हिंदी शोध संसार

शनिवार, 8 जनवरी 2011

स्वामी जी का संदेश





पश्चिमी देशों के सफल दौरे के बाद जब स्वामी विवेकानंद भारत आए। तो उनके एक शिष्य ने पूछा कि उन्हें पश्चिमी देशों का क्यों दौड़ा करना पड़ा। वास्तव में यह एक विचारोत्तेजक प्रश्न था। इस प्रश्न का उत्तर स्वामीजी ने किस तरह दिया। उन्होंने उत्तर था कि वो बेहद निराश होकर विदेश गए। वो वर्षों तक भारत में संन्यासी के रूप में भटकते रहे। देश के कई विख्यात लोगों से मुलाकात की। उन्होंने देश की बहुसंख्यक आबादी की दुर्दशा के प्रति उनका ध्यान खींचा और उनसे कुछ करने को कहा। लेकिन किसी ने उनकी बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। आखिर वो क्यों ध्यान देते। आखिर उनकी नजरों में स्वामीजी एक भिक्षुक से ज्यादा कुछ भी नहीं थे। तो वो उनकी बात क्यों सुनते। यही कारण था कि स्वामी जी ने शिकागो से धर्म संसद में जाने का निर्णय किया। बहुत से लोगों ने उनसे वहां जाने का अनुरोध किया। लेकिन वो इसे लेकर दुविधा में थे। आखिर एक संन्यासी को विदेश क्यों जाना चाहिए। लेकिन देश को कुछ धनी और विचारवान लोगों के आग्रह पर उन्होंने वहां जाने का फैसला किया। उन्होंने सोचा। अगर वो विदेश में सफल होते हैं तो वापस देश में भी उनकी बात सुनी जाएगी। उस समय हमारे देश के लोग विदेशियों से प्रति सम्मोहित थे। बाद की घटनाओं ने साबित कर दिया कि स्वामीजी कितने सही थे। जब वो विदेश में सफल रहे तो स्वदेश लौटने पर देशवासियों ने उन्होंने नायक की तरह सम्मान दिया।

लेकिन सवाल उठता है कि आखिर स्वामीजी ने पश्चिमी देशों में क्या उपदेश दिया। क्या उन्होंने वहां हिंदुत्व के बारे में प्रवचन दिया। इसका जवाब हां और नहीं दोनों है। हां इसलिए कि वो एक धर्म संसद था इसलिए स्वामी जी ने हिंदुत्व पर संभाषण किया और विभिन्न जगहों पर अनेक लोगों के अनुरोध पर हिंदुत्व पर अपनी बात कही। नहीं इसलिए कि उनका मुख्य उद्देश्य भारत की पहचान को संपूर्ण रूप में व्यक्त करना है ना कि किसी खास रूप में। स्वामीजी के पश्चिमी देशों से दौरे से पूर्व भारत नई मायनों में एक अंधकारमय देश था जो किसी श्वेत ईसाई मिशनरियों की प्रतीक्षा में था जो उसका उद्धार कर सके। पहलीबार लोगों ने आत्म विश्वास से लबरेज एक ज्ञानी भारतीय को यह कहते सुना कि भारत की गरीबी के पीछे भारत का सदियों से संचित ज्ञान की बड़ी निधि है जो मानवता के लिए किसी भी धन से बड़ा है। पहलीबार पश्चिमी के लोगों ने कला वास्तुकला साहित्य दर्शन और विज्ञान पर विश्वसनीय बखान सुना। ये वो भारत था जिसके बारे में पश्चिमी दुनिया बिल्कुल नहीं जानती थी। इस अनुपम ज्ञान का पश्चिमी दुनिया पर जितना असर हुआ उससे भी कहीं ज्यादा भारत पर हुआ। यह अपने लोगों के लिए एक बड़ा खुलासा था। पश्चिमी मीडिया ने उनलोगों की खुलकर आलोचना की जिनलोगों ने भारत के गौरवशाली अतीत से उन्हें अंधेरे में रखा। पहलीबार भारत की शिक्षित जनता ने भारत को सही परिप्रेक्ष्य में देखना शुरू किया। भले ही भारत गुलाम था जिसकी वजह से हर जगह गरीबी और बेचारगी थी लेकिन भारत के पास वो विरासत थी वो खजाना था जो किसी और देश के पास नहीं था। जिस बात की जरूरत थी वो थी इस गौरवशाली इतिहास को पढ़ा जाना। भारत की कमजोरी सामाजिक थीः वो थी बहुत बड़ी आबादी का निरादरः उसका अपमान। भारत ने बुद्ध और शंकर जैसे कुछ महान आत्मों को जन्म दिया लेकिन आम जनता उपेक्षित थी। उन्हें शिक्षित किया जाना था। उन्हें जागरूक बनाया जाना था ताकि वो अपने अधिकारों को पहचान सकें। उन्होंने उनलोगों को ललकारा जिन्होंने विदेशों में शिक्षा पाई और जिन्हें लगता था कि पश्चिमी दुनिया में सबकुछ ठीकठाक है। स्वामी उन लोगों में नहीं थे जो ये कहते हैं कि भारत को पश्चिमी देशों से कुछ भी सीखने की जरूरत नहीं है बल्कि स्वामी जी चाहते कि भारतीय लोग पश्चिम के लोगों की तरह कार्यकुशल समक्ष और स्वाबलंबी बने। पश्चिमी दुनिया ने काफी भौतिक प्रगति कर ली है इस मामले में भारत काफी पीछे है। स्वामी जी चाहते थे कि भारत अपना भौतिक स्तर सुधारने के लिए पश्चिमी तकनीक का प्रयोग करे साथ ही वो ये भी चाहते थे कि ऐसा करते समय भारत अपनी आध्यात्मिक पहचान का बलिदान नहीं कर दे। भारत के पास उच्चादर्श की बहुत ही बड़ी संचित निधि थी जिसे हर हाल में बचाना चाहते थे लेकिन जहां करोड़ों लोग भूखे हों वहां उच्चादर्श का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इसलिए भारत लौटने के बाद स्वामी ने उच्च दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा भारत की सामाजिक समस्याओं पर बात की। स्वामीजी का विश्वास था कि भारत आम आदमी आशाओं और इच्छाओं को भी पूरा कर सकता है साथ ही व्यक्तिगत और सामूहिक उच्च नैतिक मूल्यों को भी कायम रख सकता है। अपने आप में विश्वास करोः ये स्वामीजी का संदेश था। वो चाहते थे कि भारत स्वयं को गौरवान्वित महसूस करे। आत्म गौरव से रहित व्यक्ति और राष्ट्र मृत है। वो नए विचारों को समाहित करना चाहते थे लेकिन किसी का नकल करना नहीं चाहते थे। नकल एक प्रकार का गुलामी है और वो इससे घृणा करते थे।
इससे पहले भारतीय इतिहास में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ जिसने भारत की अच्छाइयों और बुराईयों को इतनी कुशलता के साथ समेटा हो। जब वो भारत की प्रशंसा करते थे तो थोड़ा भावुक हो जाते थे लेकिन जब वो उसकी कमजोरी को बताते थे तो निष्ठुर हो जाते थे। हालांकि उन्होंने भारत को उसका गौरव लौटाया। एक देश में कई समस्याएं होती हैं लेकिन जो राष्ट्र अपना आत्म सम्मान खो देता है वो मृतवत है।
भारत स्वामीजी का कृतज्ञ है क्योंकि उन्होंने इसे पहचान दिलायी। अब यह सर्वविदित है कि भारत एक महान देश है जिसकी सभ्यता हजारों वर्ष पुरानी है। स्वामी जी ने ये बात दुनिया को बतायी। स्वामीजी के माध्यम से भारत ने स्वयं की खोज की। कई लोगों ने आधुनिक भारत के निर्माण में महती भूमिका निभायी स्वामी जी के जैसा किसी ने योगदान नहीं दिया। सबसे अहम बात ये है कि स्वामी जी के संदेश आज भी जीवित हैं। उनके संदेश आधुनिक परिमेय(तर्कपूर्ण) और संपूर्ण हैं। उनके संदेश किसी खास समुदाय के लिए नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र पूरी मानवता के लिए है। उन्होंने सत्य का बोध कराया जो सब पर लागू होता है।

तुम्हारा काम गरीबों दलितों और वंचितों की सेवा करना है जाति रंग आदि में भेद किए बगैर।
तुम्हारा मार्ग तुम्हारे लिए सर्वश्रेष्ठ है लेकिन इसका मतलब ये है कि यह दूसरों के लिए भी सर्वश्रेष्ठ है।
तुम्हारा काम अपना काम लगातार करते जाना है और तब हरकोई आपका अनुसरण करेगा।
तुम्हारे देश को नायकों की जरूरत है और नायक बनें।
तुम्हें मालिक की तरह काम करना चाहिए गुलाम की तरह नहीं लगाता काम करो लेकिन गुलामों का काम नहीं।
तुम्हें दूसरे के मार्ग का अनुसरण नहीं करना चाहिए यह उनका काम है तुम्हारा नहीं।
उठो जागो तुम हर काम कर सकते हो तुम्हें हर काम करना चाहिए।
तुम्हें निराशा में डूबे हुए करोड़ों लोगों के पास जाना होगा और उन्हें हाथ पकड़कर उठाना होगा।
तुम्हें तुम्हारे अंदर के कृष्ण की पूजा करनी चाहिए बाहरी कृष्ण की नहीं।
तुम्हें लालच से ऊपर उठना चाहिए। वास्तविक और अवास्तविक में अंतर महसूस करना चाहिए। तुम्हें समझना चाहिए कि तुम सर्वव्यापी आत्मा हो।
तुम में देने देने और देने की शक्ति है। सीखो कि पूरा जीवन देने के लिए है। प्रकृति भी तुम्हें देने के लिए कहेगी। इसलिए सद इच्छापूर्वक दो।
तुम पूरी ताकत से अपना कर्तव्य करो बाकी ईश्वर पर छोड़ दो।
तुम अपनी पत्नी में ईश्वर का रूप देखो।
तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म पर है फल की चिंता मत करो।
तुम्हें अपने शरीर के अंदर आत्मा को देखना चाहिए।
तुम्हें डर के ऊपर विजय पाना होगा।
तुम्हें अंदर से विकसित होना चाहिए।
तुम्हें सत्य का ज्ञान होना चाहिए और अपने प्रकृति के अनुसार तुम्हें काम करना चाहिए।
तुम्हें अपने अंदर ईश्वर को देखना चाहिए।
तुम स्वयं अपना शिक्षक बनो। तुम्हारा विकास अंदर से होना चाहिए।
तुम्हें सबसे स्वतंत्र होना चाहिए।
आप सबों को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।
आपको धरती की तरह सहनशील होना चाहिए।
आपको वायु की तरह स्वतंत्र पौधे और कुत्ते की तरह विनम्र होना चाहिए।
आपको पूरी तरह शुद्ध होना चाहिए। किसी तरह की बुराई के बारे में मत सोचिए। इस तरह की सोच आपको पतन की ओर ले जाएगा।
आपको आग में कूदने के लिए तैयार रहना चाहिए तभी आप अपना काम कर पाएंगे।
आपको अपने आपमें ऋषितुल्य होना चाहिए।
यदि आप जीना चाहते हैं तो आपको विस्तृत होना चाहिए।
आप समाज के सभी वर्ग के लोगों के प्रति सहानुभूति बरतें।
आप अपना शरीर मन और वचन समाज के कल्याण में लगाएं।
आपको अपने आदर्शों के प्रति समर्पित होना चाहिए सिर्फ किसी खास क्षण के प्रति नहीं। अपने आदर्शों को हासिल करने के लिए आपको शांत चित होकर लगातार काम करना चाहिए जैसे कि चातक पक्षी स्वाति के बूंदों की प्रतीक्षा करती है।
अगर आप समुंदर पार करना चाहते हैं तो आपको लौहे की तरह मजबूत बनना चाहिए।
आपमें पहाड़ भेदने की क्षमता होनी चाहिए।
आपमें उच्च नैतिकता का भाव होना चाहिए। अगर आप इससे हटे तो आप खत्म हो जाएंगे।
सच्चाई की खोज में आप सतत लगे रहें।
आपको ईश्वर की इच्छा को शांत मन से स्वीकार करना चाहिए।
अपने शरीर को छोड़ने से पहले आप संपूर्ण ब्रह्मांड को मुक्त कर दें।
आप दूसरों की नहीं खुद की आलोचना करें।
आप कभी नहीं कहें कि आप कमजोर हैं।
आप अपने हृदय को खुला रखें।

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