प्रधानमंत्री डॉ मननोहन सिंह यूं तो कॉर्पोरेट जगत के दुलारे समझे जाते हैं, मगर एकबार जब उन्होंने कॉर्पोरेट बाबुओं की ऊंची तनख्वाह पर कुछ कहने की हिम्मत की तो पूरे कॉर्पोरेट जगत में इसका जबरदस्त विरोध हुआ. कई लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि जब मटर के दाने डालोगे तो बंदर ही मिलेंगे न. मतलब साफ था गुरिल्ला फांसने के लिए सोने के बिस्किट डालने ही होंगे.
हर तरफ मंदी का शोर है. मगर सवाल उठता है कि क्या ये मंदी वास्तविक है. अगर वास्तविक है तो मंदी है किसके लिए. सरकार के लिए या कॉर्पोरेट घरानों के लिए या फिर उनके लिए जो बदतर से बदतर जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त हैं.
प्रधानमंत्री डॉ मननोहन सिंह यूं तो कॉर्पोरेट जगत के दुलारे समझे जाते हैं, मगर एकबार जब उन्होंने कॉर्पोरेट बाबुओं की ऊंची तनख्वाह पर कुछ कहने की हिम्मत की तो पूरे कॉर्पोरेट जगत में इसका जबरदस्त विरोध हुआ. कई लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि जब मटर के दाने डालोगे तो बंदर ही मिलेंगे न. मतलब साफ था गुरिल्ला फांसने के लिए सोने के बिस्किट डालने ही होंगे.
1991 में जब देश की चालीस करोड़ जनता को एक शाम भूखे रहना पड़ रहा था, इसके बावजूद हमारे तत्कालीन वित्तमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने ये मानने ये इनकार कर दिया था कि देश आर्थिक मंदी की दौर से गुजर रहा है. मगर, आज कुछ औद्योगिक घरानों की चीख-पुकार को सरकार ने बड़ी गंभीरता से लिया है और जनता के टैक्स के पैसे को एकमुश्त खैरात में बांटनी शुरू दी है. यही पैसा जब गरीबों के पेट की आग बुझाने के लिए दिए जाने की बात होती तो वहां कभी अल्पसंख्यक तो कभी अनुसूचित जाति और जनजाति, यानी कि वोट नजर आने लगता है.
अब आइये जानते हैं कि कॉर्पोरेट घरानों में इन पैसों का इस्तेमाल कैसे होता है.
सिटीग्रुप को मंदी की मार से उबारने के लिए अमेरिकी सरकार ने पैंतालिस अरब डॉलर का पैकेज दिया. इसके दूसरे ही दिन, कंपनी ने अपने अधिकारियों की आवाजाही के लिए जेट विमान का खर्चा उठा लिया. इस पर कंपनी को पांच करोड़ डॉलर की खर्च आयी.
खुद को दिवालिया करार दे चुकी कंपनी मेरिल लिंच के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने अपने ऑफिस की सजावट पर ज्यादा नहीं, महज साढ़े बारह लाख डॉलर फूंक डाले.
बीमा कंपनी एआईजी को दिवालियेपन से बचाने के लिए अमेरिकी सरकार ने पचासी अरब डॉलर की मदद दी, अगले ही दिन, कंपनी के अधिकारियों को शानदार रिजॉर्ट में पार्टी दी गई, जहां एक रात के लिए एक कमरे का किराया कम से कम एक हजार डॉलर होता है.
वेल्स फॉर्गो को मंदी से उबारने के लिए, अमेरिकी सरकार ने पच्चीस अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज दिया. बेलआउट मिलने की खुशी में अधिकारियों ने लॉस वेगास में शानदार पार्टी दी. लॉस वेगास मतलब जिंदा देवी-देवाताओं का स्वर्ग.
सत्यम के पूर्व चैयरमैन रामालिंग राजू की तीन सौ से ज्यादा ज्यादा कंपनियां हैं, कम से कम तिरसठ देशों में उनका शानदार बंगला है. दर्जनों मन सोना देवी-देवता को चढ़ा चुके हैं. वो तीन सौ छब्बीस जोड़े जूते और इतना ही बेल्ट का इस्तेमाल करते हैं.
कुछ रोज पहले, ओबामा ने वित्तीय संस्थानों और बैंकों द्वारा अपने अधिकारियों को भारी-भड़कम बोनस देने की कड़ी आलोचना की थी. ओबामा ने इस कृत्य को गैर-जिम्मेदाराना और बेहद शर्मनाक करार दिया था.
जहां एक ओर कंपनियां, अपने कर्मचारियों के पेट पर लात मार रही है, वहीं अधिकारियों को अठारह अरब डॉलर का बोनस कोर्पोरेट चोरी नहीं है तो और क्या है. औद्योगिक घरानों की इस व्यवस्था को लोकतंत्र की तर्ज पर कोर्पोरेट चोरतंत्र नाम दिया गया है.
bilkul theek likh rahe hain.
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