हिंदी शोध संसार

रविवार, 15 फ़रवरी 2009

मंदी के मतलब


कभी एक ब्रैंड था अब ब्रैंड ही बैंड हैंकभी मेट्रो में भी मॉल नहीं थेअब हर चौराहेहर नुक्कड पर मॉल दिख रहे हैंइसका नशा इस कदर सिर चढ़कर बोला कि लोग साम्यवादी व्यवस्था को मुंह चिढ़ाने लगेकॉर्पोरेट कल्चर और मैंनेजर संस्कृति ने पूरे बाजार या यू कहें पूरी व्यवस्था को अपनी चपेट में ले लियालोगों को इस व्यवस्था में मजा आने लगाकॉर्पोरेट घरानों को हस्तक्षेप से मुक्त करने के लिए सरकार पर मध्यवर्ग का दबाव बढ़ने लगासरकारों ने कॉर्पोरट घरानों को हस्तक्षेप से मुक्त कर दिया.
भौतिकवादी जीवन दर्शन भारतीय संस्कृति के लिए कोई अनोखा विषय नहीं रहा है.. लेकिन भूमंडलीकरण के बाद ही यह आमलोगों की जिंदगी का हिस्सा बन सका हैमगरअतिशय लालचवादी सोच ने शुरुआत में इसका गला घोंट दिया.
सदियों पहले की बात हैभारत में चार्वाक नाम के ऋषि पैदा हुए थेवे जाते-जाते कह गएजब तक जीओसुख से जीओकर्जा लेकरघी पीओसदियों तक भारत की बहुसंख्यक जनता ने इसपर ध्यान ही नहीं दियाऔर जिन्होंने ध्यान भी दियाउन्हें यह चार्वाकी दर्शन हजम ही नहीं हुआनतीजा हुआवो गरीबी और बेचारगी में जीते रहेसात समुंदर पार वालों ने शायद ये बात सुनी भी नहीं होगीमगर वे इसका मतलब समझ गएतभी तो कर्जा लेकरघी ही नहींशराब-सिगरेट और न जाने क्या क्या पी गए.
खुली बातखुले दिमाग की तर्ज परमुक्त पूंजीमुक्त श्रम और मुक्त बाजार व्यवस्था का जन्म हुआमुक्ति के इस रोग ने धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लियाकभी एक ब्रैंड था अब ब्रैंड ही बैंड हैंकभी मेट्रो में भी मॉल नहीं थेअब हर चौराहेहर नुक्कड पर मॉल दिख रहे हैंइसका नशा इस कदर सिर चढ़कर बोला कि लोग साम्यवादी व्यवस्था को मुंह चिढ़ाने लगेकॉर्पोरेट कल्चर और मैंनेजर संस्कृति ने पूरे बाजार या यू कहें पूरी व्यवस्था को अपनी चपेट में ले लियालोगों को इस व्यवस्था में मजा आने लगाकॉर्पोरेट घरानों को हस्तक्षेप से मुक्त करने के लिए सरकार पर मध्यवर्ग का दबाव बढ़ने लगासरकारों ने कॉर्पोरट घरानों को हस्तक्षेप से मुक्त कर दियाइसके बाद कॉर्पोरट घरानों को भी लगा कि उन्हें कही से किसी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं हैज्यादा से ज्यादा संसाधन को अपने हिस्से में कर लेने की होड़-सी मच गईजिसे एक प्यारा सा नाम दिया गयाप्रतिस्पर्धामध्यवर्ग हर स्थिति में सुख भोगने की लालसा में फंसता गयाकर्ज लेकर घी पीने का फलसफा साकार होता दिखाप्लास्टिक कार्ड पर उधार की जिंदगी किस्तों में चलने लगीउधार का टीवीउधार की कारउधार का घरउधार का प्यारबाजार में रौनकरियल स्टेट में बूमहर तरफ विकास के नारे गए जाने लगेकही शाइनिंग इंडियातो कहीं भारत उदयकहीं भारत निर्माण तो कही और कुछमतलब आमदनी अठन्नीखर्चा रुपयामगरबालू की भीत ज्यादा देर तक नहीं टिकती
मशहूर निवेशक वारेन बफेट ने ठीक ही कहा कि समुंदर में जबतक ज्वार रहता हैतक तक पता ही नहीं चलता कि उसमें कौन-कौन नंगे हैंज्वार की भी अपनी आयु होती हैउसके जाते हीहमाम में सब नंगे नजर आने लगेएक के बाद एक बैंक और वित्तीय संस्थाएं दिवालिया होने लगीअर्थव्यवस्था गंभीर संकट में फंसती गयीसरकारी व्यवस्था को मुंह चिढ़ाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने उद्धार के लिए सरकार का मुंह ताकने लगींएक के बाद एक भारी भरकम आर्थिक पैकेज के बावजूद अर्थव्यवस्था अपनी रीढ़ पर खड़ा होने का साहस नहीं कर पा रही है.

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