इनकी कविताएं इतनी अच्छी लगती थी कि मैंने भी उसी समय सोच लिया कि बड़ा होकर मैं भी कवि बनूंगा. लिखने की कोशिश भी करता था, लेकिन कविता लिखना कितना कठिन है, इसका अनुभव बड़ा होकर हुआ.
बड़ा हुआ तो देखा कविता लेखन की एक अद्भुत परंपरा चल पड़ी है. उसका नाम छंदमुक्त कविता दिया गया(छंदमुक्त कविता की शुरुआत सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने की थी और उन्होंने ही इनका नाम छंदमुक्त कविता रखा). लेकिन निराला ने तो छंदमुक्त कविता लिखी थी लेकिन आज के बेतुके कवि बेतुकी कविता लिख रहे हैं.
मेरे एक दोस्त अजय लाल(जो एक वरिष्ठ पत्रकार भी हैं) वो भी कवितागिरी करते हैं . वो कविता लिखते तो नहीं हैं, बल्कि कविता करते हैं यानी उनको कवि कहने में कोई हर्ज नहीं है. कवि समाज में उनका बड़ा नाम है. अक्सर कवि सम्मलेनों में जाते हैं. बड़ा रुतबा है उनका. हालांकि मैंने कभी उनकी कविता नहीं पढ़ी. लेकिन अखबार में अक्सर उनके कविता पाठ और कवि सम्मेलन में उनकी वाहवाही की खबर पढ़ता हूं. मैंने सोचा जब मेरे दोस्त अजयलाल कविताएं लिख सकते हैं तो मैं क्यों नहीं. मेरी साध पूरी होती दिख रही थी.
मैं कवि बनने की चाह में अजयलाल से कहा कि यार मैं भी कवि बनना चाहता हूं.
उन्होंने भी मुझे निराश नहीं किया. बोले, तो देर किस बात की. आज ही बन जाओ कवि.
मैंने पूछा, कैसे. कैसे बन जाऊं कवि.
बोले, यार कुछ नहीं करना पड़ता है.
कोई भी अखबार का पन्ना उठाओ, उसके बीच के कुछ टेक्स्ट को छोड़कर दोनों ओर से ढ़क दो. उन्होंने ये सब करके दिखाया. वो चित्र मैं दे रहा हूं.
फिर बोले, बीच में जो कुछ लिखा हुआ है, वही तुम्हारी कविता हुई.
यानी ये कविता कुछ इस तरह बनी-
मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन मेंमैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि कविता लिखना और कवि बनना इतना आसान होगा. ये दुनिया की सबसे अद्भुत खोज होगी. जिससे भारत के सभी लोगों को आसानी से कविता बनाया जा सकेगा.
वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच
नोंक-झोंक हुई, बैठक के दौरान
यूपीए सरकार पर आरोप लगा
अपने घोषणापत्र में
की दर से अनाज देने
लेकिन सरकार
असफल रही
तमतमाए वित्तमंत्री
ने कहा.. आदि आदि
मैंने कहा कि यार, जितनी जल्दी हो, कवि बनने के इस अद्भुत खोज को पेटेंट करवा लो.
उन्होंने कहा कि ऐसा संभव नहीं है.
मैने पूछा, क्यों, आने वाले दिनों में तुम इसका पेटेंट राइट्स बेचकर करोड़ों रुपये कमा सकते हो.
वो बोले, यार हमारे देश के दर्जनों कवियों को ये नायाब तरीका मालूम है और वो इसी तरह कविताएं लिखते हैं. इसलिए इसका पेटेंट नहीं किया जा सकता है.
मैं समझ गया कि इसी अद्भुत खोज की वजह से मेरे देश में कवि घास की तरह उग आये हैं.
भले ही इस गुप्त विद्या का पेटेंट नहीं कराया जा सकता है. लेकिन मैंने तय कर लिया कि यह गुप्त विद्या अब आगे गुप्त नहीं रहेगा और मैं इस गुप्त विद्या का प्रचार पूरे देश में करूंगा और हर भारतवासी को कवि बनने में सहयोग करूंगा, ताकि वो भी इस गुप्त विद्या का लाभ उठाकर सफल कवि बन सके और नाम-यश और पैसा बटोर सकें.
इसी फैसले के तहत मैंने ये पोस्ट लिखी है. आपसे अनुरोध है कि आप भी इस गुप्त विद्या का प्रचार-प्रसार करें और मेरे इस महान मिशन में सहयोग करें.
अभी-अभी एक ख्याल.......
जवाब देंहटाएंमन में उठा......
पढों, देखो और करो.......
कविता गिरी....
अखबार की फोल्ड की हुई...
कतरनों से........
चुराई हुई कुछ धूमिल सी पंक्तियां
धुंधलाये हुये कुछ शब्द.....
यह तो वास्तव में कविता करने जैसा ही है.....
मुझे शरद जोशी जी का एक व्यंग्य याद आ गया.
इस विद्या के प्रसार में योगदान अवश्य दूंगा.
अच्छा आलेख
जवाब देंहटाएंkya bat hai joradaar par kavi nahi banana hai .
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!!...इस तरह तो एक ही दिन मे एक काव्य पुस्तक को लिख सकते हैं....बताने के लिए धन्यवाद।;)
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