हिंदी शोध संसार

बुधवार, 30 जनवरी 2008

भारतीय क्रिकेट की एक और बड़ी जीत
भारतीय क्रिकेट की इसे अब तक की सबसे बड़ी जीत कही जा सकती है. इस जीत में मैदान पर मौजूद बारह खिलाड़ी तो शामिल थे ही, उनके साथ मैदान के बाहर बीसीसीआई और देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमी भी शामिल थे. इस जीत के लिए देश के लाखों ने दुआएं मांगी थी. मामला था- आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी एंड्रू साइमंड्स के खिलाफ नस्लभेदी टिप्पणी करने का. पूरी आस्ट्रेलियाई टीम ने हरभजन सिंह पर नस्लभेदी टिप्पणी करने का आरोप लगाया. इस आरोप में सच्चाई ज्यादा एक प्रबल प्रतिरोधी टीम को नीचा दिखाने की भावना ज्यादा झलकती है. साइमंड्स ने तो यहां तक कह दिया था- अगर कोई अपनी टीम का खिलाड़ी ऐसी टिप्पणी कर दे तो वे उसे माफ कर सकते हैं, लेकिन एक विरोधी टीम का खिलाड़ी ऐसी टिप्पणी कर दे तो वे उसे कतई बर्दास्त नहीं कर सकते. साइमंड्स की इस टिप्पणी में एक ऐसी मानसिकता झलकती है जो साथी खिलाड़ी को प्रतियोगी से ज्यादा अपना दुश्मन मानती है. दरअसल गाली गाली होती है, चाहे कोई अपना दे या पराया. लेकिन साइमंड्स को गाली से ज्यादा अपने-पराये का फर्क दिखता है. ऐसी स्थिति में हम खिलाड़ी नहीं एक-दूसरे को अपना दुश्मन समझने लगते हैं. इससे खेल की भावना तो आहत होती ही है, साथ ही भद्रजनों का यह खेल अपनी गरिमा को विकेट से गिल्लियों की तरह बिखरते पाता है. जहां तक नस्लभेदी टिप्पणी की बात है, बीबीसीआई ने साफ कर दिया कि भारतीय खिलाड़ी इस तरह की टिप्पणी कर ही नहीं सकता, क्योंकि भारतीय सदियों से नस्लभेदी के खिलाफ लड़ते आया है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश से लेकर विदेशों तक में ये लड़ाई लड़ी थी. आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी भारतीय खिलाड़ियों पर इस तरह का आरोप लगाकर इन्हें बदनाम करना चाहते हैं वो भी उस टीम के खिलाड़ियों को जो बार उनके लगातार विजय के अभियान में बाधा बनता आया है. खैर बात, भारत की जीत के साथ खत्म हो गई. आईसीसी के कमीश्नर ने हरभजन को इस आरोप से बरी कर दिया, हालांकि हरभजन ने साइमंड्स को गाली देने की बात मान ली, जिसकी वजह से उन्हें एडीलेड टेस्ट का आधा फीस जुर्माना के रूप में चुकाना पड़ा. हालांकि आस्ट्रेलियाई भारत की इस जीत को नहीं पचा पा रहा है. हरभजन के बड़ी होने के बाद आस्ट्रेलियाई मीडिया में, क्रिकेटर ऑफ दी शेम जैसी टिप्पणी की गई. वैसे इस बात को छोड़ दें, क्योंकि अपनी भड़ास निकालने का हक सबको है, तो भारत की जीत क्रिकेट जगत की जीत है. लेकिन अब ये सवाल खड़ा होता जा रहा है कि भद्रजनों के इस खेल को क्या हो गया है. जिस क्रिकेट खिलाड़ी को मैदान में जौहर दिखाना चाहिए, वो अदालत के सामने सफाई पेश कर रहा है. एक तरह से देखें तो यह खेल अब खेल से ज्यादा पैसों और राजनीति का दांव पेंच बनता जा रहा है. जिस तरह से इंपायर खिलाड़ियों और टीमों के प्रति भेद-भावपूर्ण फैसले देती है, उससे खेल की गरिमा गिरती है. समय रहते आईसीसी को सचेत होना होगा.

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