हिंदी शोध संसार

गुरुवार, 11 मार्च 2010

नानाजी, जैसा हम उन्हें जानते थे, भाग-3

पिछले अंक में हम बात कर रहे थे कि रामनाथ गोयंका जी, अच्युत पट्टवर्द्धनजी, जयप्रकाश नारायणजी, नानाजी देशमुख और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर तिरूपति दर्शन के लिए रवाना हुए. आगे-
रामधारी सिंह दिनकर ने सबकी उपस्थिति में भगवान तिरूपति के सामने प्रार्थना की(जयप्रकाश और दूसरे लोगों को सुनाकर)-
हे भगवान तिरुपति, हमारा शेष जीवन लोकनायक जयप्रकाश नारायण को अर्पित कर दो, ताकि वो मातृभूमि की सेवा कर सकें.  
भगवान तिरुपति का दर्शन कर सभी मद्रास पहुंचे. माउंट रोड, जहां इंडियन एक्सप्रेस का ऑफिस था, रामनाथजी के घर पहुंचते ही दिनकर जी रामनाथजी की गोद में गिर गए और कुछ ही पलों में उन्होंने आखिरी सांस ली- उस समय वहां, जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख और अच्युत पट्टवर्धन उपस्थित थे. साफ था कि दिनकरजी की प्रार्थना का भगवान तिरूपति बालाजी ने उत्तर दिया. दिनकरजी के निधन के तुरंत बाद जयप्रकाश नारायण ने बिहार के छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने का फैसला लिया. इसबार जयप्रकाश नारायण ने तनिक देरी नहीं की. मेरे बार-बार के अनुरोध के बावजूद नानाजी ने इस घटना के बारे में इंडियन एक्सप्रेस में लिखने से मना कर दिया. जब मैने पूछा कि लोग इस घटना के बारे में कैसे जानेंगे तो उन्होंने कहा कि
मैंने सारी बात अपनी डायरी में लिख दी है, मेरी मृत्यु के बाद लोग जान जाएंगे. अब नानाजी देशमुख इस दुनिया में नहीं है, इसलिए मैं उन बातों को लिखने में स्वयं को स्वतंत्र पा रहा हूं.
बाकी तो सबको मालूम है. पौरूषग्रंथि के ऑपरेशन के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े जन आंदोलन का नेतृत्व किया. यह नेतृत्व भ्रष्टाचार के खिलाफ था. इस आंदोलन के कारण इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया. आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया और सभी विरोधी नेताओं को जेल में ढूंस दिया गया. यह समय नानाजी के जीवन का सर्वोत्तम काल था. इस दौरान नानाजी देशमुख ने भूमिगत आंदोलन चलाया. नानाजी के आंदोलन ने 1977 में देश में लोकलहर खड़ा कर दिया. इंदिरा गांधी ने अपनी निरंकुशता को जारी रखने के लिए जनादेश का मार्ग चुना. लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी गई. नानाजी के भूमिगत आंदोलन ने वो लोकलहर पैदा कर दी कि इंदिरा गांधी की खुफिया एजेंसियां भी चकमा खा गई. नानाजी देशमुख जनता पार्टी के निर्माता थे. वो पहलीबार चुनाव लड़े और जीत हासिल की, लेकिन जब मोरारजी देसाई ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए जोर डाला, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
बाद में जब जनता पार्टी में विभाजन हुआ और 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी, नानाजी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी. उन्होंने घोषणा की कि वो 65 साल के हो गए हैं इसलिए सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना पसंद करेंगे. अब नानाजी एक नई भूमिका में थे- दबे-कुचले लोगों की सामाजिक-आर्थिक बेहतरी को सुनिश्चित करने और उनकी नैतिकता और आध्यात्मिकता को संबल प्रदान करने में वे जुट गए. उन्होंने उत्तरप्रदेश के सबसे पिछड़े जिले चित्रकूट में अपना सेवा प्रकल्प शुरू किया, इसके बाद महाराष्ट्र के सूखा-प्रभावित और गरीब जिले बीड़ में सेवा प्रकल्प चलाया. अंतत: करीब पांच सौ गांवों में सामाजिक-आर्थिक उत्थान और प्रगति का व्यापक कार्य किया. तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने नानाजी के चित्रकूट प्रकल्प का स्वयं निरीक्षण किया. कलाम ने नानाजी के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि कि जिले के अस्सी गांव मुकदमे मुक्त हैं. 
चित्रकूट में मैंने नानाजी देशमुख और दीनदयाल उपाध्याय के उनके साथियों से मुलाकात की. दीन दयाल शोध संस्थान ग्रामीण विकास के प्रारूप को लागू करने वाला अनुपम संस्थान है यह प्रारूप भारत के लिए उपयुक्त है. विकास कार्यों से अलग दीनदयाल उपाध्याय संस्थान विवाद-मुक्त समाज की स्थापना में मदद करता है. मैं समझता हूं कि चित्रकूट के आसपास अस्सी गांव मुकदमा-मुक्त है. गांव के लोगों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि किसी विवाद का हल करने के लिए वे वे अदालत नहीं जाएंगे. तय हुआ कि विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिए जाएंगे. नानाजी देशमुख के मुताबिक अगर लोग लड़ते झगड़ते रहेंगे तो विकास के लिए समय ही नहीं बचेगा." कलाम के मुताबिक, विकास के इस अनुपम प्रारूप को सामाजिक संगठनों, न्यायिक संगठनों और सरकार के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में फैलाया जा सकता है. शोषितों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित नानाजी की प्रशंसा करते हुए कलाम ने कहा कि नानाजी चित्रकूट में जो कर रहे हैं वो अन्य लोगों के लिए आंखें खोलने वाला होना चाहिए.
वैसे तो पूरा देश ही उनकी कर्मभूमि थी, लेकिन अंतिम कर्मभूमि के रूप में उन्होंने चित्रकूट को नया जीवन दिया. 

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