विजय रथ
रावण रथी विरथ रघुवीरा।
देख विभीषण भयहुं अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा।
बंदि चरण कह सहित सनेहा।
नाथ ना रथ नहीं तन पद त्राणा।
कहिं विधि जीतब वीर बलवाना।
सुनहुं सखा कह कृपा निधाना।
ज्यों जय होई स्यंदन आना।।
सौरज धीरज तेहिं रथ चाका।
बल विवेक दृढ़ ध्वाजा पताका।।
सत्य शील दम परहित घोड़े।
क्षमा दया कृपा रजु जोड़े।
ईश भजन सारथि सुजाना।
संयम नियम शील मुख नाना।
रखा धर्म अस रथ जाके।
जीत न सकहिं कतहुं रिपु ताके।।
महा अजय संसार रिपु जीति सकहिं जो वीर।
जाके अस बल होहिं दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।
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