हिंदी शोध संसार

बुधवार, 26 दिसंबर 2007

सेकुलरवाद की खुली पोल

गुजरात चुनाव के परिणामों से तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड की पोल खुल गयी है। गुजरात की जनता ने अपने लिए काम करने वाले योग्य और कुशल उम्मीदवार को चुना है। धर्मं-निरपेक्षता की चादर ओढ़कर तुष्टिकरण की राजनीती करनेवालों को नकार दिया है। जहाँ तक २००२ के गुजरात दंगों की बात है। जनता उसे भूल चुकी है। तभी तो मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली मीडिया को मुँह की खानी पड़ी है। नयी दिल्ली के एक टीवी समूह ने तो अपने ही चैनल द्वारा स्थापित आदर्श पत्रकारिता के मानदंडों की धज्जियाँ उड़ते हुए अपने चैनल के साख पर बट्टा लगा दिया है। इस चैनल के एक लब्ध-प्रतिष्ठित एंकर ने तो तमाम हदें पर कर दी। उसके मुँह से निकले शब्द-- मोदी विकास के साबुन से सांप्रदायिक दंगों का खून धोना चाहते हैं-- बड़ा ही हास्यास्पद लगता है। इस चैनल को ऐसा लगता था कि हम अपने टीवी चैनल के बदौलत देश-प्रदेश की सरकार बदल सकते है। अगर ऐसा होता तो देश में पैसे वालों की कमी नहीं है। वे लोग भी अपना-अपना चैनल खोल कर रोज-रोज सरकार बनाते और गिराते। पर, शुक्र है कि ये लोकतंत्र है, और यहाँ जनता की चलती है। टीवी चैनलों की नहीं। जनता चैनलों को सबक सिखाने में भी पीछे नहीं रहती है। कुछ शहरों में कुछ संबाद-दाताओं के बल पर चैनल तो चलाये जा सकते हैं, पर जनता- के पास तक नहीं पहुंचा जा सकता है।

3 टिप्‍पणियां :

  1. लोगो की आवाज है मीडिया और इसका साख खोना दूर्भाग्यपूर्ण है.

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  2. media wale pagal ho gaye hai. ye videshi dhan ke bal par bharat ko barbad karne me lage huye hai.inke dimag par paschimi parbhav pada hua hai.ve bharatiyo ko murkh samajhate hai
    prabhu singh parmar
    sirohi(rajasthan)

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  3. अरे भाई ऐसा भी तो हो सकता है कि उस चैनल को यह सब कहने करने के लिये पैसा मिला हो!!

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