तव नाथ कर करुना विलोकहूँ देहून जो वर दीजिए।
मन जाहि रचेहूँ मिलहिं सो वर सहज सुन्दर संवारो॥
करुना निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो॥
जानी गौरी आशीष सुनी सिया सहित हिय हर्षित आली।
तुलसी भवनिही पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
जानी गौरी अनुकूल सिया हिय हर्ष न जाही कही ॥
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फड्कन लगे॥
बुधवार, 31 अक्तूबर 2007
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