30
जुलाई
की शाम दिल्ली में पहले यूपीए
कोआर्डिनेशन कमिटी और फिर
कांग्रेस कार्यसमिति ने समवेत
स्वर में 'जय
तेलंगाना'
का
उदघोष किया तो हैदराबाद ने
विजय का जश्न मनाने में संयम
बरता। साल 2009
में
तब के गृहमंत्री पी.चिदंबरम्
की हवाई घोषणा से आहत हो चुके
तेलंगाना राष्ट्र समिति के
प्रमुख के.
चन्द्रशेखर
राव ने कहा कि संसद में पृथक
राज्य का प्रस्ताव पारित होने
के बाद ही वे जश्न मनायेंगे।
जाहिर है दुध से मुंह जला चुके
केसीआर इसबार मज्जिगा (तेलुगू
में मट्ठा या छाछ को मज्जिगा
बोलते हैं)
भी
फूंक-फूंक
कर पी रहे हैं। उन्होंने साफ
कर दिया कि इतना होने के बाद
ही वे अपनी पार्टी का कांग्रेस
में विलय पर विचार करेंगे।
कह सकते हैं कि इन दो पंक्तियों
में ही टीआरएस प्रमुख ने नये
राज्य को लेकर अपनी आशंका और
भविष्य की राजनीति का संकेत
दे दिया।
केसीआर
सहित पृथक तेलंगाना के समर्थन
में आंदोलन चला रहे लोगों को
कुछ माह पहले से ही आभास हो
गया था कॉग्रेस पार्टी अब
ज्यादा दिनों तक इस मसले को
टाल नहीं सकती है। कांग्रेस
नेताओं की बढ़ी सक्रियता से
इसके संकेत मिलने लगे थे।
पार्टी ने गुलाम नबी आजाद की
जगह दिग्विजय सिंह को आंध्रप्रदेश
का प्रभारी बनाकर इस दिशा में
नया कदम बढ़ाया था। दिग्गी
राजा लगातार दौरे कर रहे थे
और पार्टीजनों की नब्ज टटोल
रहे थे। दिल्ली में आलाकमान
ने भी पीसीसी अध्यक्ष बोत्सा
सत्यनारायण और राज्य के
मुख्यमंत्री के.
किरण
कुमार रेड्डी सहित आंध्र से
आने वाले केन्द्रिय मंत्रियों
से कई दौर की बातचीत की। पिछले
महीने हैदराबाद के निजाम कॉलेज
मैदान में कांग्रेस पार्टी
ने एक बड़ी रैली कर अलग तेलंगाना
के समर्थन में खुलकर अपनी राय
जाहिर की। चिदंबरम् की घोषणा
के बाद से ही कांग्रेस पार्टी
बुरी तरह उलझ गयी थी। अलग राज्य
समर्थक दल और संगठन आम जनता
को समझाने में कामयाब हो गये
थे कि कांग्रेस विश्वासघाती
पार्टी है और नहीं चाहती की
तेलंगाना बने। बाद के उपचुनावों
में कांग्रेस को भारी पराजय
मिली और निर्वाचित प्रतिनिधियों
को लगातार जनाक्रोश झेलना
पड़ा।कई सांसद और विधायकों
ने तो क्षेत्र में जाना हीं
छोड़ दिया था। हद तो तब हो गयी
जब कांग्रेस के दो सांसदों
मंदा जगन्नाथ और जी.
विवेकानंद
सहित एक पूर्व सांसद के.
केशव
राव ने टीआरएस का दामन थाम
लिया। उधर,
रायलसीमा
और तटीय आंध्र के इलाके में
जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर
कांग्रेस पार्टी लगातार
कांग्रेस को चुनौती दे रही
थी। जितने भी चुनाव हुए सबमें
वाईएसआरसीपी के प्रत्याशी
भारी मतों से विजयी हुए।
बची-खुची
कसर हाल में हुए पंचायत चुनावों
ने निकाल दी। पंचायत चुनावों
के नतीजों ने कांग्रेस की
मानों लुटिया डुबो दी। यहां
तक की सीएम किरण कुमार रेड्डी
के गृह जिले चितूर में कांग्रेस
तीसरे स्थान पर चली गयी। ऐसे
में कांग्रेस के पास स्पष्ट
रास्ता चुनने के अलावे कोई
विकल्प शेष नहीं था।पहले से
ही कांग्रेस के सामने एक तरफ
कुंआ और दूसरे तरफ खांई जैसी
स्थिति थी। उसे तेलंगाना
मुद्दे को लंबे समय तक लटकाये
रखने का खामियाजा भुगतना पड़
रहा है और इस आरोप से आगे भी
शायद हीं पिंड़ छुटे।
अब
तेलंगाना की घोषणा के बाद भी
कांग्रेस की परेशानी कम नहीं
हुई है। सीमांध्र के इलाके
में आशंका के मुताबिक ही राज्य
विभाजन का पुरजोर विरोध शुरू
हो गया है। लगातार बंद और हड़ताल
जैसे आंदोलन हो रहे हैं। बड़ी
संख्या में विधायक,
सांसद
और राज्य सरकार में शामिल
मंत्री पदों से इस्तीफा दे
रहे हैं। भारी दबाव झेल रहा
कांग्रेस नेतृत्व पृथक राज्य
का प्रस्ताव राज्य विधान सभा
से पारित कराने की औपचारिकता
पूरी करने की हिम्मत भी नहीं
जुटा पा रहा है। पार्टी के
सामने नये राज्य के गठन का
प्रस्ताव संसद के शीतकालीन
सत्र में पास कराकर मंत्रियों
के समूह के पास भेजने जैसी
संवैधानिक प्रक्रिया पूरी
करने की जल्दबाजी है। जबकि
विपक्षी पार्टियां इसे मॉनसून
सत्र में ही पेश करने की मांग
कर रही हैं। दूसरी ओर तेलंगाना
के विरोधी रहे टीडीपी के मुखिया
नारा चन्द्रबाबू नायडु और
जगनमोहन रेड्डी को सीमांध्र
इलाके में कांग्रेस के खिलाफ
फैली लहर का फायदा होते दिख
रहा है।
वैसे
कांग्रेस को तेलंगाना में
आधार वापस मिलने की उम्मीद
जगी है। पिछली बार 17
में
12
लोकसभा
सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार
जीते थे। पार्टी की कोशिश होगी
कि इस बार भी कम से कम उतनी सीट
हर हाल में लायी जा सके। इसके
लिए टीआरएस से हाथ मिलाने की
तैयारी हो रही है। तेलंगाना
बनाने की घोषणा करते समय
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय
सिंह ने इसके संकेत दिये थे।
उन्होंने कहा था कि हमने वादा
पूरा किया अब केसीआर को अपना
वचन पूरा करना है। वैसे भी
केसीआर के सामने विकल्प बहुत
कम बचे हैं। वे खुद महबूबनगर
के बदले अपने गृहक्षेत्र मेदक
से लोकसभा चुनाव लड़ने की
इच्छा जाहिर कर चुके हैं,
जहां
से तेलुगू फिल्मों की मशहूर
अदाकार विजयशांति अभी लोकसभा
में हैं। केसीआर की इस घोषणा
मात्र से विजयशांति ने कांग्रेस
में जाने की कोशिशें तेज कर
दी है और टीआरएस ने उन्हें
पार्टी से निलंबित कर अलग
रास्ता चुनने के लिए स्वतंत्र
कर दिया है। चर्चा है कि केसीआर
अपनी बेटी के.
कविता
को महबूबनगर सीट से लड़ाना
चाहते हैं,
जो
तेलंगाना महिला जागृति नामक
सांस्कृतिक संस्था की प्रमुख
हैं। टीआरएस में केसीआर के
बेटे के.तारक
रामाराव और भतीजे हरीश राव
भी विधायक हैं,
जो
मौका मिलने पर लोकसभा चुनाव
लड़ सकते हैं।
उधर
तेलंगाना के आंदोलन में
केन्द्रीय भूमिका निभाने
वाली टी जेएसी के नेता भी चुनाव
में किस्मत आजमाने की हसरत
पाले हुए हैं। उनकी मांग है
कि संयुक्त कार्रवाई समिति
में सक्रिय रहे नेताओं को
टीआरएस टिकट दे। केसीआर से
उनकी कई दौर की बात हो चुकी
है। समिति के संयोजक प्रोफेसर
कोदंडरामम ने संकेत दिये हैं
कि यदि टीआरएस से बात नहीं
बनने की स्थिति में उनका मोर्चा
राजनीतिक दल बनाकर चुनाव मैदान
में उतरेगा।
केसीआर
भी बखूबी जानते हैं कि अकेले
दम पर वे 119
सदस्यों
वाले तेलंगाना क्षेत्र में
सरकार नहीं बना सकते। अभी
कांग्रेस के पास 49
एमएलए
हैं जबकि बहुमत के लिए जादुई
आंकड़ा 60
चाहिए
होगा। ऐसे में कांग्रेस के
पास सरकार बनाने के लिए 11विधायक
कम पड़ेंगे,
जिसकी
भरपायी एमआईएम के सात और तीन
निर्दलीय विधायकों के समर्थन
से की जा सकती है। कांग्रेस
पार्टी इस इलाके की कमान किसी
रेड्डी बिरादरी वाले नेता को
सौंप सकती है,
क्योंकि
आज की तारीख में पार्टी के पास
20
रेड्डी
विधायक हैं। वैसे मुख्यमंत्री
चुनना भी बहुत आसान रहने वाला
नहीं है,क्योंकि
कांग्रेस में इस पद के कई
दावेदार हैं। यदि सबकुछ सही
रहा तो अगले छह माह के भीतर
भारत के राजनीतिक मानचित्र
पर 29वें
राज्य के रुप में तेलंगाना
नजर आएगा। और नये तेलंगाना
में विधानसभा के वर्तमान गणित
को देखते हुए कांग्रेस की
सरकार बनेगी जो अगला विधानसभा
चुनाव होने तक काम करेगी। आज
हर कोई मानने लगा है कि नयी
परिस्थितियों में कांग्रेस
को लाभ जरुर मिलेगा।भाजपा के
लोग भी स्थिति बेहतर होने की
उम्मीद पाले हुए हैं। खुद
एमआईएम के मुखिया और हैदराबाद
के सांसद मो.असदुद्दीन
ओवैसी को भी भाजपा के प्रभावी
होने का डर सता रहा है।
आज
की तारीख में आंध्र के इलाके
में कांग्रेस के पास बहुमत
के जादुई आंकड़े 88
की
तुलना में 97
विधायक
हैं। 45
विधायकों
के साथ टीडीपी दूसरे नंबर और
17
विधायकों
के साथ वाईएसआरसीपी तीसरे
स्थान पर है। यानि सीमांध्र
में मौका आने पर कांग्रेस को
सरकार बनाने में कोई परेशानी
नहीं आएगी। ऐसी परिस्थिति
में आंध्रप्रदेश के विभाजन
के बाद दोनों राज्यों में
कांग्रेस के मुख्यमंत्री
रहें तो कोई आश्चर्य नहीं
होगा।
दरअसल
आजादी के बाद 1
अक्टूबर
1953
को
भाषाई आधार पर आंध्रप्रदेश
भारत का पहला राज्य बना था,
जिसकी
राजधानी कर्नूल बनायी गयी
थी। इसकी पृष्टभूमि तभी तैयार
हो गयी थी जब मद्रास में तेलुगु
भाषियों के लिए अलग राज्य का
निर्माण की मांग को लेकर आमरण
अनशन कर रहे कांग्रेसी नेता
पोट्टी श्रीरामुलु की मौत हो
गयी थी। उस वक्त आंध्र का इलाका
मद्रास प्रेसिडेंसी के अधीन
था और तेलंगाना का इलाका
हैदराबाद रियासत में निजाम
के अधीन। यहां के लोग अपनी अलग
भाषा,
संस्कृति
और रीति-रिवाजों
के चलते खुद तो अलग मानते थे।
जस्टिस फजल अली के नेतृत्व
में गठित राज्य पुनर्गठन आयोग
ने भी अपनी रिपोर्ट में जनभावना
का उल्लेख किया था। उनकी सलाह
थी कि हैदराबाद को विशेष दर्जा
देकर तेलंगाना को अलग राज्य
बना दिया जाए और शेष क्षेत्र
को ही आंध्र बनाया जाए। खुद
पंडि़त नेहरु भी आंध्र में
तेलंगाना के विलय को लेकर
सशंकित थे। उन्होंने कहा था
कि इस शादी में तलाक की संभावनाएं
बनी रहने दी जाए। बावजूद इसके
आंध्र की मजबूत कांग्रेसी
लॉबी ने राज्य का क्षेत्रफल
बड़ा रखने की लालच में तेलंगाना
को जबरन वृहत आंध्र योजना में
फिट कर दिया। 1
नवंबर
1956
में
आंध्रप्रदेश में तेलंगाना
को मिला दिया गया और हैदराबाद
इसकी नई राजधानी बनी।
तेलंगाना:
एक नजर में
* तेलंगाना
का आशय है - तेलुगू
भाषियों की भूमि
* पहले
पूरा इलाका हैदराबाद
रियासत का हिस्सा था
* भारतीय
सेना ने ऑपरेशन पोलो
द्वारा 17
सितंबर,1948
को इसे
भारतीय गणराज्य में शामिल
किया
* मद्रास
स्टेट से अलग हुए इलाके
में मिलाकर तेलुगू भाषियों
के लिए 1 नवंबर,1956
में आंध्रप्रदेश
बना
* तेलंगाना
क्षेत्र में 10
जिले हैं -
ग्रेटर हैदराबाद,
रंगारेड्डी,
मेदक,
नालगोंडा,
महबूबनगर,
वारंगल,
करीमनगर,
निजामाबाद,
अदीलाबाद और खम्मम.
* तेलंगाना
की भौगोलिक सीमा-रायलसीमा
सहित कर्नाटक,
महाराष्ट्र और
छत्तीसगढ़ से मिलती है
* क्षेत्रफल
114,840 वर्ग
किलोमीटर है
* आबादी
35,286 757 ( जनगणना
2011)
* तेलंगाना
की भाषा-
तेलुगू,हिन्दी
और उर्दू
* अधिकांश
इलाका पठारी और सूखाग्रस्त
* प्रमुख
नदियां- कृष्णा
और गोदावरी
* वर्तमान
आंध्रप्रदेश के 294
में से 119
विधायक
*लोकसभा
की 42 सीटों
में से 17 सीटें
*प्रमुख
शहर हैदराबाद,
वारंगल,
करीमनगर
तेलंगाना
का सफरनामा
- 17 सितम्बर,1948 - भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन पोलो' चलाकर हैदराबाद रियासत के बड़े भू भाग को भारत में मिलाया, तेलंगाना तब उसी रियासत का हिस्सा था
- 26 जनवरी,1950- केन्द्र सरकार ने एम के वेल्लोदी को हैदराबाद स्टेट का पहला मुख्यमंत्री मनोनीत किया
- 1952- पहले आम चुनाव के बाद बी. रामाकृष्ण राव पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने
- 1 अक्टूबर,1953- मद्रास स्टेट से अलग होकर आंध्र स्टेट देश का पहला भाषाई राज्य बना, कर्नूल में राजधानी बनी
- 20 फरवरी,1956- तेलंगाना और आंध्र के नेताओं के बीच विलय को लेकर जेंटलमैन एग्रीमेंट साइन
- 1 नवंबर 1956 - हैदराबाद रियासत से तेलंगाना के तेलुगूभाषियों को आंध्र स्टेट में शामिल कर एक अलग राज्य आंध्र प्रदेश की स्थापना की गई। राजधानी हैदराबाद रखा गया
- 1969- तेलंगाना को पृथक राज्य बनाने की मांग को लेकर एम.चेन्ना रेड्डी की अगुआई में 'जय तेलंगाना' आंदोलन की शुरुआत, पुलिस की गोलीबारी में 350 से अधिक लोगों की मौत
- 12 अप्रैल,1969- इंदिरा गांधी ने आठ सूत्री फार्मूला सुझाया, लेकिन तेलंगाना के नेताओं ने प्रस्ताव नामंजूर किया
- 1972- आंध्र प्रदेश के तटवर्ती इलाकों में 'जय आंध्र' आंदोलन की शुरुआत
- 1975- तेलंगाना के हितों की रक्षा के लिए छह सूत्री सरकारी परिपत्र जारी
- 1985- तेलंगाना के सरकारी कर्मियों ने नौकरियों में भेदभाव और अन्याय का मामला उठाया, एनटीआर की सरकार ने राज्यादेश जारी कर तेलंगाना के कर्मचारी हितों की रक्षा की बात कही
- 1997- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तेलंगाना के समर्थन में आई, 1998 के चुनाव में उसने 'एक मत, दो राज्य' के नारे के साथ चुनाव लड़ा
- 1999- कांग्रेस पार्टी ने पृथक तेलंगाना बनाने की मांग उठाई
- 27 अप्रैल,2001- के. चन्द्रशेखर राव ने कैबिनेट मंत्री नहीं बनाये जाने पर टीडीपी छोड़ा और तेलंगाना आंदोलन को जारी रखने के लिए तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) बनायी
- 2001- कांग्रेस पार्टी ने एनडीए सरकार के पास द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग बनाने की सिफारिश भेजी
- 2004 - टीआरएस ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, तेलंगाना के पांच लोकसभा और 26 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। यूपीए ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में तेलंगाना मुद्दे को शामिल किया। प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में तीन सदस्यी समिति का गठन
- दिसम्बर, 2006- तेलंगाना गठन में विलंभ के विरोध स्वरुप टीआरएस ने केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों से गठबंधन तोड़ा
- अक्टूबर, 2008- टीडीपी ने अपना स्टैंड बदला, अलग राज्य बनाने की मांग का समर्थन
- 2 सितंबर 2009 -मुख्यमंत्री वाई. एस. राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत, राज्य में राजनीतिक अस्थिरता की शुरूआत
- 29 नवंबर, 2009- टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने पृथक तेलंगाना के लिए आमरण अनशन शुरू किया
- 9 दिसंबर,2009 - केंद्र सरकार ने तेलंगाना राज्य के गठन प्रक्रिया शुरू करने के लिए कदम उठाने की घोषणा की
- 23 दिसम्बर,2009- केन्द्र सरकार ने नये राज्य का प्रस्ताव ठंढ़े बस्ते में डाला,विरोध में जोरदार आंदोलन शुरू
- 3 फरवरी 2010 - केंद्र सरकार ने तेलंगाना मुद्दे पर पांच सदस्यीय श्रीकृष्णा समिति गठित की
- 30 दिसम्बर,2010-श्रीकृष्ण समिति ने 6 सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट सौंप दी
- 1 जुलाई,2013- कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तेलंगाना पर निर्णय जल्द होने की बात कही
- 12 जुलाई 2013- तेलंगाना पर आई रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष के साथ चर्चा के लिए कांग्रेस की कोर कमेटी की बैठक हुई
- 30 जुलाई 2013- यूपीए समन्वय समिति और कांग्रेस कार्यसमिति ने बैठक में पृथक तेलंगाना राज्य के गठन का निर्णय लिया
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