इजरायल दुनिया का एकमात्र यहूदी देश है. अपनी आजादी से पहले भी और आजादी के बाद भी इजराइल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. यूं कहे तो इजरायल का अस्तित्व संघर्ष और सिर्फ संघर्ष पर टिका है. उसका आज तक का इतिहास अत्यंत ही रक्त-रंजित रहा है. इसके बावजूद भविष्य शांतिपूर्ण होगा, इसकी सिर्फ शुभकामना ही दी जा सकती है.
इजरायल पश्चिमी एशिया का एक छोटा सा देश है. यह भूमध्यसागर के किनारे स्थित है. इसकी उत्तरी सीमा पर लेबनान, उत्तर-पूर्व में सीरिया, पूर्व में जॉर्डन और दक्षिण-पश्चिम में मिश्र स्थित है. क्षेत्रफल के हिसाब छोटा होने के बावजूद इजरायल काफी विविधतओं भरा देश है. पश्चिमी तट और गजा पट्टी इजरायल से सटा हुआ है.
इजरायल की आबादी बहत्तर लाख अस्सी हजार है. इनमें यहूदी बहुसंख्यक हैं. इजरायल दुनिया का एकमात्र यहूदी राष्ट्र है. यहूदी के अलावा यहां अरबी मुस्लिम, ईसाई और अन्य जातियां भी रहती हैं.
आधुनिक इजरायल प्राचीनकाल के यहूदी भूमि की परिकल्पना पर आधारित है. कभी समूचा इयरायल यहूदी धर्मावलंबियों का देश माना जाता था. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्रसंघ ने यहूदियों के लिए एक अलग देश के रूप में इजरायल के गठन के ब्रिटेन के प्रस्ताव को मान्यता दे दी. 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल के विभाजन को मंजूरी दे दी. जिसके तहत यहूदियों और अरबों के लिए अलग राज्य को मंजूरी दे दी. 14 मई 1948 को यहूदी बहुल राज्य इजरायल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. इजरायल के इस घोषणा को आस-पास के अरब राष्ट्रों ने मानने से इनकार कर दिया और इजरायल के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.
इजरायल ने अरब राष्ट्रों के साथ एक ही समय कई मोर्चों पर युद्ध लड़ा और सभी युद्धों में जीत हासिल की. इस जीत ने अलग इजरायल की स्वतंत्रता को पुख्ता कर दिया. इतना ही नहीं, इस जीत के बाद इजरायल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के बाहर भी अपनी सीमा का विस्तार किया. इसके बाद से इजरायल को अपने पड़ोसी अरब देशों से लगातार संघर्ष करना पड़ा. ये संघर्ष बड़े युद्धों और रक्तपात के अंतहीन सिलसिले के रूप में सामने आया और आज भी जारी है.
सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो इजयराल की स्थापना और उसका अस्तित्व संघर्षों पर ही टिका है. इजरायल ने मिश्र और जॉर्डन के साथ कई शांति-संधि भी किए, लेकिन शांति के ये प्रयास इजरायल और फिलीस्तीनियों में दीर्घकालीन शांति
लाने में नाकामयाब रहे.
इजरायल में संसदीय शासन व्यवस्था है. प्रधानमंत्री सरकार का मुखिया होता है. सकलू घरेलू उत्पाद के हिसाब से इजरायल दुनिया का चौवालिसवां सबसे बड़ा देश है. मानव विकास सूचकांक, प्रेस की स्वतंत्रताऔर आर्थिक प्रतिस्पर्धा के हिसाब से मध्यपूर्व के देशों में इजरायल का स्थान सबसे ऊपर है. देश का सबसे बड़ा शहर येरूसलम इसकी राजधानी है, जबकि तेल अवीव इसकी वित्तीय राजधानी है.
इतिहास
इयरायल का इतिहास तीन हजार साल से भी पुराना है. यह इजरायलियों की धरती का प्रतीक रहा है. बाइबिल के मुताबिक देवदूत से लड़ने के बाद जैकोब का नाम इजरायल रखा गया. प्राचीनतम पुरा-तात्विक प्रमाणों के मुताबिक इजरायल किसी अन्य व्यक्ति का नाम था.
इजरायल ईसापूर्व से ही यहूदियों की पवित्र भूमि मानी जाती है. प्राचीन मान्यता के अनुसार, ईश्वर ने तीन यहूदियों को रहने के लिए ये धरती दी थी. विद्वान मानते हैं कि यह समय ईसा पूर्व दूसरी सहस्त्राब्दी की हो सकती है. यहूदी परंपरा के मुताबिक ईसापूर्व ग्यारहवी सदी में इस भूमि पर इजरायली साम्राज्य स्थापित हुआ था और इन शासकों ने करीब एक हजार साल तक इजराइल पर शासन किया था. इजरायल के ये स्थल यहूदियों के लिए सबसे पवित्र माना जाता है.
इजरायली साम्राज्य और सातवीं शताब्दी में इस्लामी विजय के मध्य इजरायल पर सीरिया, बेबीलोनिया, पर्सिया, ग्रीक, रोम, ससेनिया और बायजेनटाइन का शासन रहा. 132 ईस्वी में रोमन साम्राज्य के खिलाफ बार कोखबा विद्रोह की असफलता के बाद इस क्षेत्र में यहूदियों की उपस्थिति घट गई. यहूदियों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ. 628-29 ईस्वी में बायजेनटाइन शासक हेराक्ल्यूस ने वृहत पैमाने पर यहूदियों का संहार किया, जिसके कारण यहूदियों को वहां से भागना पड़ा. इस घटना के बाद यहां यहूदियों की संख्या नगण्य हो गई. 1260 में इजरायल मामलुक सल्तनत का हिस्सा बन गया और 1516 में यह ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा बन गया, जिसने बीसवीं सदी तक इस क्षेत्र पर शासन किया.
इजरायलियों को करीब पंद्रह सौ सालों तक अपनी जमीन से अलग रहना पड़ा, लेकिन सांस्कृतिक एकता ने इनके दिलों में मातृभूमि के प्रति प्रेम की लौ को जलाये रखा. बाइबिल और यहूदी प्रार्थना पुस्तिका ने इनकी आशा और विश्वास को बरकरार रखा. बारहवीं सदी की शुरुआत में कैथोलिक ईसाईयों की प्रताड़ना से पीड़ित होकर यहूदी एकबार फिर इजरायल लौटने लगे. 1492 में स्पेन ने यहूदियों को खदेड़ दिया. सोलहवी शताब्दी में इजरायल चार शहरों में यहूदियों ने जड़ें जमा ली और अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारी संख्या में लोग इजरायल में आ बसे.
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में यहूदियों ने एक अलग यहूदी राष्ट्र की मांग शुरू कर दी. 1896 में हर्जल ने अपनी किताब द जेविस स्टेट में भावी यहूदी राष्ट्र की रूप रेखा रखी. अगले ही साल वर्ल्ड जियोनिस्ट कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसकी अध्यक्षता हर्जल ने की.
1904-14 के दौरान करीब चालीस हजार यहूदी फिलीस्तीन में आकर बस गए. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन के विदेशमंत्री आर्थर बलफोर ने एक घोषणा पत्र जारी किया, जिसे बलफोर घोषणापत्र के नाम से जाना जाता है. इस घोषणा पत्र में फिलीस्तीन के अंदर एक यहूदी राष्ट्र की बात कही गई थी. इस घोषणा पत्र में ये बात भी शामिल की गई कि कुछ भी ऐसा नहीं किया जाए जिससे फिलीस्तीन में यहूदियों के नागरिक अधिकारों के खिलाफ हो, चाहे यहूदी दुनिया के किसी भी भाग में भी क्यों न हो. यहूदी स्वयंसेवकों की मदद से जेविस लीगन नाम से सेना की बटालियन बनी, जिसने फिलीस्तीन को जीतने में ब्रिटिश सेना की मदद की. इसका अरबों ने विरोध किया और 1920 का फिलीस्तीन युद्ध हुआ.
1922 लीग ऑफ नेशन्स ने बलफोर घोषणा पत्र से मिलते जुलते ब्रिटेन के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. इस क्षेत्र में अरब मुस्लिमों की आबादी ज्यादा थी, लेकिन इस क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर येरूसलम यहूदी बहुल था. इधर, यहूदियों का फिलीस्तीन आना जारी रहा और फिलीस्तीन में यहूदियों की आबादी एक लाख हो गई. 1930 में नाजीवाद के उदय के कारण यूरोप से भारी संख्या में यहूदियों का पलायन हुआ और फिलीस्तीन में यहूदियों की संख्या बढ़कर ढाई लाख से भी ज्यादा हो गई. यहूदियों आबादी के विस्तार ने 1936-39 के अरब क्रांति को जन्म दिया. इधर, दुनियाभर में यहूदियों के संहार का सिलसिला जारी रहा. द्वितीय विश्व आते-आते फिलीस्तीन में यहूदियों की आबादी बढ़कर तैंतीस प्रतिशत तक आ पहुंची.
इजरायल की आजादी
1945 के बाद ब्रिटेन का यहूदियों का साथ मतभेद बढ़ गया. 1947 में ब्रिटेन ने यह कहकर फिलीस्तीन शासनादेश को वापस ले लिया कि वह अरबों और यहूदियों के बीच सर्वसम्मत हल निकालने में नाकामयाब रहा. नवगठित संयुक्त राष्ट्र संघ ने 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र विभाजन प्रस्ताव(संयुक्त राष्ट्र आमसभा प्रस्ताव 181) को मंजूरी दे दी और इस प्रकार अरब और यहूदियों के लिए दो राष्ट्रों ने निर्माण हुआ. इस प्रस्ताव के तहत संघर्ष रोकने के लिए येरूसलम को अंतर्राष्ट्रीय शहर घोषित कर दिया गया और स्वयं संयुक्त राष्ट्र ने इसके प्रशासन की जिम्मेदारी संभाल ली. इस प्रस्ताव को अरब लीग और अरब उच्च समिति ने खारिज कर दिया. एक दिसंबर, 1947 से अरब उच्च समिति ने तीन दिवसीय हड़ताल शुरू की और अरब लड़ाकाओं नें यहूदियों पर हमला कर दिया. यहूदियों ने भी रक्षात्मक रुख अपनाया और अरबों को जवाब देना शुरू किया. इस तरह यहां गृहयुद्ध भड़क उठा. इस गृहयुद्ध की वजह से फिलीस्तीन-अरब अर्थव्यवस्था ढह गई और फिलीस्तीन-अरब को भागना पड़ा.
14 मई, 1948 को यहूदी एजेंसी ने इजरायल की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. इधर, मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, लेबनान और इराक ने एक साथ इजरायल पर हमला कर दिया. इस युद्ध को 1948 का अरब-इजरायल युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. इस युद्ध में अरब देशों की सहायता के लिए मोरक्को, सूडान, यमन और सऊदी अरब ने भी अपने सैनिक भेजे. यह युद्ध एक साल तक चला. और अंत में युद्धविराम की घोषणा हुई. ग्रीन-लाइन के नाम के अस्थायी सीमा रेखा पर सहमति बनी. अलग जॉर्डन को पश्चिम तट और गजा नाम दिया गया. गजा पट्टी पर मिस्र ने नियंत्रण कर लिया. 11 मई, 1949 को संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल को अपनी सदस्यता प्रदान की. संघर्ष के दौरान अस्सी प्रतिशत अरब आबादी (7,11,000) को वहां से भागना पड़ा. इस समय फिलीस्तीन शरणार्थी की समस्या इजराइल-फिलीस्तीन संघर्ष की मुख्य वजह माना जा रहा है.
अपनी आजादी के शुरुआती सालों में इजरायल शरणार्थी समस्या से जूझना पड़ा. 1948 से 1958 के दौरान इजरायल की आबादी आठ लाख से बढ़कर बीस लाख हो गई. 1952 में दो लाख लोग टेंटों में रह रहे थे. समस्या के समाधान के लिए प्रधानमंत्री डैविड बेन-गुरियन ने जर्मनी के साथ एक समझौता किया, जिसका यहूदियों ने व्यापक विरोध किया
1950 के दशक में इजरायल पर आत्मघाती फिलीस्तीनियों का हमला शुरू हो गया. ये आत्मघाती हमलावर मिस्र के अधिकार वाले गजा पट्टी में रहते थे.
अरब देशों ने इजरायल को मान्यता देने से इनकार कर दिया और इजरायल को नष्ट करने का आह्वान किया. 1967 में मिस्र, सीरिया और जॉर्डन की सेना इजरायली सीमा पर पहुंच गई. और संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों को वहां से भगा दिया. साथ ही, उन्होंने लालसागर तक इजरायल की आवाजाही पर रोक लगा दी. इजरायल ने अरबों के इस कार्रवाई का जवाब दिया और छह दिनों तक चले युद्ध में उसे निर्णायक जीत मिली. उसने पश्चिमतट, गजा पट्टी, सिनाई प्रायद्वीप और गोलन की पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया. 1949 में ग्रीन लाईन इजरायल और विजित क्षेत्र की प्रशासनिक सीमा बन गयी. पूर्व येरूसलम के साथ येरूसलम की सीमा में भी विस्तार हुआ. 1980 में पारित येरूसलम कानून ने इस सीमा को मंजूरी दे दी, जिसने येरूसलम की स्थिति पर विवाद खड़ा कर दिया.
1967 के युद्ध में अरबों की हार ने अरब में गैर-सरकारी तत्वों के संघर्ष को बढ़ावा दिया. फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ने तो हथियार बंद संघर्ष को ही आजादी का एकमात्र रास्ता करार दिया. साठ के दशक के शुरू और सत्तर के दशक के अंत में फिलीस्तीनियों ने इजरायलियों के खिलाफ दुनियाभर में श्रृंखलाबद्ध हमले किये. 1972 के ग्रीमकालीन ओलंपिक में इजरायली खिलाड़ियों का संहार इसमें शामिल है. उधर, इजरायल ने भी इन हमलों का जवाब दिया.
6 अक्टूबर 1973 को मिस्र और सीरिया की सेना ने इजरायल पर हमला कर दिया. यह दिन यहूदियों के कैलेंडर में सबसे पवित्र दिन माना जाता है. हालांकि इस युद्ध में इजरायल को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन उसने दुश्मनों को अपनी जमीन से खदेड़ दिया. इस युद्ध के बाद प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर को जनाक्रोश के चलते इस्तीफा देना पड़ा.
1977 के संसदीय चुनाव के बाद मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल सादत ने इजरायली संसद में भाषण देते हुए कहा कि अरब देश इजरायल को पहलीबार मान्यता दे रहे हैं. बाद में एक समझौते के मुताबिक इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप से सेना हटा लिया और ग्रीन लाइन के पार फिलीस्तीन की स्वायत्ता पर बाचीत के लिए तैयार हो गया. हालांकि फिलीस्तीन की स्वायत्तता पर कभी बातचीत नहीं हो पाई. सरकारों ने इजरायलियों को पश्चिमी तट में बसाना शुरू किया, जिसकी वजह से फिर संघर्ष शुरू हो गया.
7 जून 1981 को इजरायल ने इराक के ओसिराक परमाणु रिएक्टर पर हमला कर दिया. इसकी वजह इजरायल का वो खुफिया रिपोर्ट है जिसमें इराक द्वारा परमाणु बम विकसित करने और इजरायल के खिलाफ प्रयोग करने की बात कही गई थी. 1982 में इजरायल ने लेबनान के गृहयुद्ध में हस्तक्षेप करते हुए कई युद्ध शिविरों को नष्ट कर दिया, जहां से फिलीस्तीनी लड़ाके इजरायल पर मिसाईल से हमले करते थे.
1987 में फिलीस्तीनियों ने एकबार फिर हिंसा भड़क उठी. छह साल तक चले इस युद्ध में एक हजार लोग मारे गए.
1993 में इजरायल की ओर से शिमॉन पैरेस और फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन की ओर से महमूद अब्बास ने ओस्लो संधि पर हस्ताक्षर किया. इस संधि ने फिलीस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण को पश्चिमी तट और गजा पट्टी पर स्व-शासन का अधिकार दिया. इस संधि का मकसद आतंकवाद को खत्म करना था. 1994 में इजरायल-जॉर्डन संधि अस्तित्व में आया जिसके तहत जॉर्डन ने इजरायल के साथ रिश्ते सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ाया. ये संधि दोनों पक्ष के लोगों को स्वीकार था. लेकिन 1995 में यहूदियों के नेता यित्जिहाक रबिन की हत्या ने शांति संधि को नुकसान पहुंचाया.
1990 के अंत में इजरायल ने बेंजामिन नेतनयाहु की अगुवाई में हेब्रॉन से अपना सैनिक हटा लिया और फिलीस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकारण को शासन का अधिकार दे दिया.
1991 में प्रधानमंत्री यहुद बराक ने दक्षिणी लेबनान से सैन्य वापसी कर नए युग की शुरुआत की. बाद में भी उन्होंने फिलीस्तीन प्राधिकरण के अध्यक्ष यासर यराफात से बातचीत जारी रखी. जुलाई 2000 में कैंप डैविड में यासर अराफात और अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के बीच हो रहे सम्मेलन में बराक ने फिलीस्तीनी राज्य की स्थापना का प्रस्ताव दिया, जिसे अराफात ने नामंजूर कर दिया और इस तरह बातचीत भंग हो गई.
2001 में एरियल शैरॉन नए प्रधानमंत्री बने. शैरॉन ने गजा पट्टी से एकतरफा अपने सैनिकों को हटा लिया. मगर 2006 में हृदयाघात से वे कॉमा में चले गए और सत्ता यहुद ओल्मर्ट को सौंप दिया..
नवीन घटनाचक्र
जुलाई 2006 में हिजबुल्ला लड़ाकाओं ने इजरायल पर मिसाइल से हमले किए और दो इजरायलियों का अपहरण कर लिया. इससे द्वितीय लेबनान युद्ध भड़क उठा और लड़ाई महीने भर चली.
नवंबर 2007 में इजराइली प्रधानमंत्री यहुद ऑल्मर्ट और फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए राजी हो गए और दोनों ने संघर्ष विराम कर दिया.
मगर, दिसंबर 2008 के अंत में हमास ने युद्ध विराम का उल्लंघन करते हुए गजा पट्टी से इजरायल पर मिसाइल से हमले शुरू कर दिए. इजराइल ने भी जवाबी हमले किए. अठारह दिनों तक चले इस युद्ध में कम से कम ग्यारह सौ लोग मारे गए, जबकि कोई पांच हजार घायल हुए. गजा पट्टी में ढाई लाख मकान ध्वस्त हो गए.
very informative
जवाब देंहटाएंजानकारी बढ़ाई है आपके लेख ने। अच्छा है, लिखते रहिए।
जवाब देंहटाएंअगर तीन चीजें इजराइल से सीख ली जायें तो बेहतर हो,राष्ट्र प्रेम, खेती और कानून का पालन.
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