पिछले सप्ताह की बात है-- एक बडे राष्ट्रीय चैनल पर-- जो कभी कभार जुबान पर सच और दिल में इंडिया होने की बात बडे गर्व के साथ करता है-- एक कार्यक्रम में एक सवाल पूछा गया था। वो सवाल था-- देश के संसाधनों पर किसका हक है-- सवाल का जवाब इन तीन विकल्पों में चुनना था-- १- अल्पसंख्यकों का २- बहुसंख्यकों का ३- जिसकी लाठी, उसकी भैंस। सवाल को देखने से साफ हो जाता है कि देश के संसाधनों पर सिर्फ अल्पसंख्यकों या सिर्फ बहुसंख्यकों या फिर जो लड़कर जीत सकता है उसी का हक होगा। हमारे देश के एक बडे राष्ट्रीय चैनल की मानसिकता दो खंडो में विभाजित है। इस सवाल का संदर्भ- गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस बयान के परिप्रेक्ष्य में था-- जिसमें मोदी ने राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में-- ११वे पंचवर्षीय योजना में मुसलमानों को ज्यादा तरजीह देने को-- सांप्रदायिक बजट-- करार दिया था। इस संबध में-- हिंदुस्तान TIMES में सीपीएम नेता सीताराम येचुरी का एक आलेख छपा-- जिसमे येचुरी ने मुसलमानों को ज्यादा तरजीह देने की बात को इस आधार पर सही ठहराया था कि मनमोहन से पहले इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी भी इस तरह की पहल कर चुके थे। देश की आजादी के बाद करीब सालों तक कांग्रेस ने शासन किया। इंदिरा ने गरीबी हटाओ का नारा दिया-- गरीबी नहीं हटी, भले गरीब अपनी जंग हारकर मिट रहे हो। मनमोहन सिंह की सरकार ने मुसलमानों की स्थिति जानने के लिए सच्चर समिति बनाईं- और आज वे आज देश के संसाधनों में मुसलमानों को पहला हक दिए जाने की बात कर रहे है। मनमोहन को इन सवालों के जवाब भी देने चाहिऐ-- आज सच्चर समिति की रिपोर्ट जो हकिक़क बयां कर रही है, उसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या देश पर चालीस साल राज करने वाली पार्टी कांग्रेस इसके लिए जिम्मेदार नही है? क्या मनमोहन सिंह को मालूम है कि इस देश मैं समाज के कई तबकों की स्थिति सच्चर समिति की रिपोर्ट से भी बदतर है? मनमोहन सिंह की सरकार उन मज्लूमों के लिए कुछ क्यों नहीं करती? क्यों नहीं सरकार सम्पूर्ण भारत का सर्वेक्षण कर गरीबो की पहचान करती है? क्यों नही सरकार सभी गरीबों के विकास के लिए एक जैसा कदम उठती है? सच्चर समिति के अनुसार, सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की संख्या कम है। इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाना चाहिऐ? इसके लिए मुसलमानों की शिक्षा ज्यादा दोषी है, जो मदरसों से शुरू होकर मदरसों में खत्म होती है। सरकार उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा देने के लिए प्रावधान क्यों बनती। दर-असल इस पूरे कवायद का मकसद मुल्लाओं के फरमान को अपने पक्ष में करना है, ताकि कांग्रेस सत्ता की गद्दी पर युगों-युगों तक कायम रहे- भले ही देश का बंटाधार हो जाये। मुस्लिम तुष्टिकरण कांग्रेस की दें है और यह कई रूपों देश को बाँट रहा है। |
सोमवार, 31 दिसंबर 2007
समाज को बांटने में तुष्टिकरण का योगदान
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इस पोस्ट के शीर्षक से आरम्भ करके इसका हरेक वाक्य सत्य और तर्कपूर्ण है। इस देश में इमानदारी से उन लोगों की तलाश की जानी चाहिये जो इमानदारी से मेहनत कर रहे हैं और फिर भी उनकी अर्थिक स्थिति ठीक नहीं हो पा रही है। इसमें मजहब बीच में बिलकुल नहीं आना चाहिये। कांग्रेस कुछ ऐसा न करे जिससे आम जनता को ऐसा प्रतीत हो कि हिन्दू होना कोई गुनाह है, जैसा कि मध्य-युग में औरंगजेब आदि शासकों के समय में हुआ था।
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