विनाशकाले विपरीत बुद्धि.
समझ नहीं आ रहा है भाजपा का कर्ताधर्ता कौन है? कौन है तो भाजपा को ये अंध-निर्देश दे रहा है? शिमला में पार्टी की चिंतन बैठक शुरू भी नहीं हुई कि कहते हैं कि भाजपा ने कुछ ऐसा कर मीडिया का शो चुरा लिया. हर जगह वाद-विवाद में भाजपा-जसवंत की चर्चा होने लगी.
चिंतन बैठक की कहीं कोई खबर नहीं है. खबर ये है कि भाजपा ने अपने पुराने नेता जसवंत सिंह पार्टी से निकाल दिया. आउटलुक के एडीटर साहब विनोद मेहता ने इसे भाजपा का मीडिया मैनेजमेंट करार दिया और कहने वाले बहुत कुछ कह रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह का अभिमान से भरा मस्तक देखते ही बनता था. मीडिया के सामने कह दिया कि जसवंत सिंह अब भाजपा के किसी पद के अधिकारी नहीं हैं. चिंतन बैठक हो रही थी, चिंता करने के लिए, लेकिन इस चिंता ने चिता तैयार कर दिया. बिना चिंतन, बिना विचार-विमर्श किए फैसला सुना दिया.
चिंतन बैठक में हिस्सा लेने के लिए जसवंत शिमला के लिए रवाना हो चुके थे, लेकिन शिमला पहुंचते ही राजनाथ सिंह फोन पर कह दिया कि आपको बैठक में आने की कोई जरूरत नहीं है.
भाजपा के हनुमान आज भाजपा के लिए ही इतने अछूत हो गए?
क्या जसवंत का पाप इतना बड़ा था.
उनको हटाने की सूचना फोन पर क्यों दी गई.
एकबार फिर वो इतने बड़े अछूत थे?
क्या एक किताब से किसी पार्टी की विचारधारा ध्वस्त हो जाती है.
जब एक किताब से किसी पार्टी की विचारधारा ध्वस्त हो सकती है, तो ऐसी विचार धारा का क्या काम?
किसी ने व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलकर शिकायत क्यों नहीं की?
वाजपेयी के हनुमान भाजपा के रावण क्यों बन गए हैं?
क्या भाजपा में वाजपेयी युग का अंत हो चुका है?
क्या भाजपा ने आरएसएस को खुश करने के लिए ऐसा किया है?
क्या जसवंत सिंह का यह अपमानजनक अंत जरूरी था.
क्या भाजपा का यह अंतिम विकल्प था(जैसा कि भाजपा कह चुकी है)?
अगर बीजेपी इसी तरह एक-एक नेता को दरकिनार करती रही तो उसमें बचेगा कौन?
क्या अकेले राजनाथ सिंह पार्टी चलाएंगे?(कदापि नहीं.)
क्या जसवंत को निकालने का तरीका सही था?
जैसा कि जसवंत ने कहा कि भाजपा में चिंतन और पठन-पाठन का दौर खत्म हो चुका है. भाजपा जड़ मान्याओं की आदि हो चुकी है.
एक सवाल और?
क्या यह भाजपा के अंत की शुरुआत तो नहीं है?
गुरुवार, 20 अगस्त 2009
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मौका दिया और घिरे..यही तो राजनिति है!!
जवाब देंहटाएंलगता है भाजपा अपना सूपड़ा साफ़ करवाने की तैयारी कर रही है !
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