बेनजीर नहीं रहीं। कोई उन्हें शहीद का दर्जा देना चाहेगा, जैसा की हिंदुस्तान में आमतौर पर होता है। लेकिन बेनजीर आतंकवाद का शिकार हुईं। आतंकवाद, जिसे वहाँ के शासकों ने बढावा दिया। पाल-पोस कर बड़ा किया। आज उन्ही के लिए भस्मासुर साबित हो रहा है। आतंकवाद को हिंदुस्तान के खिलाफ इस्तेमाल किया। हिंदुस्तान सदियों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है। वहाँ के शासकों ने आवाम को इस मुगालते में रखा कि इसी के बल पर वो हिंदुस्तान को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देंगे। लेकिन उनका बोया विष-बीज आज विशाल विष वृक्ष बन गया है और आखिरकार उन्हीं के अमन-औ-चैन के लिए खतरा बन गया है।
पाकिस्तान की बुनियाद जातीय नफ़रत की ईंट से पड़ी। देश बार-बार सैन्य शासकों के हाथों की कठपुतली बना रहा। कभी लोकतंत्र को फलने फूलने का मौका नहीं दिया गया। वहाँ से शासक मुल्ला-मौलवियों ओर कट्टरपंथियों के हाथों की कठपुतली बने रहे। ज्यादातर शासको को परवर्ती शासकों के कोप का शिकार होना पड़ा। उन्हें भ्रष्ट और देश-द्रोही साबित किया गया। देश के संविधान और न्याय-व्यवस्था पर चंद लोगों का कब्जा रहा।
आज देश चौराहे पर खड़ा है। जिसका रास्ता आतंकवाद, अराजकता, तानाशाही और अमन की ओर जाता है। पर इस देश के लिए सही रास्ता चुनना हमेशा की तरह आज भी मुश्किल है।
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007
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बेनजिर मर गई उसका कारण भी स्वम है ओ हिन्दुस्तानी कि यादास्त कमजोर होती है याद दिलादु 1990 मे सबसे जाद आतन्कवाद का आर्कमण हिन्दुस्तान मे हुआ था जव वह प्रधानमंन्त्री थी और उसने हि कहा था घास की रोटी खा कर भी हिन्दुस्तान से लरुगी उसी का नतिजा है जैसा उसने वोया वोसा हि काटा
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