हिंदी शोध संसार

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने राष्ट्र के लिए बलिदान दिया

नानाजी देशमुख के निधन तक यह अद्भुत घटना किसी को मालूम नहीं थी, नानाजी के निधन के बाद इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक एस गुरूमूर्ति ने इस रहस्य से पर्दा उठाया. प्रस्तुत लेख, नानाजी, एज आई नेउ हिम नाम से इंडियन एक्सप्रेस और भारतीय पक्ष में छप चुका है. उसी लेख का ये अंश
Rashtra Kavi Dinkar_N
एक अविश्वनीय घटना जिसने गोयंकाजी और नानाजी की अपील पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निरंकुश सत्ता के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए जयप्रकाश नारायण को राजी कर लिया.   इस घटना के बारे में मुझे जानकारी, 1980 के अंत में मिली, जब मैंने मुंबई के इंडियन एक्सप्रेस टावर में नानाजी और रामनाथजी से पूछा कि उन्होंने जयप्रकाश नारायण को आंदोलन के लिए कैसे राजी किया. तब नानाजी वो रोमांचकारी और अविश्वनीय घटना कह सुनाई.
बात, 1973 की है. स्थान था बैंगलोर स्थित इंडियन एक्सप्रेस का गेस्ट हाउस(अतिथि गृह). इस ऐतिहासिक बैठक में रामनाथ गोयंका, नानाजी देशमुख, 1942 के भूमिगत आंदोलन के नायक अच्युत पट्टवर्द्धन और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर शामिल थे. चारों इस बात बात पर जोर दे रहे थे कि इंदिरा गांधी की निरंकुश सत्ता के खिलाफ विद्रोह की अगुवाई जयप्रकाश को करनी चाहिए, क्योंकि इंदिरा गांधी बहुत ही निरंकुश हो चुकी थी, उन्होंने न्यायपालिका और नौकरशाही सहित लोकतंत्र के संस्थागत ढांचे को ध्वस्त करना शुरू कर दिया था. यहां एक बात ये भी सच थी कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जवाहरलाल नेहरू को सबसे प्रिय दोस्तों में से एक थे और साखकर इंदिरा गांधी से उनके बहुत अच्छे संबंध थे. मगर ये दोस्ती राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन की राह में दिनकर जी के लिए कभी रोड़ा नहीं बनी. जयप्रकाश नारायण मुख्य रूप से अपने खराब स्वास्थ्य के चलते विद्रोह का नेतृत्व करने में हिचकते थे. वो मधुमेह के रोगी थे और साथ ही उन्हें पौरूषग्रंथि संबंधी जटिलताएं भी थी. जयप्रकाश नारायण ने कहा कि वे लंबे समय तक जीवित नहीं रहेंगे और उनका स्वास्थ्य इस महान कार्य को अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं दे रहा है. रामनाथ जी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वे उनके पौरूषग्रंथि का भेल्लोर में ऑपरेशन कराकर समस्या को दूर करा देंगें और बाद में उन्होंने ऐसा किया भी. लेकिन जयप्रकाश नारायण तब भी तैयार नहीं हुए.
इस स्थिति में, रामनाथ गोयंका जी, एक महान आस्थावादी होने के कारण, सभी लोगों को तिरूपति चलने की सलाह दी. गोयंका ने कहा कि वे इसके बाद मद्रास चलेंगे जहां आगे विचार विमर्श होगा. सभी तिरूपति की ओर रवाना हो गए.
आगे पढ़ेंगे, जेपी आंदोलन के लिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ने कैसे बलिदान दिया-  
पिछले अंक में हम बात कर रहे थे कि रामनाथ गोयंका जी, अच्युत पट्टवर्द्धनजी, जयप्रकाश नारायणजी, नानाजी देशमुख और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर तिरूपति दर्शन के लिए रवाना हुए. आगे-
रामधारी सिंह दिनकर ने सबकी उपस्थिति में भगवान तिरूपति के सामने प्रार्थना की(जयप्रकाश और दूसरे लोगों को सुनाकर)-
हे भगवान तिरुपति, हमारा शेष जीवन लोकनायक जयप्रकाश नारायण को अर्पित कर दो, ताकि वो मातृभूमि की सेवा कर सकें.  
भगवान तिरुपति का दर्शन कर सभी मद्रास पहुंचे. माउंट रोड, जहां इंडियन एक्सप्रेस का ऑफिस था, रामनाथजी के घर पहुंचते ही दिनकर जी रामनाथजी की गोद में गिर गए और कुछ ही पलों में उन्होंने आखिरी सांस ली- उस समय वहां, जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख और अच्युत पट्टवर्धन उपस्थित थे. साफ था कि दिनकरजी की प्रार्थना का भगवान तिरूपति बालाजी ने उत्तर दिया. दिनकरजी के निधन के तुरंत बाद जयप्रकाश नारायण ने बिहार के छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने का फैसला लिया. इसबार जयप्रकाश नारायण ने तनिक देरी नहीं की. मेरे बार-बार के अनुरोध के बावजूद नानाजी ने इस घटना के बारे में इंडियन एक्सप्रेस में लिखने से मना कर दिया. जब मैने पूछा कि लोग इस घटना के बारे में कैसे जानेंगे तो उन्होंने कहा कि
मैंने सारी बात अपनी डायरी में लिख दी है, मेरी मृत्यु के बाद लोग जान जाएंगे. अब नानाजी देशमुख इस दुनिया में नहीं है, इसलिए मैं उन बातों को लिखने में स्वयं को स्वतंत्र पा रहा हूं.
बाकी तो सबको मालूम है. पौरूषग्रंथि के ऑपरेशन के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े जन आंदोलन का नेतृत्व किया. यह नेतृत्व भ्रष्टाचार के खिलाफ था. इस आंदोलन के कारण इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया. आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया और सभी विरोधी नेताओं को जेल में ढूंस दिया गया. यह समय नानाजी के जीवन का सर्वोत्तम काल था. इस दौरान नानाजी देशमुख ने भूमिगत आंदोलन चलाया. नानाजी के आंदोलन ने 1977 में देश में लोकलहर खड़ा कर दिया. इंदिरा गांधी ने अपनी निरंकुशता को जारी रखने के लिए जनादेश का मार्ग चुना. लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी गई. नानाजी के भूमिगत आंदोलन ने वो लोकलहर पैदा कर दी कि इंदिरा गांधी की खुफिया एजेंसियां भी चकमा खा गई. नानाजी देशमुख जनता पार्टी के निर्माता थे. वो पहलीबार चुनाव लड़े और जीत हासिल की, लेकिन जब मोरारजी देसाई ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए जोर डाला, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

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