(इंडियन एक्सप्रेस से साभार)
-अनुवाद- सत्यजीत प्रकाश
नानाजी अब हमारे बीच नहीं रहे. नानाजी देशमुख, जो करीब छह दशकों तक राजनीतिक और सामाजिक पटल पर देदीप्तिमान नक्षत्र की तरह चमकते रहे, नानाजी के नाम से जाने जाते हैं. राजनीति और राजनीति से बाहर, जो लोग उनसे प्रभावित और प्रेरित थे, उन्हें तक महान आदर्शवादी के रूप में जानते थे. उनके प्रशंसक और मित्र उन्हें एक महान राजनीतिक रणनीतिकार मानते थे. अल्पायु में ही आरएसएस में शामिल होने वाले और संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बनने वाले नानाजी निस्संदेह एक महान संगठनकर्ता थे. हर जगह उच्च पदों पर उनके होते थे. वे बचपन से ही अपने सांगठनिक कौशल के लिए जाने जाते थे. चाहे विनोवा भावे का भूदान आंदोलन हो या दिल्ली का राजनीतिक गलियारा नानाजी हर जगह समान रूप से सहजता महसूस करते थे. उनके विरोधी खेमों में भी उनके दोस्त होते थे. 1948 में जब जवाहरलाल नेहरू ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था, आरएसएसस के अन्य कार्यकर्ताओं की तरह नानाजी भी भूमिगत रहकर अपने संगठन के आंदोलन को जारी रखा. लेकिन उस दौरान वो कहां थे-
सबको मालूम है कि नेहरू आरएसएस को पैदाईशी दुश्मन मानते थे. उन्होंने घोषणा कर रखी थी कि आरएसएस के भगवा ध्वज को फहराने के लिए वह भारत में एक इंच भी भूमि(सूई की नोक बराबर?) नहीं देंगे. नेहरू के विश्वस्त दोस्त और उनके कैबिनेट में मंत्री किदवई को नानाजी को अपने घर में रखने और भूमिगत होकर आरएसएस की गतिविधियां चलाने देने में कोई आपत्ति नहीं थी. यह घटना स्पष्ट करता है कि युवा नानाजी के व्यक्तित्व में कैसा चुंबकत्व था.मानिए या नहीं, वो नेहरू सरकार में एक मंत्री रफी अहमद किदवई के घर में रहकर अपनी गतिविधियां चलाते थे
रामनाथ गोयंका से मेरी मित्रता के साथ ही नानाजी देशमुख के साथ मेरा जुड़ाव शुरू होता है. रामनाथ गोयंका और नानाजी ना सिर्फ अच्छे दोस्त थे, बल्कि देश के बारे में दोंनों के विचार और सोच एक जैसे थे. दोनों के बीच पारस्परिक विश्वास और सम्मान किसी भी प्रकार के निजी हितों से परे, पूरी तरह से मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम से जुड़े हुए थे. राष्ट्र की भलाई के सिवा उन दोनों के मन में कोई दूसरा विचार नहीं था. गोयंका ने दी इंडियन एक्सप्रेस को न सिर्फ एक समाचार पत्र, देश के लिए काम करने वाली सभी राष्ट्रवादी शक्तियों की सक्रिय साझेदारी, राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का एजेंडा तय करने का माध्यम बनाया. रामनाथ गायंका ने
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शेष अगले अंक में--
नानाजी का व्यक्तित्व जितना विशाल था, उतने ही विशाल आकार की लेख शृंखला उनके व्यक्तित्व के साथ न्याय कर सकती है। यह प्रयास इस दिशा में सराहनीय कदम है।
जवाब देंहटाएंअनुनाद जी ठीक कह रहे हैं. अगले अंक की प्रतीक्षा में.
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