भारत ने स्वदेशी प्रक्षेपणयान पीएसएलवी-सी-11 से चंद्रयान-1 को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित कर दिया. इसकेसाथ ही भारत दुनिया के उन छह चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो गया है, जिनके पास इतनी उच्च तकनीक है. चंद्रयान-1 पर करीब 385 करोड़ रुपये का खर्च आया है. लेकिन इससे जो फायदा हो गया वह काफी बड़ा है. वो येकि अगर हम अपने मिशन आगे बढ़ते रहे तो चांद जब आबाद होगा तो हमारी दावेदारी भी बढ़ेगी साथ ही उसकेसंसाधन पर हमारा भी बढ़-चढ़कर दावा होगा.
चंद्रयान-1 चंद्रमा की सतह पर मौजूद हीलियम-3 की मात्रा का पता लगाएगा. एक अनुमान के मुताबिक चंद्रमा परकरीब दस लाख टन हीलियम है, जबकि पृथ्वी पर महज 200 किलोग्राम.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की कुल ऊर्जा जरूरतों को पूरी करने के लिए हरसाल महज डेढ़ टन हीलियम कीजरूरत है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का कहना है कि उसे अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरी कहने के लिए हरसालमहज एक यान हीलियम की जरूरत होगी.
सबसे बड़ी बात है कि हीलियम निरापद है. यह यूरेनियम की तरह हानिकारक कचड़ा पैदा नहीं करता है. इसउपोत्पाद(बाय-प्रोडक्ट) पानी, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन और मिथेन के रूप में निकलता है जो चांद पर जीवन और बस्ती बसाने के लिए उपयोगी साबित होगा.
फायदे का यह एक पहलू है. इसी तरह इसके बहुत सारे फायदे होंगे.
बुधवार, 22 अक्तूबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें
(
Atom
)
Har deshwasi ke liye gourav ki baat hai.Aapne sahi likha hai.
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंक्षमा याचना- खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि मैने गलती से दिख दिया है कि चंद्रयान-1 को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित कर दिया गया है. जब यह अभी पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हुआ है.
जवाब देंहटाएंjaankari dene ke liye shukriya
जवाब देंहटाएं