हिंदी शोध संसार

बुधवार, 14 जनवरी 2009

सत्यम के बहाने


2004 में एक अमेरिकी जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ओसामा के अलावा एक और शख्स से डरता है, वो है रामलिंगा राजू . वहीं, रामलिंगा राजू, जिसकी कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स का झंडा आईटी जगत में शान से लहराता था, आज उसके सितारे गर्दिश में है. अमेरिका को डराने वाले शख्स का ऐसा हश्र होगा, इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी.
एक अमेरिकी विश्वविद्यालय से प्रबंधन में स्नातक की डिग्री लेने वाले रामलिंग राजू ने अमेरिकी कुशल कामगारों की नींद हराम कर दी थी. उन्होंने उनके काम को हथिया लिया और वो काम भारतीय कामगारों तक पहुंचाया. विजन-2020 के रोल मॉडल बन गए. आम भारतीय को मोटी तनख्वाह और आरामपसंद जिंदगी का सपना दिखाया. उनकी कंपनी सत्यम में नौकरी पाने वाले अपने आपको बड़ा भाग्यशाली समझते थे. सत्यम से जुड़ने वाले शख्स की सामाजिक हैसियत खुद-ब-खुद बढ़ जाती थी.
कभी अमेरिकी कंपनियों के लिए चुनौती पेश करने वाली आईटी कंपनी सत्यम आज पूरी दुनिया के लिए खलनायक बन बनी है. इसने करोड़ों लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. 1987 से सफर की शुरुआत करने के बाद सत्यम जल्द ही देश की चौथी सबसे बड़ी आईटी कंपनी बन गई. इस तरक्की से दुनियाभर के आईटी दिग्गजरों की आंखें चौंधिया गई और लोग सत्यम का गुणगान करने लगे. लेकिन इस तरक्की का राज सात जनवरी 2009 को लोगों के सामने आ गया. जब कंपनी के संस्थापक और चैयरमैन राजू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. निदेशकमंडल और सेबी को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि वर्षों से कंपनी की वित्तीय हालत खराब चल रही है. बाजार में कंपनी का रुतबा कायम रखने के लिए साल-दर-साल उन्होंने कंपनी को मुनाफे में दिखाया. जिसके लिए कंपनी के खातों में हेर-फेर की गई. उधर, कंपनी के शेयर में प्रोमोटरों की हिस्सेदारी लगातार घटती चली गई. जिसकी वजह से कंपनी का राज खुलने का खतरा पैदा हो गया. और इससे बचने के लिए उन्होंने अपने पुत्र की स्वामित्व वाली कंपनी मेटास के अधिग्रहण का फैसला किया. उन्होंने कहा कि सत्यम को संकट से उबारने के लिए उन्होंने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन उनके तमाम प्रयासों के बावजूद सत्यम की हालत लगातार बिगड़ती चली गई. राजू ने कहा,
"यह बाघ की सवारी करने जैसा है, यह जाने बगैर कि उसका आहार बनने से कैसे बचा जाय"
उन्होंने लिखा कि वो गुनहगार है, खुद को कानून के हवाले करने के लिए तैयार हैं और अब वो हर परिणाम भुगतने के लिए तैयार हैं. इसके बाद जो कुछ हुआ सबके सामने है.
सत्यम के निदेशकमंडल और सेबी को इस आशय का पत्र लिखते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. जिस समय उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया, उस वक्त(सात जनवरी, समय-11.30 बजे) सत्यम के एक शेयर की कीमत 188 रुपये थी. लेकिन शाम तक इसकी कीमत घटकर चालीस रुपये रह गई. दूसरे दिन यह कीमत 6.25 पैसे के न्यूनतम स्तर पर आ गई. इससे कंपनी में निवेशकों को करीब दस हजार करोड़ का नुकसान हुआ. कंपनी की हालत सबके सामने है. कंपनी पर से निवेशकों का भरोसा उठ गया. उनके कर्मचारियों को सड़क पर आने का डर सताने लगा है. उधर, विप्रो और इंफोसिस जैसे कंपनियों के खातों का हिसाब रखने वाली एजेंसी केपीएमजी का कहना है कि कंपनी में हुए इस घोटाले के लिए अकेले रामलिंग राजू जिम्मेदार नहीं हैं, कंपनी के मुख्यकार्यकारी अधिकारी रिचर्य रेकी ने कहा कि यह सब तर्क से परे है. कोई नहीं कह सकता है कि इस पत्र में जो कुछ लिखा गया है, वह सबका सब सही ही है. अभी इस बात पर भरोसा करना सही नहीं होगा कि जो कुछ भी हुआ उसके लिए अकेले राजू जिम्मेदार है. बल्कि खातों के संचालन से जुड़े तमाम लोगों को सामने लाने की जरूरत है.
दरअसल कंपनी के साथ परेशानी उस वक्त शुरू हुई जब सोलह दिसंबर 2008 को सत्यम कंप्यूटर्स के निदेशकमंडल ने एक मीटिंग बुलाई गई और बैठक में रामलिंग राजू के बेटों की स्वामित्व वाली कंपनी मेटास इंफ्रास्ट्रेक्चर और मेटास प्रोपर्टीज के अधिग्रहण का प्रस्ताव पारित किया. इस अधिग्रहण के पीछे तर्क दिया गया कि
मंदी के इस दौर में वर्तमान विकासदर बनाए रखना नामुमकिन है.
विदेशी मुद्रा के मुकाबले भारतीय मुद्रा में आई गिरावट से भारी दबाव पैदा हुआ है.
बाजार के जिन क्षेत्रों में अब तक विकास देखा जा रहा है, वो मंदी की मार से बुरी तरह प्रभावित हैं.
साथ ही, आउट-सोर्सिंग को लेकर अमेरिकी सरकार ने जो रवैया अपना रखा है, उससे आने वाले समय में परेशानी और भी बढ़ सकती है. ऐसे में आईटी के अलावा बुनियादी ढांचा, ऊर्जा, आदि क्षेत्रों में निवेश करके कंपनी के विकास दर को बरकरार रखा जा सकता है.
बैठक में बताया गया कि भारत अगले पांच सालों में अपने बुनियादी ढांचों पर पांच सौ बिलियन डॉलर, जबकि चीन साढ़े सात सौ बिलियन डॉलर खर्च करेगा. इस लिहाज से बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश करना फायदेमंद सौदा साबित हो सकती है.
इन्हीं सब तर्कों के साथ सत्यम निदेशकमंडल ने 7914.10 करोड़ रुपये में मेटास के अधिग्रहण का फैसला किया.
पहले ही मंदी की मार से जूझ रियल स्टेट में निवेश करना सत्यम के निवेशकों को नागवार गुजरा और उन्होंने सत्यम निदेशकमंडल मंडल के इस फैसले का विरोध किया. वाकई लोगों को आश्चर्य हुआ कि आखिर सत्यम ने रियल स्टेट क्षेत्र में कूदने का फैसला क्यों किया. फैसले पर इस बात को लेकर भी ऐतराज था कि आखिर सत्यम के चेयरमैन राजू के बेटे की कंपनी में ही निवेश का फैसला क्यों किया गया.
इसका जवाब राजू ने अपने पत्र में दिया कि सत्यम को खास्ताहाली से उबारने के लिए उन्होंने ऐसा किया. मेटास के अधिग्रहण से कंपनी को जो फायदा होता उससे वह अपने घाटे की भरपाई करती और मेटास की देनदारी से बाद में निपटती. लेकिन निवेशकों के विरोध ने सारा गुड़ गोबर कर दिया. और अधिग्रहण का फैसला टालना पड़ा. पूरे मामले में किरकिरी झेल रहे राजू ने आखिरकार सच को सामने लाने का फैसला किया.
सच सामने आते ही सत्यम पर शिकंजा कसने लगा. सत्यम को जेल की हवा खानी पड़ी. सेबी ने सत्यम के शेयरों पर प्रतिबंध लगा दिया. उधर, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में भी सत्यम के शेयरों पर प्रतिबंध लगा दिया. सत्यम पर दर्जनों मामले दर्ज कराए गए. सरकार ने सत्यम के कामकाज की देखभाल के लिए तीन सदस्यीय समिति बना डाली. समिति ने अपना कामकाज भी शुरू कर दिया.
उधर, सत्यम के खातों की जांच की जिम्मेदारी एसएफआईओ(सीरियस फ्रॉड इन्वस्टीगेशन ऑफिस) को सौंप दी गई है. विभाग को तीन माह में रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है. यानी जब तक रिपोर्ट आएगी सरकार लोकसभा चुनाव में पूरी तरह उलझी रहेगी. पूरे रिपोर्ट का क्या हश्र होना है, एक सामान्य प्रबुद्ध नागरिक जरूर जानता है. केंद्र और राज्य में कांग्रेस की सरकार है, वह सत्यम और राजू को बचाने के लिए पूरी तरह खुलकर सामने आ गई है. तर्क ये दिया जा रहा है कि सरकार को कर्मचारियों के हितों की चिंता है. यानी सरकार हर महीने 520 करोड़ रुपये के हिसाब से तीन महीने तक कर्मचारियों को सेलरी देगी. देश में करोड़ों लोग बेरोजगार हैं, लाखों लोग रोज सड़कों पर आ रहे हैं, सरकार को इन लोगों की चिंता क्यों नहीं है. आखिर सत्यम के उन कर्मचारियों की चिंता सरकार को क्यों सताने लगी जो कम से कम पचास हजार रुपये माहवारी वेतन पाते रहे हैं. क्या इसलिए कि वो आरामपसंद जिंदगी जीने के आदि हो चुके हैं और अब मुखलिसी की जिंदगी नहीं जी सकते. उसे बिहार में फंसे चालीस लाख लोंगों की चिंता क्यों नहीं सतायी तो पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. उस समय 1000 करोड़ रुपये की घोषणा करने के लिए प्रधानमंत्री को हवाई सर्वेक्षण करना पड़ा, लालू और रामविलास से वोट के गणित सुलझाने पड़े और आज दो हजार करोड़ रुपये देने में थोड़ी भी हिचक नहीं आ रही है.
हमें भी ये भी पता है कि सरकार ने उन पैसों पर भी टैक्स लिया है, जिसे सत्यम ने कभी कमाया ही नहीं, आखिर, सरकार अब तक कहां सोती रही. उसे क्यों नहीं पता चला कि सत्यम के लाभ का चिट्ठा पूरी तरह झूठ का पुलिंदा है. वह और कब तक सोती रहेगी. आर्थिक विकास के आंकड़ों में वह जनता को कब तक ठगती रहेगी. वह उद्योग घरानों के खातों की क्यों नहीं जांच करवाती है. शायद सरकार भी जानती है कि वह जिन लोगों से जांच करवाएगी वो लोग अपनी क्षमता से कम और उपहारों से ज्यादा खुश होते हैं. जो बैंकर गरीब किसानों से ऋण वसूली के लिए हर हथकंडा अपनाने से नहीं चूकते वो सत्यम को सालों-साल गलत इंट्री कैसे देते रहे. अब भी सुधरने का वक्त है. विकास के आंकड़ों से बाहर निकलकर ठोस धरातल पर कुछ करने की जरूरत है.

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