तहलका संपादक के नाम खुला पत्र - साजिद राशिद
प्रिय तरूण तेजपाल जी, मैं तहलका का नियमित पाठक हूं. इसलिए पिछले दिनों जब तहलका ने सिमी पर केन्द्रित अंक निकाला तो मैंने इसे बहुत उत्सुकता से पढ़ा. लेकिन पढ़कर मैं चकित रह गया. मुझे उम्मीद थी कि तीन महीनों की खोजबीन के बाद आपने सिमी के बारे में जो जानकारी दी होगी उससे निश्चित ही मेरी समझ में बढ़ोत्तरी होगी....
यह अपेक्षा इसलिए भी थी क्योंकि तहलका पहले भी इस तरह की खोजी रपटों में हर पक्ष की गहन पड़ताल करता है और सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को सामने रखता है. लेकिन विद्वान खोजी पत्रकार अजीत साही ने तीन महीने की मेहनत और खोजबीन के बाद सिमी के बारे में जो निष्कर्ष प्रस्तुत किया है वह यह है कि सिमी के पदाधिकारी जिन्हें बम विस्फोटों और देशद्रोह के आरोप मेंगिरफ्तार किया गया है वे बेहद मासूम हैं और उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है. पूरी पत्रकारिता का सारयह है, क्योंकि सिमी पर प्रतिबंध का कोई ठोस आधार नहीं बनता, इसलिए उसपर प्रतिबंध नहीं होनाचाहिए.
मेरे ख्याल से आपके प्रतिनिधि अजीत साही ने तीन महीनों तक ग्यारह शहरों का कष्टदायक सफर तय करके सिमी कार्यकर्ताओं के परिजनों से मिलकर जो मालूमात हासिल की है वह तो बिल्कुल सही है क्योंकि सिमी का अपने बचाव में जो बयान है अजीत साही ने बड़ी ईमानदारी से उसे दर्ज किया है. लेकिनअफसोस सिर्फ इतना है कि उन्होंने इसे कहीं भी क्रास चेक नहीं किया है . और शहरों के बारे में तो नहीं लेकिन मुंबई में अजीत साही ने दूसरा पक्ष जानने के लिए किससे संपर्क किया? मुंबई में अंग्रेजी की वरिष्ठ पत्रकार ज्योति पुनवानी पिछले तीन सालों से मुसलमानों की समस्याओं पर इतना "सहानुभूति पूर्वक" लिखती हैं कि जमात-ए-इस्लामी और सिमी के एक पदाधिकारी ने उन्हें मुसलमान होने का न्यौता ही दे दिया था. साल भर पहले तक ज्योति पुनवानी सिमी को इस्लाम के प्रति अति उत्साही युवाओं का संगठन बताती रही हैं. जमात-ए-इस्लामी के हुकूमत-ए-इलाहिया (दुनियाभर में अल्लाह की हुकूमत) के नजरिये में उन्हें कोई आपत्ति नजर नहीं आती. विशेष न्यायाधिकरण का सिमीसे प्रतिबंध हटाने का फैसला आने के बाद १७ अगस्त को टाईम्स आफ इंडिया में इन्हीं ज्योति पुनवानीने लिखा था हाउ माई परसेप्शन आफ सिमी चेंज्ड, और विस्तार से बताया है कि कैसे सिमी के बारे मेंउनकी धारणा बदल गयी.
तरूण तेजपाल जी, क्या साही से आपको यह नहीं पूछना चाहिए था कि उन्होंने सिमी के चरित्र का दूसरापक्ष जानने की कोशिश क्यों नहीं की? उन्होंनेअपनी पूरी रिपोर्टिंग सिमी के बचाव पक्ष के वकील के तौर पर क्यों किया ? आपने सिमी का जो प्रोफाईल दिया है उसमें उसके संस्थापक मोहम्मद अहमदुल्ला सिद्दीकी के बारे में लिखा है कि उन्होंने १९७७ में उन्होंने सिमी की स्थापना की, लेकिन पाठकों को यह बताने कीजहमत क्यों नहीं उठायी कि कुछ ही सालों बाद सिद्दीकी ने सिमी से अपना नाता तोड़ लिया था . पिछले साल इंडियन एक्सप्रेस को दिये एक साक्षात्कार में उन्होंनेकहा था उन्हें सिमी की स्थापना पर अफसोस है, क्योंकि वह इस्लाम के रास्ते से हटकर जेहाद के रास्तेपर चला गया है. इसी तरह आपनेसिमी और जमात-ए-इस्लामी के संबंध पर सिर्फ इतना लिखा गया है कि वह जमात-ए-इस्लामी का एकउपसंगठन था और वह जमात से अलग अपनी पहचान कायम करना चाहता था जबकि हकीकत यह हैकि सिमी के जेहादी तेवरों को देखने के बाद जमात ने खुद सिमी से अपना रिश्ता तोड़ लिया था . लेकिन यह भी सच है कि यह संबंध विच्छेद एक दिखावा मात्र था.
अब मैं कुछ ऐसे तथ्य रखना चाहूंगा जो अजीत शाही द्वारा ११ शहरों में खोजबीन करने के बाद भी सिमी के बारे में जुटाये नहीं जा सके. १९९६ में अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत कायम होने के बादसिमी ने उसे अपना आदर्श मानते हुए भारत में नारों और पोस्टरों के जरिए जेहाद का ऐलान कर दिया. २९ अक्टूबर १९९९ को सिमी ने कानपुर में सिमी ने अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया था जिसमें देशभर के २० हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था. इस सम्मेलन को फिलीस्तीनी जिहादी संगठन हमास के नेता शेखयासीन अहमद ने संबोधित किया था. आप जानते ही होंगे कि शेख यासीन ने ही इजरायल औरअमेरिका में आत्मघाती हमले करवाये थे. इसी सम्मेलन को फोन द्वारा जमात-ए-इस्लामी (पाक) केअध्यक्ष काजी हुसैन ने भी संबोधित किया था . यह सिमी ही था जिसने कानपुर के तमाम सिनेमघरों को बंदकराने का आदेश दिया था और वहां की लड़कियों को बुर्का पहनने की चेतावनी दी थी.
चलिए मान लेते हैं कि आपका संवावदताता कानपुर नहीं गया था इसलिए इन जानकारियों से मरहूमरह गया हो लेकिन आपको यह पता ही होगा कि सिमी के पांच उद्येश्य हैं- अल्लाह मकसद हमारा, रसूलरहबल हमारा, कुरान कानून हमारा, जिहाद रास्ता हमारा, शहादत मंजिल हमारी. सिमी के लेटरहेड परबने निशान में धरती पर कुरान रखा हुआ है और कुरान पर एके-४७ रायफल . इसलिए सिमी खुद अपने इरादों को छुपाकर नहीं रख रहा है. पृथ्वी पर कुरान और उस पवित्र किताब पर एके-४७ का अर्थ किसी को समझाने की जरूरत नहीं है. सिमी किसके खिलाफ जेहाद करना चाहता है और क्यों शहीद हो जाना चाहता है, क्या इसके पीछे छिपे मकसद को बताना होगा? एक मिनट में डेढ़ सौबुलेट दागनेवाली एके-४७ का इस्तेमाल आखिर किस लक्ष्य के लिए होता है ? हमें तो यह पता है कि इससे निकलेवाली गोलियां जान बचाती नहीं, जान लेती हैं. तरूण जी जितना आपको खाकी पैण्ट और लाठीधारियों से परहेज है उतना ही हमें भी है. छह इंच का चाकूनुमात्रिशूल बांटनेवाले बजरंगदलियों से घृणा होती है, फिर एक-४७ लेकर देहाद का इरादा रखनेवाले हमारीनजर में मासूम कैसे हो सकते हैं? "काफिर भारत" को नेस्तनाबूत कर देने की प्रतिज्ञा लेनेवाले लादेनऔर तालिबान जिनके आदर्श हों उन्हें किन मानदंडों पर आप राष्ट्रवादी साबित करेंगे? आपकी यह रिपोर्ट बहुत सारे उर्दू अखबारों ने अपने यहां छापी है. निश्चित रूप से जो सिमी को इस्लाम का सच्चा खिदमतगार मानते हैं उन्हें आपकी रिपोर्ट से बहुत बल मिला है. लेकिन आपकी इस रिपोर्ट से उन मुट्ठीभर मुस्लिम बुद्धिजीवियों को जरूर धक्का लगेगा जो सिमी की देशविरोधी गतिविधियों से अपने संप्रदाय को सचेत करते रहे हैं. काश तहलका सिमी के मुखौटे के पीछे की असली सच्चाई सामने लाने की कोशिश की होती....
आभार,
साजिद राशिद
(साजिद राशिद संजीदा पत्रकार हैं और जनसत्ता में नियमित कालम लिखते हैं.)
टिप्पणी- ये पत्र तहलका हिंदी पाक्षिक में छपे एक लेख- आतंक के मोहरे या बलि के बकरे, लेख पर छपी से प्रतिक्रिया के लिया गया है. इसका कोई व्यवसायिक उद्देश्य नहीं, साथ ही, ब्लॉग स्वामी ने अपनी को ओर इस लेख में एक शब्द भी नहीं जोड़ा है.
गुरुवार, 23 अक्तूबर 2008
तहलका का सच(तरुण तेजपाल के नाम खुला पत्र)
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theek kah rahe hain, khatra aatankvadion se kam, dharm-nirpekshi media aur netaon se jyada hai
जवाब देंहटाएंaap sabhi se anurodh hai ki web journalist ko saajish me fasane ki khilaaf khade hon aur es post ko sthan apne blog pe den.
जवाब देंहटाएंshukriya
yashwant
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सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन
एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।
इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।
दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।
बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।
विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''
लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।
बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।
बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।
बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।
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अगर आप भी कोई ब्लाग या वेबसाइट या वेब पोर्टल चलाते हैं और वेब पत्रकार संघर्ष समिति में शामिल होना चाहते हैं तो aloktomar@hotmail.com पर मेल करें। वेब माध्यमों से जुड़े लोगों का एक संगठन बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। आप सबकी भागीदारी का आह्वान है।
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((इस पोस्ट को कापी करके आप अपने-अपने ब्लागों-वेबसाइटों पर प्रकाशित करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह संदेश पहुंचाया जा सके और वेब माध्यम के जरिए सुशील कुमार की लड़ाई को विस्तार दिया जा सके।))
aap sabhi se anurodh hai ki web journalist ko saajish me fasane ki khilaaf khade hon aur es post ko sthan apne blog pe den.
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सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन
एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।
इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।
दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।
बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।
विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''
लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।
बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।
बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।
बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।
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अगर आप भी कोई ब्लाग या वेबसाइट या वेब पोर्टल चलाते हैं और वेब पत्रकार संघर्ष समिति में शामिल होना चाहते हैं तो aloktomar@hotmail.com पर मेल करें। वेब माध्यमों से जुड़े लोगों का एक संगठन बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। आप सबकी भागीदारी का आह्वान है।
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((इस पोस्ट को कापी करके आप अपने-अपने ब्लागों-वेबसाइटों पर प्रकाशित करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह संदेश पहुंचाया जा सके और वेब माध्यम के जरिए सुशील कुमार की लड़ाई को विस्तार दिया जा सके।))