
वो प्रस्ताव हिंदी को हिंदी से दूर ले जाने की एक जुटिल चाल है। ये चाल उन लोगों ने चली है। जिन्हें हिंदी से कोई लेना देना नहीं है। वो अपने अंग्रेजी ग्यान के आधार पर दूसरों को मुर्ख समझने की बार-बार भूल करते हैं।
केंद्रीय हिंदी समिति में ऐसे ऐसे लोगों हैं जो न सिर्फ अंग्रेजी में खाते और सोचते हैं बल्कि थूकते भी अंग्रेजी में ही हैं।
केंद्रीय हिंदी समिति के कर्ता-धर्ताओं की सूची देखिए, सबकुछ साफ हो जाएगा।
इन लोगों ने हिंदी के कल्याण(कल्याण यानी कल्याण) के लिए कुछ सोचा है। पता नहीं क्यों सोचा और किस हैसियत से सोचा। लेकिन इनकी सोच का नतीजा हिंदी की बर्बादी के प्रस्ताव के रूप में सामने आया है। ये प्रस्ताव अब सरकारी आदेश बन चुका है और जल्द ही देश भर में लागू होने वाला है।

हिंदी शब्दों को कठिन बताकर इनकी जगह अनुवाद में अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, अरबी, तुर्की के शब्दों को डालने के निर्देश हैं।
दरअसल, इन लोगों को पता नहीं है कि हिंदी के शब्द क्या हैं क्यों हैं,
जागरूकता की जगह अवेयरनेस लिखने से कितना भयंकर नुकसान होगा इसका अंदाजा शायद इन लोगों को नहीं है। दरअसल, निर्बुद्ध लोग ऊंचे-ऊंचे पद पा गए हैं वो अपना काम ठीक से कर नहीं पाते हैं और बात-बात में दूसरों के काम में टांग अड़ाते हैं। टांग की नहीं अड़ाते बल्कि अपनी सोच दूसरों पर थोपने से भी बात नहीं आते।
एक किरण से बदल गया जग

जागी दुनिया भोर हुआ।
जग जागा- जगना, जागना, जगाना, जागरूकता, जागरण, जगमग, जाग्रत, जागृति, जनजागरण, जनजागृति, जाग्रतावस्था का एक दूसरे से नाता है। अवेयरनेस का किससे नाता है।
कानून से गैर-कानून, कानूनी कानूनची, कानूनगो ही हो सकते हैं.. मगर विधि से विधान, संविधान, विधेयक, विधायक, संविधि, वैधानिक, अवैधानिक

नियम से नियमपूर्वक, नियमानुसार, नियमित, अधिनियमित, अधिनियम, नियामक, नियंता जैसे शब्दों को दुरूह बताया जा सकता है।
जिंदगी भर डिक्शनरी ढोने वाले लोगों को हिंदी का शब्दकोश पलटे बिना ही विद्वान होने का अहंकार हो जाता है और खुद को ग्यानी समझने का भान होने लगता है।
वो हिंदी के शब्दों को दुरुह बताने का दुष्चक्र रचने लगते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें