हिंदी शोध संसार

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

वेदना के क्षण

आरती के दीप बुझ गए
आशा की कोई किरण न रही
ध्रुवतारा न उगा उस दिन
पीड़ा मेरी घनीभूत होती गई.

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