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बुधवार, 7 दिसंबर 2011

अब बदलने की बारी है.. संदर्भ- जन लोकपाल











डरते
जिससे भ्रष्ट, चाहती जनता वो जन लोकपाल।
भ्रष्टाचार का कलंक मिटानेवाला है जन लोकपाल।
लोकपाल जिसके अंदर हो प्रधानमंत्री से प्यून।
क्योंकि पद का नाम देखकर, अपराध न होता न्यून।।
खल पर कसे शिकंजा, स्वतंत्र सीबीआई को होने दो।
लोकपाल के अंदर लाकर, काम नेक करने दो।।
बैठे न्याय मंदिर में जो है, दें लोकपाल का संग।
उनके बिना कैसे पूरा हो, ये पवित्र सत्संग।।
विशेषाधिकार के नाम पर संसद, को भी न छोड़ा जाए।
सांसदों का भी भ्रष्ट आचरण, निगरानी में आए।।
आम आदमी अधिक त्रस्त है, निचली नौकरशाही से।
भ्रष्टाचार संग लेट-लतीफी, बाबूओं की मनमानी से।।
लोकपाल के जैसे ही हों, हर राज्य में लोकायुक्त।
केवल नेताओं के हाथों, ये भी ना हो नियुक्त।।
कितनी बार कही जा चुकी, सड़ गया ये तंत्र।
सड़े हुए इस तंत्र में कैसे, सिसक रहा लोकतंत्र।।
बहुत हो चुका, अब हठ छोड़ो, बदलने की बारी है।
तुमसे नहीं हुआ तो अब, जनता की तैयारी है।।

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