हिंदी शोध संसार

शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

देश एक बार श्रंखलाबद्ध बम धमाकों ने पूरे देश को दहला दिया। इस बार हमले देवभूमि उत्तर प्रदेश के तीन शहरों में हुए। राजधानी लखनऊ, फैजाबाद और कशी विश्वनाथ की धरती वाराणसी धमाकों से हिल गया। इन धमाकों में करीब पचास लोग मरे गए जबकि सौ से ज्यादा घायल हुए हैं। गृह मंत्रालय की और से वही घिसा-पिता बयान-- कि ये आतंकवादी हमला है। ये हमलावर देश के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ना चाहते हैं। हम आपसी सद्भाव को बढाकर, पूरे देश को एक सूत्र में पिरोकर, हमलावरों के हमले का जवाब दे सकते हैं। सी आर पी एफ का कोई कार्यक्रम था-- उस कार्यक्रम में हमारे गृह मंत्री जी ने बडे भावुकता में कह दिया कि निकट भविष्य में और आसानी से इस देश से आतंकवाद को ख़त्म नहीं किया जा सकता है। हमले करना या होना कोई बड़ी बात नहीं है। पर, सबसे बड़ी बात है कि हम उस हमले को रोकने के लिए क्या कर रहे हैं। नक्सली हमलों को हम भटके हुए नौजवानों की कारगुजारी कहकर माफ़ करते जा रहे हैं। अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के गुप्त सिद्धांत पर हम आतंकवादियों को छोड़ते जा रहे हैं। देश के सबसे कोर्ट ने अफजल गुरु को फांसी की सजा दी। लेकिन गृहमंत्रालय उस सजा को लागू करने के लिए तैयार नहीं है। हम एक एक कर दहशतगर्दी के कारनामों को सहते जा रहे हैं। शायद देश के लोगों को अब इन धमाकों के साथ जीने के लिए सीख जाना होगा। हमें यह भूल जाना होगा कि हम किसी संप्रभु देश के नागरिक हैं। हम उस देश की बात कर रहे हैं-- जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। जो जल्द ही तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति होने का सपना देखता है। हम इसे सुपर पॉवर बनने का सपना देखते हैं। देश जो अन्तरिक्ष के क्षेत्र में छठी बड़ी शक्ति बन चूका है।उस देश के नागरिक को अपने कल का पता नही है कि किस गली चौराहे पर उसके चिथड़े मिलेंगे।अमेरिका में हाल ही में किये गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, दुनिया में भारत सबसे ज्यादा आतंवादियों के निशाने पर है। इस सर्वेक्षण में बताया गया है कि इराक को छोड़ दे तो, भारत आतंवादियों का पसंदीदा निशाना है। इराक में वैसे भी आतंकवाद नही, बल्कि गृहयुद्ध है।भारत की स्थिति चिंताजनक है। हम ज्ञान आयोग, अल्पसंख्यक आयोग बनने में कभी कोताही नही करते। लेकिन राष्ट्रीय आन्तरिक सुरक्षा आयोग के बारे में बात भी नहीं करते।हर आतंकवादी हमले के बाद हमारा गृह मंत्रालय बयान लेकर प्रस्तुत हो जाता है, ऐसे जैसे इस मंत्रालय का गठन सिर्फ बयां देने और सिर्फ यह बताने के लिए हुआ है कि आतंकवादी हमले क्यों करते हैं और हमे इसका मुह्तोड़ जवाब कैसे देना चाहिऐ। एक निहत्थी जनता के लिए तो इतना उपदेश, पर जिस मंत्रालय के पास इतना संसाधन और इतनी बड़ी जिम्मेदारी है वह एकबार भी नहीं बताता है कि उसे क्या करना चाहिऐ। वह यह नहीं बताता है कि आगे वह क्या कर रह है। अगर मंत्रालय के पास साफगोई है तो महज इतना कि वह निकट भविष्य में आतंकवाद पर लगाम नहीं लगा सकता।

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