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गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

इतने बेशर्म तो कभी न हुए थे।


इतने बेशर्म तो कभी न हुए थे।

आज संसद की कार्यवाही देख रहा था। आत्मविश्वास से लबरेज सत्तापक्ष को देखकर पंचतंत्र की एक कहानी याद आ गई।
... नामना ब्राह्मणे यजमान दाने एक: अज: प्राप्तवान्।

याने एक ब्राह्मण थे। जिन्हें यजमान के दान में एक मोटा-ताजा बकरा प्राप्त हुआ। बकरा पाकर ब्राह्मण देवता बड़े प्रसन्न हुए। कंधे पर बकरे को उठाकर घर की ओर प्रस्थान हुए। मन ही मन सैंकड़ों लड्डू फूट रहे थे। अरमान कुलाचे मार रहा था कि घर जाकर ऐसे तलेंगे, ऐसे बघारेंगे। कैसा स्वाद होगा। ऐसे खाएंगे। वैसे खाएंगे। रास्ते में तीन ठगों की उसे बकरे पर नजर पड़ गई। तीनों ने किसी भी तरह बकरे को हथियाने की योजना बनाई।

ब्राह्मण देवता जा रहे थे। आगे मोड़ पर एक ठग ने कहा, क्या ब्राह्मण देवता, आप कंधे पर कुत्ते को क्यों ले जा रहे हैं। ब्राह्मण ने कहा, आपको दिखता नहीं, ये कुत्ता नहीं, बकरा है, बकरा। थोड़े से प्रतिवाद के ब्राह्मण देवता आगे बढ़ रहे गए। सोचते हुए कि कैसा आदमी था, बकरे को कुत्ता कह रहा था।

यही सोच ही रहे थे कि आगे दूसरा ठग मिला। उसने कहा, ब्राह्मण देवता, आपको कंधे पर भड़ क्यों ले जा रहे हैं। ब्राह्मण देवता भड़क गए, बोले आपको दिखता नहीं है, ये भेड़ नहीं, बल्कि बकरा है। बकरा।

ब्राह्मण देवता ने बकरे को नीचे उतारा। देख बकरा ही तो है। लोग इसे कभी कुत्ता, तो कभी भेड़ क्यों कह रहे हैं। ब्राह्मण को थोड़ा शक हुआ। मगर उन्होंने बकरे को कंधे पर उठाकर फिर से चलना शुरू किया।

आगे की मोड़ पर तीसरा ठग मिला। बोला, हे ब्राह्मण देवता, आप अपने कंधे पर गदहे को क्यों ढो रहे हैं। इस बार ब्राह्मण की तर्क और सोच शक्ति जवाब दे गई। उसने बकरे को कंधे से उतारकर सड़क पर छोड़ दिया और आगे बढ़ गए। ठगों ने मौका देखकर बकरा उठा लिया और जमकर जश्न मनाया।

यूपीए सरकार संसद में इन ठगों की तरह देश की जनता से व्यवहार कर कर रही है। आत्मविश्वास से बहक रही है। ऐसा लगता है कि विपक्ष की जेपीसी की मांग मानकर उन्होंने बहुत बड़ा अहसान कर दिया। जबकि सीपीआई नेता गुरूदास दासगुप्ता के शब्दों में कहें तो यूपीए सरकार ने ऐसा कर कोई एहसान नहीं किया बल्कि विपक्ष के दबाव के आगे झुककर उनसे काफी देरी से अपने कर्तव्यों का पालन किया।

टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए राजा की विदाई के बाद दूरसंचार मंत्रालय का पदभार संभालने के बाद कपिल सिब्बल ने कुछ इस तरह की हरकतें की, अगर ये कोई गंभीर लोकतंत्र होता तो कपिल सिब्बल जैसे मंत्री को धक्के मारकर बाहर कर देता। मगर कपिल सिब्बल इस कहानी के एक ठग की तरह दलील पर दलील दिए जा रहे हैं। आग उन्होंने लोकसभा में खड़ा होते ही ऐसी करतूत कर डाली कि उन्होंने तुरंत ही ना सिर्फ बयान वापस लेना पड़ा बल्कि बिनाशर्त माफी भी मांगनी पड़ी। बयान देने के लिए उठे सिब्बल ने कहा कि वो लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को अच्छी तरह जानते हैं और वो सदन में सच को झूठ और झूठ को सच कर देती हैं। आखिर कपिल सिब्बल एक वकील हैं और उनसे इससे ज्यादा कोई अपेक्षा ही क्या कर सकता है। वकालत के पेशे में यही करने के लिए मोटी-मोटी फीस मिलती है। मगर, दलील देते समय सिब्बल भूल जाते हैं वो एक मंत्री हैं और वो एक जवाबदेह पद पर हैं। कपिल सिब्बल इस पद के लायक कतई नहीं हैं। वो वकील ही बेहतर हैं। उनके वकालत से एक परिवार बसता-उजड़ता है। लेकिन मंत्री पद पर रहते हुए उनके कारिस्तानियों का अगर पूरे देश पर पड़ता है।

हालांकि इसमें गलती कपिल सिब्बल की भी नहीं है, बल्कि इसके लिए भारत में त्याग की एकमात्र देवी सोनिया गांधी और देश में एकमात्र ईमानदार व्यक्ति मनमोहन सिंह जिम्मेदार हैं। उन्होंने सरकार का वकालत करने के लिए ही दूरसंचार मंत्रालय का ठेका कपिल सिब्बल को दिया। कपिल सिब्बल सरकार की ओर से अच्छी वकालत कर रहे हैं। मगर, उनकी वकालत की हेकड़ी टूजी स्पेक्ट्रम मामले में राजा की गिरफ्तारी और सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में मामले की जांच कर रही सीबीआई ने निकाल दी। मगर, एक वकालत एक ऐसा पेशा है कि वो वकील को कभी हारने नहीं देता। हारता मुवक्किल है। टूजी स्पेक्ट्रम मामले में देश हारता हुआ नजर आ रहा है। हालांकि सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में सीबीआई की मोर्चा संभाल रखा है। मगर कपिल सिब्बल एनडीए के शासनकाल में सरकार को हुए १२००० करोड़ के घोटाले की बात तो कर रहे हैं, लेकिन वो ये भी कह रहे हैं कि यूपीए के शासनकाल में सरकार को टूजी स्पक्ट्रम आवंटन से राजस्व का कोई नुकसान नहीं हुआ।

एक ओर सिब्बल है तो दूसरी तरफ मनमोहन सिंह। मनमोहन सिंह टूजी घोटाले की तुलना गरीबों को दी जाने वाली सब्सिडी से करते हैं। साथ ही मीडिया से ये भी कह देते हैं कि उनपर सवाल नहीं उठाया जाए। सीजर की पत्नी का हवाला देते हुए करते हैं कि प्रधानमंत्री को शक के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। उनपर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए।

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