हिंदी शोध संसार

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2007


पिता असि लोकस्य चराचरस्य तुमस्य पुजस्य गुरुगारिस्यम
न तुमस्य अधिकं लोक त्रय प्रतिम प्रभावः

तुम इस संसार के पिता हो, चर अचर में तुमसे बढकर कोई नहीं है.

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें