर्ता की पदवी से विभूषित मान्यवर भी यही चाहते हैं कि देश में कोई भूखा नहीं रहे।

जब इतनी सारी महान हस्तियां चाहती हैं देश में कोई भूखा नहीं रहे, कोई गरीब न रहे आखिर ये सुनिश्चित करने के लिए प्रयास क्यों नहीं होंगे?

तो आपकी जानकारी के लिए बता कि स्वयंनिर्मित अलंकारों से विभूषित ये विद्वत मंडली और कार्य कुशल ये सुजान देश से गरीबी दूर करने के लिए दिनरात एक करके मेहनत कर रहे हैं। और इन्होंने अपनी मेहनत का नमूना सुप्रीमकोर्ट में पेश किया।

ये रिपोर्ट योजना आयोग है जो इन्होंने सुप्रीमकोर्ट में पेश किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जो शहरी(शहर में रहने वाला व्यक्ति) एक महीने में 578 रुपये खर्च कर लेता है वो गरीब नहीं है। यानी अर्थात आप शहर में रह रहे हैं और हर रोज उन्नीस रुपये से ज्यादा खर्च करते हैं तो सरकार आपको गरीब नहीं मानती है। जब आप गरीब नहीं हैं तो आपको गरीबों को मिलने वाली सरकारी सुविधाएं और सब्सिडीज कैसे मिलेंगी।
समझ गए न। सरकार गरीब उन्मूलन के लिए कितना काम कर रही है। उसे हम गरीबों का कितना ख्याल है। वो गरीबों का कितना बड़ा हमदर्द है। वो आम आदमी की सरकार है।

योजना आयोग ने सुप्रीमकोर्ट में कहा है कि जो शहरी हर महीने रेंट और अन्य सुविधाओं पर इकतीस रुपये, शिक्षा पर अठारह रुपये, दवा-दारू पर पच्चीस रुपये और शाक-सब्जियों पर साढ़े छत्तीस रुपये खर्च कर लेता है वो खर्च कर लेता है.. वो गरीब नहीं है।
मदें                माहवारी खर्च        रोजाना खर्च

शाक-सब्जी          36.50                             1.22
नमक-मसाला        14.60                              0.49
ईंधन               70.40                              2.35
फल                8.20                                0.27
कपड़े               38.30                              1.28
शिक्षा              18.50                                0.62
खाद्य तेल           29                                    0.97
दाल               19.20                               0.64
अनाज             96.50                               3.22
चप्पल-जूते          6                                    0.20
चीनी               13.10                             0 .44
मनोरंजन            6.6                               0.22

गरीब बनने के लिए शाक-सब्जियों पर रोजाना 1.22 रुपये से कम, नमक-मसाले पर .49 से कम, ईंधन पर 2.35 से कम, फल पर .27 से कम, कपड़ों पर 1.28 से कम, शिक्षा पर 0.52 से कम, खाद्य तेल पर .097 से कम, दाल पर 0.64 से कम, अनाज पर 3.22 रुपये से कम, चीनी पर .44 से कम खर्च करिए और गरीबों को मिलने वाली सारी सुविधाओं और सब्सिडियों का लाभ उठाइए।

हां, और अगर आप ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं तो आपकी आमदनी मात्र पंद्रह रुपये होने चाहिए और आप गरीबी रेखा से ऊपर जाकर अमीरों की श्रेणी में आ जाएंगे और गरीबों को मिलने वाली सुविधा आपको कतई नहीं मिलेगी।

एक साल पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देशवासियों से वादा किया था कि हमें पंद्रह साल दीजिए हम देश से गरीबी मिटा देंगे यानी देश में एक भी गरीब नहीं बचेगा।

सुप्रीमकोर्ट में योजना आयोग के बयान से आप आसानी से समझ सकते हैं प्रधानमंत्री ने ये दावा क्यों किया था। हमारे विनम्र, हिंदुस्तानी मीडिया सम्मानित साफ-सुथरे छवि वाले ईमानदार प्रधानमंत्री के पास गरीबी कम करने के लिए पुख्ता कार्ययोजना थी और इसका नमूना उनकी सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में पेश किया।

लेकिन ताज्जुब की बात है कि इतने सारे तिकड़में के बावजूद देश के ग्रामीण क्षेत्र की 42 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र की सत्ताइस प्रतिशत आबादी(योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक- सच्चाई से शायद आप नावाकिफ नहीं होंगे) गरीबों की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं।

हम आप ज्यादा नहीं जानते हैं लेकिन आम आदमी की सरकार आम आदमी के बारे में कितना जानती है, उसके बारे में कितना फिक्रमंद है। इस रिपोर्ट को देखकर इसका आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।

आने वाले समय में देश में खाद्य सुरक्षा बिल आएगा। मगर किसके लिए सरकार को मालूम नहीं। क्योंकि उसकी नजर में इस देश में पंद्रह-बीस रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं रह जाता है। सरकार जनता से जोंक की तरह पैसा की जगह खून चूसती है। मगर खर्च करने के समय उसे खर्च में कटौती नजर आती है।

बेशर्मी की प्रकाष्ठा तो ये कि केंद्र सरकार पंद्रह-बीस रुपये से कम वाले को गरीब मानती है। उसका ये भी कहना है कि अगर राज्य सरकार इससे ज्यादा आमदनी वाले को भी गरीब मानती है तो उसपर वो अपनी जेब से पैसा खर्च करे।

केंद्र सरकार गरीबी कम करने पर लगातार काम कर रही है। उसकी उस मशक्कत का ही नतीजा है कि ग्रामीण इलाको में महज 42 प्रतिशत लोग गरीब रह गए हैं। अब प्रधानमंत्री और उनके सिपहसलार ताल ठोंककर कह सकते हैं कि देखो मैंने कैसे गरीबी कम कर दिया।

राहुल गांधी को भारतीय होने में शर्म आती है क्योंकि उत्तरप्रदेश में किसानों पर गोली चली है और वो अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ जाते हैं। उन्हें यहां शर्म नहीं आती है जब सरकार ये कहती है कि तुम बीस रुपये में खर्च चलाओ और एपीएल कहलाओ।


1 टिप्पणी :

  1. आप ने सही कहा है कि सरकार की मंशा है कि देश का कोई भी व्यक्ति गरीब न रहे,लेकिन सरकार अपनी इस मंशा को मुर्त रूप देने के लिए कभी कोई कारगर कदम नहीं उठाती है। मनरेगा जैसे कुछ काम गरीबों के लिए शुरू जरूर गए हैं लेकिन इसका फायदा तो अधिक्तर वो लोग उठा रहे हैं जो इसके लिए पात्र ही नहीं है। और गरीब दो वक्त की रोटी के लिए घसीटते हुए मौत की दहलीज पर पहुंच रहा है। एसी कमरे में बैठ कर रणनीति बनाने वालों को क्या पता कि असली भारत है कहां? क्योंकि उन्हे तो इसे समझने की भी फुर्सत नहीं है। वो तो कागजों पर ही योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में लगे हुए हैं। काश गरीबी को हमारे देश के प्रधानमंत्री और उनके मंत्री मंडल में बैठे लोग जान पाते। कि गरीबी होती क्या है? वो लोग तो सुप्रीम कोर्ट को भी अपनी कागजी जुगलबंदी का नमूना पेश करके ये साबित करना चाहते हैं कि हम गरीबों के मसीहा हैं।

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