इस फिल्म के गेम शो हू वॉन्ट्स टू बी ए मिलिनेयर के संचालक की भूमिका के लिए, पहले शाहरूख खान को कहा गया, उनके मना कर देने पर अनिल कपूर ने ये भूमिका निभायी. स्लमडॉग के कार्यकारी निर्माता और सीलेडर फिल्म्स के अध्यक्ष पॉल स्मिथ, हू वॉंट्स टू बी ए मिलिनेयर की मूल कृति के रचयिता है.
देव पटेल यानी जमाल मलिक- मुंबई की झुग्गी झोपड़ी में जन्मा और पला-बढ़ा एक मुस्लिम युवक. जमाल की भूमिका के लिए बॉयल ने सैंकड़ों युवकों को जांचा-परखा.
फ्रैदा पिंटो- लतिका- जमाल की प्रेमिका. पिंटो देशी मॉडल हैं, जिन्होंने इसी फिल्म से अपनी फिल्मी पारी शुरू की हैं.
अगस्त 2007 में वार्नर इंडेपेंडेंट पिक्चर्स ने अमेरिका और पाथे ने दुनियाभर में इस फिल्म के वितरण का अधिकार प्राप्त कर लिया. वार्नर पिक्चर्स ने इस फिल्म के लिए पचास लाख डॉलर खर्च किए, मगर उसे फिल्म से ज्यादा आशाएं नहीं थी. इसलिए उसने फिल्म का अधिकार बेचने का फैसला किया. बाद में वार्नर और फॉक्स सर्च लाइट ने बराबर की साझेदारी पर फिल्म के वितरण का फैसला किया.
ब्रिटेन में यह फिल्म नौ जनवरी 2009 को रिलीज हुई. दूसरे ही सप्ताह में इसने बॉक्स ऑफिस पर कीर्तिमान स्थापित कर दिया. दूसरे सप्ताह में फिल्म देखने वालों की संख्या में सैंतालिस प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. यह अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि है. यह वृद्धि फिल्म को चार गोल्डन ग्लोब और ग्यारह बाफ्टा पुरस्कारों के मिलने के बाद हुई. स्लमडॉग के रिलीज होने के मात्र ग्यारह दिनों में इस फिल्म ने यहां इकसठ लाख डॉलर की कमाई की. कुछ मिलाकर इस फिल्म ने यहां बीस मिलियन डॉलर की कमाई की.
भारत में इस फिल्म का प्रीमियर बाइस जुलाई 2009 को हुआ, जिसमें फिल्म इंडस्ट्री की नामी-गिरामी हस्ती वहां मौजूद थी. भारत में फिल्म के मूल संस्करण के साथ-साथ डब संस्करण भी रिलीज हुआ. 23 जनवरी को पूरे भारत में फिल्म की 351 प्रिंट रिलीज की गई. पहले सप्ताह में इसने बाइस लाख डॉलर की कमाई की. पहले सप्ताह में सिनेमाघरों की पच्चीस प्रतिशत सीटें भरी तो दूसरी सप्ताह पचास प्रतिशत. हालांकि भारतीय फिल्मों की लिहाज से इसे बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं माना जा सकता है, लेकिन फॉक्स फिल्म ने भारत में इस फिल्म ने अब तक सबसे ज्यादा कमाई की. कमाई के मामले में इसने फॉक्स की फिल्में स्पाइडर मैन-3 औप कैसिनो-रॉयल को भी पीछे छोड़ दिया. बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की सफलता को लेकर भारतीय फिल्मकारों का कहना है कि भारत में ज्यादातर लोग फिल्म स्लमडॉग का मतलब भी नहीं समझते है, यही इस फिल्म के साथ दिक्कत है. दूसरी ये कि अनिल कपूर को छोड़कर इस फिल्म में कोई जाना माना कलाकार नहीं है. तीसरी ये कि झुग्गी झोपड़ी में रहने वाला लड़का अंग्रेजी बोलता है ये बात किसी को हजम नहीं हुआ. हालांकि फिल्म का हिंदी संस्करण काफी सफल रहा है.
आलोचकों ने स्लमडॉग को मूल रूप से विदेशी फिल्म करार दिया. रोटेन टोमैटोज ने फिल्म को सौ में से चौरानवे अंक दिया. वहीं मूवी सिटी न्यूज ने साल की तीसरी बड़ी फिल्म बताया. शिकागो सन टाइन्स ने फिल्म को फोर स्टार करार दिया. उसकी समीक्षा कुछ इस प्रकार थी, सांस रोकनेवाली, उत्तेजना भर देने वाली कहानी, दिल को दहला देने वाली. वाल स्ट्रीट जर्नल ने इस फिल्म पहली वैश्विक मास्टरपीस करार दिया है.
भारत में इस फिल्म पर व्यापक और मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली. फिल्म समीक्षकों ने इसे खुले दिल स्वीकार किया है. टाइम्स ऑफ इंडिया में निखत काजमी ने लिखा है, परी कथा की तरह, जिसमें थोड़ा रोमांच भी है, साथ ही कलाकाल की अंतर्दृष्टि भी. वे फिल्म के आलोचकों की आलोचना करते हुए लिखते हैं कि धाराबी इर्द-गिर्द के जीवन पर वृतचित्र बनाने को कोई मतलब नहीं है. इंडियाटाइम्स में रेणुका कहती है कि यह फिल्म सचमुच में भारतीय फिल्म है. वे आगे कहती है कि यह मुंबई की जिंदगी पर आधारित और यहीं बनी अब तक सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है.
दूसरी ओर, फिल्म समीक्षक, गौतम भास्करन कहते हैं कि इस फिल्म में कुछ भी भारतीय नहीं है. उन्होंने इस फिल्म को छिछला, संवेदनहीन करार दिया. प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक, सुभाष के झा इसे अतिमहत्वाकांक्षी, मगर निराशाजनक फिल्म बताते हैं. वे कहते हैं कि जिस पटकथा पर यह फिल्म बनी है, उस कथा पर मीरा नायर सलाम बांबे और सत्यजीत राय अपु त्रिलोजी बना चुके हैं. बीबीसी इस फिल्म पर कहता है कि यह भारतीय फिल्मों की नकल है. बीबीसी सलाह देता है कि अगर आप मुंबई की सच्चाई देखना चाहते हैं तो उठा लाइये रामगोपाल वर्मा की सत्या की डीवीडी.
अभिनेता अमीर खान ने कहा कि उन्हें नहीं लगता है कि यह भारतीय फिल्म है. आमिर ने कहा कि सर रिचर्ड एटिनबोरो की गांधी सही मायनों में एकमात्र भारतीय फिल्म थी. उन्होंने कहा कि स्लमडॉग भारत के बारे में है, लेकिन भारतीय फिल्म नहीं है. हमें आशा है कि यह फिल्म ऑस्कर में अच्छा करेगी. हमें नहीं लगता है कि यहां देशी या विदेशी से कुछ लेना-देना है. फिल्मकार प्रियदर्शन कहते हैं कि यह भारतीय व्यवसायिक सिनेमा की तरह है. चूंकि विदेशी लोग हमें गंदा, शोषित देखना पसंद करते हैं, इसमें मुंबई की खूबसूरती कहां है.
साहित्यकार सलमान रश्दी कहते हैं कि वे स्लमडॉग के बड़े फैन नहीं है. फिल्म में तीन-चार जगह स्टोरी लाइन तोड़ी गई है.
पुरस्कार और सम्मान
अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में फिल्म को खूब वाहवाही मिली. इस फिल्म को चार गोल्डन ग्लोब और ग्यारह बाफ्टा अवोर्ड मिले हैं. इसके साथ ही इसे ऑस्कर अवोर्ड के दस वर्गों में नामांकित किया गया है.
संगीत
स्लमडॉग के लिए संगीत दिया है ए आर रहमान ने. इस फिल्म के लिए रहमान को 2009 का गोल्डन ग्लोब बेस्ट ऑरिजिनल स्कोर अवार्ड मिला है. रहमान को ऑस्कर के तीन वर्गों में भी नामांकित किया गया है. वहीं गुलजार को जय हो के लिए ऑस्कर में नामांकित किया गया है.
फिल्म पर विवाद
छियासीवें गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड की घोषणा के बाद, शिकागो फिल्म समालोचकों ने डैन्नी बॉयल के साथ सह-निर्देशक लवलीन टंडन को भी सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार देने के लिए ऑनलाइन आंदोलन चलाया. आंदोलनकर्ता जैन लीसा हटनर का कहना है कि जब लवलीन फिल्म निर्माण प्रक्रिया में शामिल हुई तो पुरस्कारों में इन्हें दरकिनार क्यों किया गया. बाद में लवलीन ने कहा कि वे इस तरह के आंदोलन से शर्मिदगी महसूस करती हैं और उन्हें यह पुरस्कार नहीं चाहिए.
इस फिल्म पर मेगास्टार अमिताभ बच्चन की टिप्पणी से भी भारी विवाद खड़ा हुआ. अमिताभ की टिप्पणी कई मायने में महत्वपूर्ण है. चूंकि फिल्म की शुरुआत में अमिताभ द्वारा जमाल को ऑटोग्राफ देते दिखाया जाता है, अमिताभ ही कौन बनेगा करोड़पति के संचालक थे. तेरह जनवरी 2009 को अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर फिल्म के कुछ हिस्से पर भारी ऐतराज जताया. अमिताभ ने कहा, दुनिया में कहां गरीबी, मुखलिसी नहीं है, क्या विकसित देशों के लोग गरीब नहीं है, तो फिर विकासशील भारत की गरीबी को मजाक क्यों बनाया जाता है. आगे उन्होंने कहा कि एक भारतीय की किताब पर एक विदेशी ने फिल्म बनायी इसलिए इस फिल्म को गोल्डन ग्लोब मिल जाता है, अगर किसी विदेशी की ये फिल्म नहीं होती तो इसे यह पुरस्कार नहीं मिलता. अमिताभ की इस टिप्पणी पर भारी विवाद हुआ. बाद में अमिताभ ने अपनी टिप्पणी पर सफाई भी दी.
विरोध और कानूनी पक्ष
फिल्म के रिलीज होने के बाद इसकी व्यापक आलोचना हुआ. कई लोगों ने फिल्म के खिलाफ कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की. फिल्म पर देश की गरीबी को विदेशी नजरिये से देखने और दिखाने का आरोप लगाया गया. स्लम-ड्वेलर्स वेल्फेयर ग्रुप ने फिल्म के संगीतकार ए आर रहमान और अभिनेता अनिल कपूर के खिलाफ मानहानि का दावा भी ठोका. इन पर आरोप लगाया गया कि फिल्म में झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवालों को गलत तरीके से दिखाया गया, जो मानवाधिकार का उल्लंघन है. फिल्म में स्लमडॉग शब्द के इस्तेमाल पर भी ऐतराज जताया गया. सामाजिक कार्यर्ता निकोलस अल्मैदा ने निजी फायदे के लिए गरीबों के शोषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने स्लमडॉग शब्द को गरीबों के लिए अपमानजनक बताया.इस तरह के प्रदर्शन देश के दूसरे भागों में भी हुआ. हिंदू जन जागृति समिति ने फिल्म में राम को दिखाने पर ऐतराज जताया.
बाल कलाकार
स्लमडॉग की सफलता के बाद फिल्मकार मालामाल हो गए. लागत से दस गुना से भी ज्यादा पैसा कमाया. लेकिन इस फिल्म के बाल कलाकार आज भी उसी स्लम में रहते हैं, जहां वे पहले रहते थे. जानकर आश्चर्य होता है कि फिल्म के इन बाल कलाकारों को महज कुछ रुपयों पर फिल्म में काम कराया गया. फिल्म में रूबीना अली(लतिका) और अहरुद्दीन इस्माइल(सलीम) को एक आम मजदूर से महज तीन गुनी मजदूरी दी गई. इस्माइल के घर को स्थानीय अधिकारियों ने गिरा दिया और वो अब प्लाटिक के टेंट में रहता है. इस्माइल टीबी से गस्त है. इस बात तो निर्देशक बॉयल ने भी माना और रूबीना-इस्माइल के लिए एक ट्रस्ट बनाने की बात भी कही, लेकिन ट्रस्ट में कितना पैसा दिया गया, किसी को नहीं मालूम.
यह दुनिया ऐसी ही है मित्र. जिसका शोषण होना है उसका होता ही रहेगा.
जवाब देंहटाएं