हिंदी शोध संसार

मंगलवार, 16 मार्च 2010

मित्र की कसौटी

पापा निवारयति योज्यते हिताय

गुह्यं निगुह्यति च गुणानिम् प्रकटम करोति

आपद गतं न च जहाति ददाति काले

सन्नमित्र लक्ष्णंमिदं प्रवदन्ति संत:।

अर्थ- पापा से बचाता है, हित के काम में लगाता है, छुपाने योग्य बात छुपाता है, गुण प्रकट करता है, विपत्ति के समय साथ नहीं छोड़ता है, बल्कि, तन-मन-धन से मदद करता है, संतो ने अच्छे मित्रों से यही लक्षण बताएं हैं.

गोस्वामी तुलसीदास ने कहा-
निज दुख गिरि सम रज करि जाना।
मित्र के दुख रज मेरू समाना।।




जय हिंदी जय भारत

3 टिप्‍पणियां :

  1. बचपन का पाठ पचपन में याद आ गया -शुक्रिया !

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  2. कल और फिर आज, दोनों श्लोक पहले पढ़े थे. बहुत अच्छा कर रहे हैं. सुभाषितानि...

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  3. कल और फिर आज, दोनों श्लोक पहले पढ़े थे. बहुत अच्छा कर रहे हैं. सुभाषितानि...

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