विश्वकप के बुखार में तप रहे देश को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि इसका खुमार इतना जल्दी उतर जाएगा। और ऐसे उतर जाएगा कि एकबारगी पूरा देश कहने लगेगा कि इट्स नॉट टाइम फॉर आईपीएल.. और पूरा देश अन्ना हजारे के पीछे हो जाएगा। तीन सालों तक महंगाई की मार से त्रस्त जो जनता कराह भी नहीं पा रही थी, वो एकाएक हुंकार भर उठेगी। एकबारगी पूरा देश सड़कों पर उतर पड़ेगा। जंतर-मंतर से उठी अन्ना की आंधी पूरे देश में फैल गई। क्या बच्चे.. क्या जवान और क्या बूढे। सभी सड़कों पर उतर गए। चेन्नई हो या त्रिच्ची, बैंगलोर हो या हैदराबाद। जम्मू हो या भोपाल, इलाहाबाद हो या पटना। हर जगह हर तरफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठने लगी। वकील हो या शिक्षक, किसान हो या क्रिकेटर, अभिनेता हो या आम जनता हर कोई अन्ना के समर्थन में आगे आया।
आखिर एकाएक ये सब कैसे हो गया। आखिर क्रिकेट का विश्वविजेता भारत, एकाएक आंदोलन पर कैसे उतर आया। दरअसल, सबकुछ एकाएक नहीं हो जाता है और न एकाएक हुआ। लोगों के दिलों में गुबार था, गुस्सा था। आग सुलग रही थी, बस हवा की जरूरत थी। और बस, अन्ना ने उस आग को हवा दी। … और ये आग पूरे देश में फैल गया।
इस सिद्धांत को समझना मुश्किल नहीं है। अगर आप पिछले कुछ महीनों में घटे घटनाक्रम को देखे। देश में धमाके पर धमाके हो रहे थे। गृह मंत्री कपड़े बदल रहा था। देश के जवान नक्सलियों के हाथों मारे जा रहे थे, और सत्तारूढ़ पार्टी का महासचिव नक्सलवाद पर रोटी सेंक रहा था। देश का सिर टूजी, सीडब्ल्यूजी, एसजी और आदर्श घोटालों से झुक गया था। देश को लूटकर विदेशों में जमा किया गया कालाधन देश के लिए कोढ़ बन चुका था। देश की न्यायपालिका विधायक के रूप में काम करने लगी। देश की सरकार धूर्त लोमड़ी की तरह पग-पग पर चालाकी करती दिख रही थी। सरकार और उनके प्रवक्ता लोकतंत्र, कानून, प्रक्रिया, संविधान का नाम लेकर लोकतंत्र की हत्या कर रहे थे। देश लुट रहा था, लूट रहे थे नेता, मंत्री, उद्योगपति, मीडिया के लोग। जनता को दिखाया जा रहा था, तुम तरक्की कर रहे हो। जनता महंगाई में पिस भी बर्दास्त कर रही थी कि चलो देश विकास कर रहा है। लेकिन क्या, सरकार उन लूटेरों को बचा रही, सिर्फ और सिर्फ गोपनीयता के नाम पर। क्या इसी लूट के लिए जनता टैक्स देती है। क्या इसी लूट के लिए जनता महंगाई बर्दास्त कर रही है। क्या इस लूट के बाद भी जनता मान ले कि हम तरक्की कर रहे है, इसलिए महंगाई बढ़ती रही है। सिद्धांत साफ है, आग जनता के अंदर सुलग रही थी और हवा के झोंके का इंतजार कर रही थी।
और, अन्ना ने हवा दी और आग भड़क उठी।
देश के हालात का दूसरा पहलू है, व्यवस्था। राजा भ्रष्ट हैं तो क्यों, कलमाड़ी भ्रष्ट है तो क्यों, अशोक चव्हाण भ्रष्ट है तो क्यों, क्यों पीजे थॉमस सुप्रीमकोर्ट के कहने के बाद भी जाने से जाने इनकार कर देता है। इतना नहीं है कि सिर्फ यही लोग भ्रष्ट हैं। यहां हर कोई भ्रष्ट नजर आता है। आप भ्रष्ट नहीं तो आपको भ्रष्ट बनाने को कोशिश की जाती है। क्योंकि ऐसा नहीं तो भ्रष्ट भ्रष्टाचार से बचेगा कैसे। वो आपको भ्रष्ट बनाएगा। ताकि आपको भ्रष्ट बनाके वो स्वच्छ बन जाता है।
कहने को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कानून बनाए जाते हैं। लेकिन असल में ये कानून भ्रष्टचारियों को बचाने के लिए बनाये जाते हैं। कहने को हमारे पास भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जांच एजेंसियां, दंड एजेंसियां। मगर ये एजेंसियां कभी किसी मंत्री, नेता, अफसर को न्याय के कटघरे तक नहीं पहुंचाती हैं। दरअसल ये एजेंसियां, भ्रष्टों, बेईमानों, लूटरों और दरिंदों को बचाने के लिए है। दरअसल ये एजेंसियां उन्हीं को बचाने और हर सत्ता में रहने वाले को बचाने, विरोधियों को परेशान करने के लिए बनाई गई है। दरअसल ये एजेंसियां अच्छों का बुरा बनाने के लिए बनाई गईं हैं।
इन वकीलों का तो माशा-अल्लाह। ये वकील, कहीं भी जाएं, कुछ भी करें, वकील ही रहेंगे। आखिर जनता क्या करे। व्यवस्थाएं जनता के लिए बनती हैं। लेकिन यही व्यवस्थाएं जनता को कहने लगती है कि तुम मेरे लिए बने हो। जनता परेशान। क्या करे। कहां जाए। नेताओ के पास लूट का पैसा होता है। वो वोट खरीद की उसी जनता को लूटती है। नाम देती है विकास का।
लियो टॉलस्टॉय की कहानी द इम्प एंड दी पीजेंट्स ब्रेड में शैतान ने कहता है कि इंसान के खून में लोमड़ी, सुअर और भेड़िया का खून पहले से मौजूद होता है। बस उस खून को भड़काने की जरूरत है।
इसी तरह इनसान में अच्छाईयां भी छिपी होती है। बस उसे उभारने की जरूरत होती है।
सच है, बस हवा देने की जरुरत थी...जो अन्ना ने कर दिखाया.
जवाब देंहटाएंअन्ना के साथ काम करने वाले ऐसे हैं जो नक्सलियों का साथ देते हैं।अग्निवेश जैसा एक दलाल भी है जिसे सरकार में रहकर सरकार को बदनाम करने का लाइसेंस मिला है।कमेटी ही भष्टाचारियों की बुनियाद पर रखी गयी है।सवाल ये है कि क्या भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अन्ना के आगे आने का इंतजार किया जाएगा।
जवाब देंहटाएंक्या अन्ना दूसरे गांधी साबित हुए हैं? एक सवाल यह भी है क्या देश में कोई भी बदलाव लाने के लिए हर बार गांधी या हजारे के देशव्यापी आंदोलन की जरूरत पड़ेगी? आखिर हमारी सरकारें इस दिशा में खुद पहल क्यों नहीं करतीं?
जवाब देंहटाएंअन्ना हजारे समर्थक इसे आजादी की दूसरी लड़ाई की संज्ञा दे रहे हैं और इस काम में उनका साथ मेधा पाटकर, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, एडवोकेट प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े, स्वामी अग्निवेश जैसे समाजसेवी भी शामिल हैं। हजारे के समर्थन में वह लोग शामिल है, जिन्हें नक्सलियों का समर्थक भी माना जाता है...
April 11, 2011 6:11 AM
क्या अन्ना दूसरे गांधी साबित हुए हैं? एक सवाल यह भी है क्या देश में कोई भी बदलाव लाने के लिए हर बार गांधी या हजारे के देशव्यापी आंदोलन की जरूरत पड़ेगी? आखिर हमारी सरकारें इस दिशा में खुद पहल क्यों नहीं करतीं?
जवाब देंहटाएंअन्ना हजारे समर्थक इसे आजादी की दूसरी लड़ाई की संज्ञा दे रहे हैं और इस काम में उनका साथ मेधा पाटकर, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, एडवोकेट प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े, स्वामी अग्निवेश जैसे समाजसेवी भी शामिल हैं। हजारे के समर्थन में वह लोग शामिल है, जिन्हें नक्सलियों का समर्थक भी माना जाता है...
April 11, 2011 6:11 AM
क्या अन्ना दूसरे गांधी साबित हुए हैं? एक सवाल यह भी है क्या देश में कोई भी बदलाव लाने के लिए हर बार गांधी या हजारे के देशव्यापी आंदोलन की जरूरत पड़ेगी? आखिर हमारी सरकारें इस दिशा में खुद पहल क्यों नहीं करतीं?
जवाब देंहटाएंअन्ना हजारे समर्थक इसे आजादी की दूसरी लड़ाई की संज्ञा दे रहे हैं और इस काम में उनका साथ मेधा पाटकर, किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, एडवोकेट प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े, स्वामी अग्निवेश जैसे समाजसेवी भी शामिल हैं। हजारे के समर्थन में वह लोग शामिल है, जिन्हें नक्सलियों का समर्थक भी माना जाता है...
April 11, 2011 6:11 AM
विजय जी, दरअसल साध्य जितना दुर्लभ और पवित्र होता है, हमारा साधन भी उतना ही पवित्र व श्रमसाध्य होना चाहिए। घर में घर का कोई न कोई सदस्य रोज रोज रूठकर खाना छोड़ देता है। आप उसे आजादी की लड़ाई नहीं कह सकते हैं। लेकिन जब व्यवस्था में आई सड़न को दूर करने के लिए अन्ना हजारे जैसा व्यक्ति अनशन पर बैठता है तो उसे युगांतकारी माना ही जाना चाहिए। जहां तक बात अग्निवेश की है तो उनकी कांग्रेस के निष्ठा को लेकर हर कोई परिचित है, लेकिन आंदोलन के वक्त उन्होंने किसी न किसी रूप में आंदोलनकारियों का साथ दिया। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
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