udiisaa के कंधमाल में पिछले दिनों जातीय हिंसा का खौफनाक चेहरा देखने को मिला। कंधमाल जिले के ब्रह्मनिपुर गाँव में चर्च पर विवाद को लेकर जातीय हिंसा भड़क उठी थी। वयोवृद्ध संत और वीएचपी नेता स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती घटनास्थल पर जा रहे थे। तभी तीन सौ लोंगों की एक भीड़ ने उनपर जानलेवा हमला कर दिया था। इसके बाद जो कुछ हुआ--जगजाहिर है। ईसाईयों के गिरिजाघर फूंके गए, घरों को जलाया गया। जिनका घर जलाया गया, वे पहले गरीब थे। आज भी गरीब है। फर्क सिर्फ इतना आया कि इनमें से कई पहले हिन्दू थे, अब ईसाई बन गए हैं। गरीब आदिवासी इलाक़ों के गरीबों को नाना प्रकार के प्रलोभनों के जरिये, उन्हें धर्मान्तरित किया जाता है। उनका धरम तो बदल जाता है, लेकिन उनकी गरीबी ज्यों की त्यों बनी रहती है। धर्मपरिवर्तन के बाद भी वे अनुसूचित जनजाति का हक चाहते हैं, जो इस तबके के लोंगो को चुभता है। और वे इन परिवर्तित लोगो को अपने जैसे दर्जा बरकरार रखे जाने का विरोध करते हैं। दोनो के बीच हक का संघर्ष शुरू हो जाता है।
अगर धर्मं बदलने के बाद भी गरीबी बरकरार रहती है, तो मिश्नारियां बेहतर जीवन का प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन क्यों कराती हैं?
सरकार जाती -धर्म से ऊपर उठाकर गरीबों को गरीब क्यों नही मानती? और इनकी समस्याओं को क्यों नही सुलझती ताकि गरीबों को बेहतर जीवन के लालच में धरम नहीं बदलना पड़े?
मंगलवार, 1 जनवरी 2008
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