हिंदी शोध संसार

सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

एक मुसलमान सौ बेईमान


सबसे पहले, दो घटनाओं का जिक्र करना चाहूंगा. पहली, कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर उन्हें जामियानगर के बाटला हाउस मुठभेड़ कांड को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय में उठ रही शंकाओं से अवगत कराया और इसे दूर करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाए जाने की मांग की. इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस महासचिव मोहसिना किदवई, पूर्व केंद्रीय मंत्री सी के जाफर शरीफ, सलमान खुर्शीद, राज्यसभा के उपसभापति के रहमान खान, अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष इमरान किदवई और अनीस दुर्रानी शामिल थे.

दूसरी घटना, देवबंद विचारधारा के संगठन जमीयत उलेमा--हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि शिवराज पाटिल के गृहमंत्री पद पर रहते दहशतगर्दी का खात्मा नामुमकिन है. मदनी ने केंद्र सरकार कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि आतंकवादी वारदातों के लिए गृहमंत्री मुसलमानों को कसूरवार मान रहे हैं. मदनी का यह तर्क गृहमंत्रालय के उस बयान पर आया है जिसमें मंत्रालय बार-बार दोहराता रहा है कि आतंकी वारदातों के पीछे अयोध्या में विवादित ढांचा तोड़े जाने और 2002 का गुजरात दंगा है.


योग्यता विस्तार- पहली घटना. दिल्ली बम धमाकों के बाद मीडिया ने टेप रिकॉर्डर छाप गृहमंत्री को पहले उनके बयानों, फिर उनके मॉडलिंग स्टाईल को लेकर खूब हंगामा किया. की मुखरता ने लामीडियालू जैसे सिमी समर्थकों की, कुछ देर के लिए ही सही, जुबान बंद करा दी. लालू आनन-फानन में प्रधानमंत्री के पास गए और गृहमंत्री की जमकर शिकायतें की. बाद में वे सोनिया से मिले. लेकिन सोनिया की विनम्रता भरी फटकार ने लालू को बयान बदलने के लिए मजबूर कर दिया. लालू, सोनिया के विनम्र फटकार पर निरुत्तर हो गए कि एक तरफ तो आप सिमी जैसे संगठनों के पक्ष में सार्वजनिक बयान देते हैं और जब बम विस्फोट होता है तो आप गृहमंत्री और खुफिया विभाग के ऊपर नाराजगी जताते हैं, ऐसा बिल्किल नहीं चलेगा.

सिमी पर साल 2006 में प्रतिबंध लगा था, तब तक लेकर हाल के दिनों तक केंद्र सरकार उसके विरूद्ध पर्याप्त सबूत कोर्ट में पेश नहीं कर सकी. इसलिए दिल्ली हाईकोर्ट के विशेष न्यायाधिकरण ने सबूतों के अभाव में सिमी पर से प्रतिबंध हटाने का निर्देश दिया.

इसके बाद, लालू, मुलायम और रामविलास पासवान के पर निकल आए. सबने सिमी के समर्थन में जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. उनका कहना था कि सिमी पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो बजरंग दल, दुर्गावाहिनी और विश्व हिंदू परिषद पर भी प्रतिबंध लगे.

केंद्र सरकार ने अपने ही सहयोगियों के इस गैर-जिम्मेदाराना हरकत पर कुछ नहीं कहा, लेकिन वो तुरंत सुप्रीमकोर्ट पहुंचकर न्यायाधिकरण के आदेश पर रोक लगाने की अपील की और कोर्ट ने उसकी बात मान भी ली. बाद में केंद्र ने हाल के दिनों में हुए बम धमाकों में सिमी के हाथ होने का सबूत कोर्ट में पेश किया. फिलहाल सिमी पर प्रतिबंध जारी है. लेकिन लालू, मुलायम और रामविलास पासवान के बयान ने खुद केंद्र सरकार को कटघरे में ला खड़ा किया.

हाल के दिनों में अहमदाबाद, बैंगलोर और दिल्ली में बम धमाके हुए. केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटील के नरम रवैये पर सवाल उठे तो लालू यहां भी शामिल हो गए और सोनिया से फटकार सुनी.

बाटला हाउस मुठभेड़ पर पहले अमर सिंह, फिर ममता बनर्जी, फिर कांग्रेसी के मुस्लिम नेताओं ने सवाल उठाए और मामले की जांच की मांग की. इस मांग में रामविलास पासवान, सीपीएम महासचिव प्रकाश करात और सीपीआई महासचिव ए बी बर्धन शामिल हो गए.

सब का एक स्वर से कहना था कि निर्दोष मुसलमानों को निशाना बनाया गया. मुठभेड़ फर्जी थी. अमर सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि शहीद एमसी शर्मा को स्पेशल सेल से निलंबित कर दिया गया था और वह बहाली के लिए दफ्तरों का चक्कर काट रहा है. अमर सिंह ने तो बेशर्मी की हद करते हुए कहा कि किसी पुलिस वाले ने ही उसे गोली मारी थी.

इतनी बेह्याई, इतनी निर्लज्जता, महज चंद वोटों के लिए.

महज चंद वोटो के लिए, पूरे मुस्लिम समाज को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है. महज चंद वोटों के लिए ये लोग देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं.

जब कभी आतंकवाद से लड़ने की बात आती है, आतंकवाद से लड़ने के लिए कानून बनाने की बात आती है, तो कहते हैं कि इस कानून का दुरूपयोग होगा. साफ-साफ कहते हैं कि अल्पसंख्यकों को परेशान किया जाएगा.

देश में किस चीज का दुरूपयोग नहीं होता है. विधायिका, न्यायिका, कार्यपालिका सबका दुरूपयोग होता है. पुलिस, जज, नेता खरीदे जाते है और बिकते हैं. तो क्या संसद, विधानसभाओं, अदालतों, पुलिस मुख्यालयों को भंग कर दिया जाय.

एक समुदाय जिसे कभी राष्ट्र की मुख्यधारा में एक साजिश के तहत शामिल नहीं होने दिया गया, कभी शाहबानो तो कभी अफजल के नाम पर मुसलमानों को ठगा जाता रहा है.

इनका वोट हासिल करने के लिए सभी राष्ट्र के साथ गद्दारी में जुटे हैं.

5 टिप्‍पणियां :

  1. shah baano or afjal jaise to hote hi isi liye hai.....raajniti mai jo n ho wahi sahi hai

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  2. इन सब को वोट चाहिए इन्हे मुसलमानों की तरक्की से कोई लेना देना नही, बस केसे जेसे मुसलमानों में असुरक्षा की भावना पैदा कर उसे वोट बैंक में तब्दील किया जाए इसी जुगत में लगी है ये पार्टियाँ |

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  3. आतंकवाद पर खुलके बातें होनी चाहियें और वह भी बिना किसी पूर्वाग्रह के. चुनाव निकट आने पर यह बातें अपने-अपने स्वार्थानुरूप अलग-अलग कोणों से गरमाई जाती हैं. अर्थ स्पष्ट है कि गंभीर कोई नहीं है मुसलमान हिन्दू इन विषयों पर एक सभागार में बैठकर क्यों नहीं विचार-विमर्श करते. मैं नहीं समझता कि हिन्दुओं को मुसलमानों से कोई शत्रुता है. हाँ उनके सम्बन्ध में उनके निष्कर्ष अच्छे नहीं हैं. इसके मूल में कुछ राजनीतिक दलों की सफल प्रचार पद्धति अधिक कारगर है.

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