हिंदी शोध संसार

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

अब तो मान जाइये कि आप नक्कारे हैं, (प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र)

आदरणीय मनमोहन सिंह जी,                                                                                                        manmohan-singh-2                  
अब तो मान जाइए कि आप नक्कारे साबित हुए हैं और तथाकथित विश्वबंधुत्व के आपका सिद्धांत(उदारवाद और वैश्विकरण) फेल हो गया है. आपके उदारीकरण और वैश्विकरण में आम आदमी का खून चूसने वाले मोटे-मोटे जोंक ही शामिल थे, कहां से कम होगी महंगाई.
आपका अर्थशास्त्र आदमी की मुश्किलों की आग घी डालने का ही काम किया. महंगाई कम करने के लिए कभी बैंक दरों को बढ़ाओ- कभी बैंक दरों को घटाओ वाला आपका(आपका ही का क्या, चिदंबरम, अहलूवालिया और कुछ कुछ प्रणब दा का सिद्धांत भी) फेल हो गया. आप लोगों को मुश्किलों से छुटकारा नहीं दिला पाए. कई लोग कहते हैं कि आप बहुत ईमानदार हैं. लेकिन मैं तो कहूंगा कि आप भोले नौकरशाह हैं जिसे कॉर्पोरेटरों की भाषा भी समझ में नहीं आती, नेता तो आप कभी हुए नहीं कि आम लोगों की भाषा समझ आपको समझ में आए. हां सोनिया मैडम को(उन बहुत लोगों की तरह) आपमें ईमानदारी और नेता के महान गुण आपमें दिखाई दिए, और आपको देश की सबसे बड़ी(वास्तव में) कुर्सी सौंप दी. और आपने ने भी उनकी महत्वाकांक्षाओं को खूब पूरा किया. आम आदमी के मुंह का निवाला छीनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की जेबें मोटी करने लगे.
जहां तक मेरा मानना है कि आम आदमी की भाषा को समझने के लिए न ही ऑक्सफोर्ड में पढ़ने, न ही विश्व बैंक में नौकरी करने और न ही अंतर्राष्ट्रीय डिग्री और डिप्लोमाओं को बटोरने की जरूरत है.
अगर देशी सरकारी स्कूलों में पढ़ा-लिखा दो चार भदेस नेताओं को सोनिया जी जैसे लोगों का वरदहस्त(यानी उसे वोट बैंक का जुगाड़ न करना पड़े- जिसके लिए उसे सारा कुकर्म करना पड़ता है, मसलन, सांप्रदायिक दंगे करवाने होते हैं, भाषा, जाति, क्षेत्र के नाम पर लोगों को लड़ाना पड़ता आदि ) प्राप्त हो जाए तो वह कुछ महीनों क्या, कुछ दिनों में महंगाई पर काबू पा लेगा(ये मेरा चैलेंज है). क्योंकि वो आपसे कहीं बेहतर आम आदमी को समझता है. उसे बोलने के लिए लिखे हुए भाषण पढ़ने की जरूरत नहीं होती है. इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राबाजार, जीडीपी, सीआरआर जैसे भारी भरकम शब्दों की जरूरत नहीं है.
इसके लिए जरूरत है बाजार पर नियंत्रण की और उसे करने के लिए अर्थशास्त्री की मोटी पोथी पढ़ने की जरूरत नहीं है.
अंत में, आपने बहुत देर कर दी, वो बात स्वीकार में जो आपको बहुत पहले स्वीकार कर लेना चाहिए था कि यह हमारे बस की चीज नहीं है. आप कहीं रहेंगे मोटी तनख्वाह वाली नौकरी कर लेंगे. लेकिन उन लोगों का क्या होगा जिसे पानी पीने के लिए हर रोज कुआं खोदना पड़ता है.
आपका
एक आम आदमी

3 टिप्‍पणियां :

  1. काश कि मन्नू भईया तक यह लेख पहुंचे और सोनिया जी उस पर कार्रवाई करने की कृपा करें.

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  2. इन्होने "पुस्तकी विद्या" पढ़ी है। समय आने पर वह विद्या किसी काम की साबित नहीं हुई। (पुस्तकस्था तु वा विद्या, परहस्तगतं धनम् ...)

    इनके साथ भोंदू 'राजकुमार' क्या कर रहे हैं? ये अखबार वाले जब कुछ सकारात्मक हो जाता है तो उसका श्रेय इस भोंदू को दे देते हैं। इस चुनौती का मुकाबला या इसे हल करने की चुनौती इनको क्यों नहीं दी जा रही है?

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