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रविवार, 23 दिसंबर 2007

फिर आ गए मोदी

फिर आ गए मोदी। पूरे बैंग के साथ। १८२ सीटों वाली विधानसभा में उन्हें ११७ सीटें मिली। उन्हें मौत का सौदागर कहने वाली कांग्रेस को मात्र ६१। तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के झंडा-बारदारों को मुँह की खानी पड़ी। खुद के-- जुबान पर सच, दिल में इंडिया का दावा करने वाली एक प्रचार-चैनल की सारी विज्ञापन बाजी की हवा निकल गयी। सारे राष्ट्र-विरोधी प्रचारकों का मुहँ लटक गया।
आखिर मोदी की मिहनत रंग लाई। मोदी के बोलने की कला और उनका रणनीतिक कौशल ने बीजेपी को चौथी बार गुजरात में वापस ले आई। इसके साथ गुजरात की जनता ने मोदी के काम को पसंद किया और तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौपी।
कांग्रेस ने खुद अपनी हर की नींव खोदी। पिछले चार सालों में कांग्रेस ने एक भी बड़ा जन आन्दोलन नहीं निकला। कांग्रेसी नेता अपनी मांद में सोये रहे। चुनाव आते ही सुगबुगाने लगे। ऊपर से कांग्रेस के अदूरदर्शी नेताओं का भाषण पढकर सोनिया गाँधी ने गूड गोबर कर दिया। बिना जाने समझे मोदी को मौत का सौदागर कह दिया। शायद उनको पता भी नहीं होगा कि मौत का सौदागर किसे कहते है। कांग्रेस नेता ये कैसे भूल गए कि उन्होने सिख दंगों के दौरान जमकर रक्त पट करवाया और राजीव गाँधी ने कहा कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है। खैर छोडिये, कांग्रेस ने गुजरात में मुख्यमंत्री पद का कोई उम्मीदवार नहीं किया। ऐसी बात नहीं कि उनके पास नेताओं की कमी थी। मोदी जैसी शख्सियत नहीं, लेकिन शंकर सिंह वाघेला जैसे नेता उनमे जरूर थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें अछूत बनाए रखा और जिम्मेदारी नहीं सौपी।
यही कांग्रेस है, जिसकी अध्यक्ष, राजीव गाँधी फाउन्डेशन की भी अध्यक्ष हैं, ने मोदी सर्वोत्तम प्रशासन का अवार्ड दिया॥ आज उसी को मौत का सौदागर कहते हैं-- आखिर गुजरात कि जनता इसे कैसे बर्दास्त कराती।
मोदी ने जंगल की जमीन आदिवासियों को पट्टे पर देने का प्रस्ताव रखा, कांग्रेस ने इसका विरोध करके आदिवासियों से रार मोल ले लिया। वहीं दूसरी तरफ मोदी की कई योजनाएं सफल रही। उन्होने नर्मदा का पानी उत्तरी क्षेत्र के लोगों को देकर लोगों का दिल जीता। फिर हर वक्त लोगों के बीच रहे। चाहे एक प्रचारक के रुप में हों या नेता के रुप में॥ आखिर बीजेपी टीम के एक समर्पित खिलाडी को जनता ने मेन ऑफ़ दे मैच चूना॥ मुबारक हो मोदी। अगर मोदी की जीत से कोई खफा हो तो वह होता रहे.

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