लेखक- एस एन विनोद("चीड़फाड़" ब्लॉग से)
भाजपा के नए अध्यक्ष नितिन गडकरी के सामने चुनौतियों का हौव्वा खड़ा करने वाले दरअसल असली चुनौती की अनदेखी कर रहे हैं। चादर के नीचे ढंकी यह चुनौती है कांग्रेस के लिए, उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए। भाजपा अध्यक्ष के रूप में गडकरी की नियुक्ति पर शंका-कुशंका प्रकट करने वाले वस्तुत: एक गहरी साजिश के शिकार बन गए। जब से ऐसी बात उछली थी कि भाजपा का नया अध्यक्ष दिल्ली की चौकड़ी से बाहर का होगा, षड्यंत्र का जाल बुना जाने लगा था। और जब निर्णायक रूप में महाराष्ट्र के नितिन गडकरी का नाम सामने आया, तब एक योजना बना कर नकारात्मक प्रचार का पिटारा खोल दिया गया- कहा गया कि दिल्ली और महाराष्ट्र में अंतर है..., अनुभवहीन हैं...., ब्राह्मण हैं...., महाराष्ट्र के बाहर पहचान नहीं..., सिर्फ संघ की पसंद हैं..., राष्ट्रीय राजनीति से सरोकार नहीं..., जूनियर हैं... आदि-आदि। ऐसे दुष्प्रचार की जनक मंडली को असल में सचाई की तनिक भी जानकारी नहीं। नकारात्मक और सनसनी पैदा करने वाली खबरों को ईजाद करनेवाले इन लोगों का निहित स्वार्थी तत्वों ने आसानी से इस्तेमाल कर लिया। अब सचाई सामने आने पर अब ये झेंप मिटाने हेतु मुंह छिपाते नजर आ रहे हैं। यह सच सामने आ गया कि गडकरी भाजपा संगठन की पसंद हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मनोनीत नहीं। गडकरी के अध्यक्ष पद पर चयन ने ही सभी शंकाओं-कुशंकाओं को खारिज कर दिया है। विद्यार्थी परिषद के एक साधारण कार्यकर्ता से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पहुंचना क्या उनकी राष्ट्रीय लोकप्रियता, पहचान, स्वीकार्यता और कुशल-सफल संगठन क्षमता को चिन्हित नहीं करता? तथ्य चीख-चीख कर इनकी पुष्टि कर रहे हैं। अफवाहें फैलाकर गडकरी के खिलाफ न केवल वातावरण तैयार करने की कोशिश की गई थी बल्कि स्वयं गडकरी को भी डराने का प्रयास था वह। कारण जान लें। अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के बाद यह कड़वा सच रेखांकित है कि अनेक बड़े राज्यों में सत्तासीन, मुख्य विपक्षी राष्ट्रीय दल भारतीय जनता पार्टी लगभग नेतृत्वहीन रही। संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली का यह एक दुखद पक्ष है। केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस इसलिए अपनी मनमानी करती रही है कि उसे विपक्ष से अब तक कोई बड़ी चुनौती नहीं मिली थी। पिछले लोकसभा व कुछ राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को अगर सफलताएं मिलीं तो उसकी लोकप्रियता के कारण नहीं, बल्कि विपक्ष, मुख्यत: भाजपा के बिखराव के कारण। अन्यथा जिस देश में शक्कर व प्याज की बढ़ी कीमतों के कारण जनता ने केंद्र सरकार उखाड़ फेंके, वही देश आज खाद्य पदार्थों, तेल, नमक, शक्कर व सब्जियों की आसमान छूती कीमतों के बावजूद अगर तटस्थ है तो विपक्ष की निष्क्रियता के कारण ही। महंगाई के मुद्दे पर जनता को आंदोलित करने में अब तक विपक्ष विफल रहा है। इनकी निष्क्रियता का लाभ कांग्रेस भरपूर उठा रही है। लेकिन, अब और नहीं! कांग्रेस को सावधान करने की जरूरत नहीं, वह अंदर ही अंदर पहले से ही बेचैन है। गडकरी के रूप में भाजपा को एक ऐसा आक्रामक अध्यक्ष मिला है, जो धूप-बरसात की परवाह किए बगैर सड़कों पर उतर जनांदोलन छेडऩे में निपुण है। विषम परिस्थितियों को झेलने के आदी गडकरी कांग्रेस को चुनौती देने को तैयार मिलेंगे- चाहे मुद्दा बढ़ी हुई कीमतों का हो, कथित सांप्रदायिकता का हो, विदेश नीति का हो, सीमा की सुरक्षा का हो, अर्थव्यवस्था का हो, या फिर विश्व समुदाय में भारत की सशक्त छवि का हो, नितिन गडकरी हर जगह मौजूद दिखेंगे। राजनीतिक भाषणबाजी से दूर गडकरी योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में विश्वास रखते हैं। कोई लफ्फाजी नहीं, काम करो और काम करने दो। आम नेताओं की तरह समय का अपव्यय कर दरबार सजाने से घृणा करने वाले गडकरी कांग्रेसी संस्कृति के सामने राष्ट्रहितकारी 'गडकरी संस्कृति' का आदर्श प्रस्तुत करेंगे। कुछ लोगों को ये आकलन मात्र लफ्फाजी लग सकती है। उनसे प्रार्थना है, वे थोड़ी प्रतीक्षा करें, सच सामने आ जाएगा। कांग्रेस खेमे में बेचैनी यूं ही नहीं है। गडकरी को भयभीत करने का अभियान यूं ही नहीं चलाया गया था। आने वाले दिनों में भाजपा अध्यक्ष के रूप में गडकरी के सामने कांग्रेस नेतृत्व की कथित तेजस्विता फीकी पड़ जाएगी और तब सभी साजिशकर्ता फर्श पर चित नजर आएंगे।
जय हिंदी जय भारत
गुरुवार, 28 जनवरी 2010
चुनौती गडकरी के लिए नहीं, कांग्रेस के लिए है!
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देखते हैं.
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