क्योंकि नायक और खलनायक दोनों बदल चुके हैं-
फिल्म का नाम याद नहीं आ रहा है. उसमें दादामुनि अशोक कुमार कह रहे थे कि आखिर ये साले खलनायक समझते क्यों नहीं कि वो कितना ही शातिर, चालाक और ताकतवर क्यों ना हो, आखिकार एक कमजोर, निहत्था और साधारण बुद्धि का नायक उसे धर दबोचेगा, उसकी जमकर पिटाई करेगा और दर्शक बजाएंगे तालियां.
ये पुरानी फिल्मों की बात है, जिन्हें आज के जमाने में हम घिसी-पिटी कह सकते हैं. भले ही उन कहानियों को सलीम-जावेद की जोड़ी ने क्यों न लिखी हो, आज वो कहानियां, आज वो फिल्में घिसी पिटी ही कहलाएगी. आज उन डायलॉग पर लोग तालियां नहीं बजाएंगे, आज खलनायक के लिए वो डायलॉग नहीं बोले जाएंगे. क्योंकि आज नायक और खलनायक दोनों बदल चुके हैं. इसलिए कहानी बदलनी पड़ी, डॉयलॉग बदलने पड़े.
युग बदल चुका है. व्यवस्थाएं बदल चुकी है. हम उदारीकरण और वैश्वीकरण के युग में जी रहे हैं. जहां पैसा और पैसा ही सबकुछ है. आप कितने भी तेज, प्रतिभावान, मेहनती, लगनशील हैं, अगर आपके पास पैसा नहीं है तो आप निठल्ले हैं, बेकार हैं, कामचोर और मुंहजोर हैं. अगर आपके पास पैसा है तो आपके अवगुण छिप जाएंगे.
दरअसल व्यवस्था कुछ इस तरह की बनाई ही गई है. व्यवस्था बनाने वाले खास हैं. उन्होंने अपने लिए व्यवस्था बनाई है. विनम्रता और ईमानदारी का चादर ओढ़े कुछ लोग भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं. भ्रष्टाचारियों को सलाखों के पीछे खड़ा करने के पीछे उन्हें क्लीनचिट देने में जुटे हैं और उनके संरक्षण बने हुए हैं. चूंकि कानून बनाने और उसे लागू करने की जिम्मेदारी उन्हीं लोगों के हाथों में है तो उनका कौन बाल भी बांका कर सकता है.
भारत दुनिया का सबसे अमीर देश है. लेकिन इन लुटेरों इस देश को कंगाल बना रहा है. इन लुटेरों को सत्ता-प्रतिष्ठान-मीडिया और उद्योगपतियों को समर्थन और संरक्षण मिल रहा है. क्योंकि ये लोग में इनमें आकंठ डूबे हैं या फिर इनके यहां इनको मोटी तनख्वाह वाली नौकरी मिल जाती है.
वैसे हमारा देश काफी पहले से बेईमान था, हम काफी पहले से भ्रष्ट थे लेकिन बाजारवाद, उपभोक्तावाद, वैश्विकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण और उदारवाद ने रही सही कर पूरी कर दी. उदारवाद के नाम पर इन्हें अपने अनुसार नियम बनाने और नियम तोड़ने की आजादी मिल गई.
लूट के माल में कौन हिस्सेदार नहीं है, ये कहना मुश्किल है. पर जो ज्यादा समय तक सत्ता प्रतिष्ठान में रहा वो सबसे ज्यादा दोषी है. बिना अनुमान लगाए इसमें कांग्रेस का नाम लेना होगा. उसने हिंदुस्तान में करीब चालीस सालों तक शासन किया, फिर जवाब उसी से पूछना मुनासिब होगा कि 1456 अरब डॉलर यानी 67976 अरब रुपये स्वीस बैंक में क्यों पहुंच गया. ये स्वीस बैंक एसोसिएशन की रिपोर्ट है.
स्वीस बैंक में इतना पैसा कैसे पहुंच गया. इसमें उसकी, उसके नेताओं की हिस्सेदारी कितनी है. जाहिर है कि कांग्रेस के ईमानदार प्रधानमंत्री गोपनीयता का हवाला देकर इन भ्रष्टों के नामों का खुलासा करने से इनकार कर रहे हैं. मगर, क्या गोपनीय इन भ्रष्टों के नाम होने चाहिए. जाहिर है कि कांग्रेस की नीयत खराब है.
सबसे खराब देश की तकदीर है क्योंकि यहां एक भ्रष्ट दूसरे भ्रष्ट को बचाने में लगा है. ये भ्रष्ट कभी खुद को बुद्ध तो कभी विनम्रता की मूर्ति साबित कर देते हैं और देश की जनता कभी नरेगा तो कभी युवराज का चेहरा देखकर खुश हो जाती है.
बहुत सुंदर रचन
जवाब देंहटाएंसुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंयही आज का सत्य है... लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है....
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