शुक्रवार, 23 नवंबर 2007
दोस्त दोस्त न रहा
कर्नाटक के नाटक का पर्दा फ़िलहाल गिर गया है। कर्नाटक में अवसरवादी राजनीती का जो नमूना देखने को मिल है, वह अन्यत्र मिलना मुश्किल है। जे डी एस सुप्रीमो एच डी देवेगौडा एक समय में देश के प्रधानमत्री थे। आज एक राज्य की राजनीती में सिमट कर रह गए हैं। इस राज्य पर भी उनका पुत्रमोह भारी है। उस समय कांग्रेस की गठबंधन सरकार को तोड़कर उनके बेटे ने बीजेपी के सहयोग से कर्नाटका में गठबंधन सरकार का गठन किया। उस समय देवेगौडा ने अपने विद्रोही बेटे और उनके सहयोगी उनचालीस विधायकों की बर्खास्गी की मांग कर डाली। जब सरकार बन गई तो बीस महीने तक सत्ता का सुख भोगा। पर जब अपने सहयोगी को सत्ता सुख देने की बारी आई तो पहले तो साफ इंकार कर गए लेकिन अपनी पार्टी में टूट को देखते हुए उन्होने बीजेपी को सरकार बनने में समर्थन देना स्वीकार किया। सातवें रोज जब शक्ति परीक्षण की बारी थी तो अपने वादे से मुकरते हुए बारह्सुत्री समझौता पत्र थमा डाली। इस पत्र के मुताबिक राज्य का असली मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ही होते, बी एस येदियुरप्पा सिर्फ स्टाम्प रह जाते। जो बीजेपी को स्वीकार नही हुआ, और इस गठबंधन का बुरा अंत हुआ। दक्षिण भारत में सरकार बनने के भाजपा सपने का अंत हो गया। लेकिन जे डी एस ने बीजेपी के साथ जिस तरह दगाबाजी की, उससे राजनीती का एक और अवसरवादी और घिनौना चेहरा सामने आ गया है.
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